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ढाल : २७८
१. एगे भंते ! धम्मत्थिकायपदेसे केवतिएहि धम्मत्थि
कायपदेसेहिं पुढें? २. गोयमा ! जहण्णपदे तिहिं उक्कोसपदे छहि ।
धर्मास्तिकाय के प्रदेशों को स्पर्शना
दूहा १. प्रभ ! धर्मास्तिकाय नों, एक प्रदेशज तेह।
किता धर्मास्तिकाय नां, प्रदेश करि फर्शह ? २. जिन कहै जघन्यपदे करी, तीन करी फर्शत ।
उत्कृष्ट षट प्रदेश करि, तास फर्शवो हंत ।। ३. जघन्य तीन ते किम इहां? लोक तणे जे अंत ।
निष्कुट खूणां रूप ज्यां, अल्प फर्शना हंत ।। ४. जिम भूमि तणज नजीक छ, ओरा तणांज ताय। ___ खुणां नों जे देश छ, प्राये तिम कहिवाय ।। ५. ऊपर एक प्रदेश करि, बे प्रदेश बिहं पास ।
त्रिण प्रदेश करि फर्शणा, वांछित प्रदेश तास ।। ६. उत्कृष्ट षट प्रदेश करि, चिउं दिशि नां जे च्यार । इक ऊपर इक अधस्तन, इम षट करि अवधार ।। *सुगण नर ! वारू जिन वच हीर, सरध्यां रे भवदधि तोर । [ध्रुपदं] ७. इक प्रदेश धर्मास्तिकाय नों, अधर्मास्तिकाय नां जाण ।
केतलै प्रदेश करी, फर्श रे? ए प्रश्न पिछाण ।। ८. श्री जिन भाखै जघन्य जी, चिउं प्रदेश करि हंत । वलि उत्कृष्टपदे करी, सप्त प्रदेशज रे करि फर्शत ।।
३,४. 'जहन्नपए तिहिं' ति जघन्यपदं लोकान्तनिष्कुट
रूपं यत्रकस्य धर्मास्तिकायादिप्रदेशस्यातिस्तोकरन्यः स्पर्शना भवति तच्च भूम्यासन्नापवरककोणदेशप्रायं ।
(वृ० प० ६१०) ५. इहोपरितनेनैकेन द्वाभ्यां च पार्श्वत एको विवक्षितः प्रदेशः स्पृष्टः ।
(वृ० प० ६१) ६. 'उक्कोसपए छहिं' ति विवक्षितस्यैक उपर्येकोऽधस्तनश्चत्वारो दिक्षु इत्येवं षड्भिः । (वृ०प०६१०)
७. केवतिएहिं अधम्मत्थिकायपदेसेहिं पुठे?
८. जहण्णपदे चउहिं उक्कोसपदे सत्तहिं ।
सोरठा ६. तीन पूर्ववत जान, चोथो धर्मास्तिकाय नो।
प्रदेश छै ते स्थान, प्रदेश अधर्मास्ती तणों। १०. षट दिशि नां षट जान, सप्तम धर्मास्ती तणो।
प्रदेश छै ते स्थान, अधर्मास्ति नों प्रदेश छै ।। ११. *इक प्रदेश धर्मास्तिकाय नो, आगासत्थि नों तास ।
फरों किते प्रदेशे करी? जिन भाखै रे सप्त करि फास ।।
९. तथैव त्रयः, चतुर्थस्तु धर्मास्तिकायप्रदेशस्थानस्थित एवेति।
(वृ० प० ६१०) १०. षड् दिक्षट्के, सप्तमस्तु धर्मास्तिकायप्रदेशस्थ एवेति
(वृ० प० ६१०) ११. केवतिएहि आगासत्थिकायपदेसेहि पुढे ? सहि ।
१२. आकाशप्रदेशः सप्तभिरेव, लोकान्तेऽप्यलोकाकाश
प्रदेशानां विद्यमानत्वात् (वृ० प० ६१०) १३. केवतिएहि जीवत्थिकायपदेसेहिं पुढे ? अणंतेहिं ।
सोरठा १२. लोकांते पिण ख्यात, फर्श अलोक प्रदेश करि।
ते भाटै कह्या सात, जघन्य उत्कृष्ट कह्या नथी।। १३. *इक प्रदेश धर्मास्तिकाय नों, जीवास्तिकाय नां ख्यात । फर्श किते प्रदेशे करी? जिन भाखै रे अनंत संघात ।।
सोरठा १४. लोकांते पिण तेह, तीन प्रमुख दिशि नै विषे ।
अनंत जीव नां जेह, फर्श अनंत प्रदेश करि ।। *लय : रावण राय आशा अधिक अथाय
१४. 'अणंतेहिं' ति अनन्तरनन्तजीवसम्बन्धिनामनन्तानां
प्रदेशानां तत्रकधर्मास्तिकायप्रदेशे पार्श्वतश्च दिकत्रयादौ विद्यमानत्वादिति (वृ०प० ६१०)
श०१३, उ०४, ढा० २७८ १६३
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