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१५. केवतिएहिं पोग्गलत्थिकायपदेसेहि पुटठे ? अणंतेहिं ।
१५. *इक प्रदेश धर्मास्तिकाय नों, पुद्गलास्ति नों ख्यात ।
फर्श किते प्रदेशे करी? जिन भाखै रे अनंत संघात ।।
१६. एवं पुद्गलास्तिकायप्रदेशैरपि
(वृ० प० ६१०)
सोरठा १६. जीवास्ती नों जाण, न्याय कह्यो तेहनी परै।
पुद्गल नों पहिछाण, कहिवो आलोची करी ॥ १७. *इक प्रदेश धर्मास्तिकाय नों, अद्धा समय अवदात ।
तस कितलै समये करी, फशैं रे हिव भाख नाथ ।। १८. कदाचित फशैं अछ, द्वीप अढाई माय ।
कदाचित फनहीं, अढी द्वीप में रे बारै न फर्शाय ।।
१७. केवतिएहि अद्धासमएहि पुढे ?
१६. जो फर्श तो निश्चै करी, अनंत समय फर्शत ।
अनादि अद्धा समय छ, अनंत समय करि रे इण न्याय कहत।।
१८. सिय पुढे सिय नो पुट,
अद्धासमय: समयक्षेत्र एव न परतोऽतः स्यात्स्पृष्टः स्यान्नेति,
(व. प० ६१०) १९. जइ पुढे नियम अणंतेहि। (श० १३/६१) 'जइ पुछे नियमं अगंतेहि ति अनादित्वाददासमयानां
(वृ०प० ६१०) २०. अथवा वर्तमानसमयालिगितान्यनन्तानि द्रव्याण्यनन्ता एव समया इत्यनन्तस्तैः स्पृष्ट इत्युच्यत इति
(वृ०प०६१०)
२०. तथा समय वर्तमान जे. द्रव्य अनंत ऊपर वर्तत ।
तिणसूं एकण नैं अनंता कह्या, अनंत समय करि रे इम फर्शत।।
अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों की स्पर्शना २१. प्रभ! अधर्मास्तिकाय नों, इक प्रदेश छ तेह।
कितै धर्मास्तिकाय ने, प्रदेश करिकै रे फर्श जेह ।। २२. श्री जिन भाखै जघन्य थी, च्यार करी फर्शत ।
सप्त प्रदेश करी बली, उत्कृष्ट रे फर्शणा हंत ।।
२१. एगे भते ! अधम्मत्थिकायपदेसे केवतिएहिं धम्मत्थि
कायपदेसेहि पुठे ? २२. गोयमा ! जहण्णपदे चउहि, उक्कोसपदे सहि ।
सोरठा २३. जिम इक धर्म-प्रदेश, अधर्म नां प्रदेश करि।
फर्श न्याय अशेष, तिम ए लोकांत लोक मध्य ।।
२३. अधर्मास्तिकायप्रदेशस्य शेषाणां प्रदेशः स्पर्शना धर्मास्तिकायप्रदेशस्पर्शनाऽनुसारेणावसेया ।
(बृ०प० ६१०) २४. केवतिएहि अधम्मत्थिकायपदेसेहिं पुढें ?
२५. जहण्णपदे तिहि, उक्कोसपदे छहि,
२४. *एक प्रदेश अधर्मास्तिकाय नों अधर्मास्तिकाय नैं जाण।
केतले प्रदेशे करी, फर्रु रे भाखो भगवान ! २५. जिन कहै जघन्यपदे करि, तीन करी फर्शत । उत्कृष्ट षट प्रदेशे करी, तेहनों रे फर्शवो हंत ॥
सोरठ २६. जिम इक धर्म-प्रदेश, फर्श धर्म-प्रदेश करि।
लोक अंत मध्य देश, एपिण तिमहिज न्याय छै ।। २७. *शेष जेम धर्मास्तिकाय विषे आख्यात ।
तेम अधर्मास्तिकाय विषे, कहियो रे सर्व अवदात ॥
आकाशास्तिकाय के प्रदेशों की स्पर्शना २८. एक प्रदेश आकाश नों, धर्मास्ती नैं जाण ।
केतले प्रदेशे करी, फर्श रे? भाखो जगभाण !
२७. सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स ।
(श० १३/६२)
२८. एगे भंते? आगासत्थिकायपदेसे केवतिएहि धम्म
त्थिकायपदेसेहिं पुठे?
*लय : रावण राय आशा अधिक अथाय
१६४ मगवती जोड़
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