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________________ ५३. सर्व भांगा वली जू जुआ भणवा, कहिये तेह निक्खेव। एहीज भांगा उच्चारवा जावत, नोआत्म उगणीसमु कहेव ।। चउप्रदेशी खंध ना १९ भांगा नी स्थापना निक्खेवे ते चेव भंगा उच्चारेयव्वा जाब आयाति य नोआयाति य। (श० १२।२२३) आ० नो० अव० त्रिक संजोगिया भांगा ४ आ० ना० अव० orrorr orror पंच प्रदेशी खंध भाश्री २२ भांगा। तिण में सकल खंध आश्री ३ भांगा तथा द्विकसंजोगिक नां १२ भांगा जाणवा५४. पंच प्रदेशिक खंध आत्म प्रभु ! के आत्म थी अन्य कहाय ? जिन कहै आत्म कदा नोआत्महि, कदा अवक्तव्य पाय ॥ ५४. आया भंते ! पंचपएसिए खंधे ? अण्णे पंचपएसिए खंधे ? गोयमा! पंचपएसिए खंधे सिय आया सिय नोआया सिय अवत्तव्वं-आयाति य नोआयाति य । ५५,५६. सिय आया य नोआया य। ५७. सिय आया य अवत्तव्वं । ५८. नोआया य अवत्तव्वेण य । ५५. कदा आत्म नोआत्म एक वच, ए चोथो भांगो जाण । कदा आत्म एक वच नोआत्म बहु वच, पंचम भंग पिछाण ।। हकदा आत्म बह वच नोआत्म इक वच, छठो भांगो एह। कदा आत्म नोआत्म बिहु बहु वचने, सप्तम भंग कहेह॥ ७. आत्म नोआत्म संघाते आख्या, भांगा च्यार सूरीत। तिमहिज आतम अवक्तव्य साथे, भांगा च्यार संगीत ।। ५८. इमज नोआत्म अवक्तव्य साथे, भांगा च्यार सवट। पनर भांगा इह विध आख्या, हिवै त्रिकसंयोगिक अट्र ।। विकर्मयोगिक अष्ट भांगा हुवै। तिहां पंचप्रदेशिक खंध में भांगा सातईज पडिया अने आठमों भांगो घणां देश आत्म, घणां देश नोआत्म, घणां देश अवक्तव्य-- एन हुवे ते माटे सप्त भांगा जाणवाहकदा आत्म नोआत्म अवक्तव्य इक वच, सोलमो भांगो एह। कदा आत्म नोआत्म बिहुँ इक वचने, अवक्तव्य बहुवचनेह ।। ६०. कदा आत्म एक वच नोआत्म बहु वच, अवक्तव्य वच एक । कदा आत्म एक वच नोआत्म बहुवच, अवक्तव्य बहु वच पेख ।। ५९. सिय आया य नोआया य अवत्तव्वं, सिय माया य नोआया य अवत्तव्वाई। ६०. सिय आया य नोआयाओ य अवत्तव्वं, सिय माया प नोआयाओ य अवत्तव्वाई। १२० भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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