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४०-४२. देसे आदिट्टे सब्भावपज्जवे देसे आदिठे
असब्भावपज्जवे देसे आदिठे तदुभयपज्जवे चउप्पएसिए खधे आया य नोआया य अवत्तव्वं-- आयाति य नोआयाति य ।
३३. एक देश में नोआत्म कहीजै, पर पर्यव आश्री ताय ।
दूजा देश नै अवक्तव्य कहीज, निज पर पर्यव पेक्षाय ।। ३४. कदा नोआत्म इक वचने करी, अवक्तव्य बहु वच पाय ।
एक देश नै नोआत्म कहीजै, पर पर्यव आश्री ताय । ३५. घणां देश में अवक्तव्य कहियै, उभय पर्यव अपेक्षाय ।
च्यार प्रदेशिक खंध विषे का, तेरम भंग नो न्याय ।। ३६. कदा नोआत्म बहु वचने करि, अवक्तव्य इक वच पाय ।
घणां देश नै नोआत्म कहीजै, पर पर्यव आथी ताय ।। ३७. एक देश नै अवक्तव्य कहीजै, स्व पर पर्यव पेक्षाय ।
च्यार प्रदेशिया खंध विषे का, चवदम भंग नो न्याय ।। ३८. कदा नोआत्म अवक्तव्य दोन, बह वचने कहिवाय ।
रह्या ए च्यार आकाश-प्रदेशिक, कहिये तेहनों न्याय ।। ३६. घणां देश में नोआत्म कहीजै, पर पर्यव आश्री ताय ।
घणां देश नै अवक्तव्य कहीजै, उभय पर्यव अपेक्षाय ।।
आत्म नोआत्म अवक्तव्य संघाते त्रिक संयोगिक च्यार भांगा नों न्याय४०. कदा आत्म नोआत्म अवक्तव्य, त्रिहं इक बचन विशेष ।
च्यार प्रदेशिक खंध अछ ते, रह्यो तीन आकाश प्रदेश ।। ४१. एक देश में आत्म कहीजै, निज पर्यव ते मांहि ।
दुजा देश में नोआत्म कहीजै, पर पर्यव आयो ताहि ।। ४२. तोजा देश ने अवक्तव्य कहीजै, उभय पर्यव अपेक्षाय ।
च्यार प्रदेशिक खंध विषे का, सोलम भंग रो न्याय ॥ ४३. आत्म नोआत्म बिहु इक वचने, अवक्तव्य बहु वच ताय ।
च्यार आकाश प्रदेश र ह्या इम, निसुणो तेहनों न्याय ।। ४४. देश एक नैं आत्म कहीजै, स्व पर्यव आश्री ताय ।
दूजा देश नै नोआत्म कहीज, पर पर्यव अपेक्षाय ।। ४५. बाकी घणां देश ने अवक्तव्य कहीजै, उभय पर्यव अपेक्षाय ।
च्यार प्रदेशिया खंध विषे ए, सतरम भंग नों न्याय ।। ४६. कदा इक वच आत्म नोआत्मबह वच, अवक्तव्य इक वच ताय।
च्यार आकाश प्रदेश विषे ए, कहिये तेहनों न्याय ।। ४७. एक देश नैं आत्म कहीज, निज पर्यव अपेक्षाय ।
घणां देश नैं नोआत्म कहीजै, पर पर्यव आश्री ताय॥ ४८. एक देश में अवक्तव्य कहियै, उभय पर्यव अपेक्षाय ।
च्यार प्रदेशिक खंध विषे का, अठारम भंग नों न्याय ।। ४६. कदा आत्म बहु वच नोआत्म इक वच, अवक्तव्य वच एक ।
च्यार आकाश प्रदेश विष रह्या, कहिये न्याय विशेष । ५०. घणां देश नै आत्म कहीजै, स्व पर्याय अपेक्षाय ।
दूजा देश नै नोआत्म कहीजै, पर पर्यव आधी ताय ॥ ५१. तीजा देश नै अवक्तव्य कहिय, उभय पर्यव अपेक्षाय ।
च्यार प्रदेशिक खंध विषे, उगणीसम भंग न न्याय।। ५२. तिण अर्थे करिनै इम आख्यो, च्यार प्रदेशिक खंध ।
कदा आत्म कदा नोआत्म कहिये, कदा अवक्तव्य संध ।।
४३-४५. देसे आदि8 सब्भावपज्जवे देसे आदिठे
असब्भावपज्जवे देसा आदिट्ठा तदुभपज्जबा चउपएसिए खंधे आया य नोआया य अवत्तब्वाईआयाओ य नोआयाओ य।
४६-४८. देसे आदिठे सम्भावपज्जवे देसा आदिट्ठा
असब्भावपज्जवा देसे आदि8 तदुभयपज्जवे चउप्पएसिए खंधे आया य नोआयाओ य अवत्तव्वं-आयाति य नोआयाति य ।
४९-५१. देसा आदिट्ठा सम्भावपज्जवा देगे आदिटठे
असब्भावपज्जवे देसे आदिठे तदुभयपज्जवे चउप्पएसिए खंधे भायाओ य नोआया य अवत्तव्वंआयाति य नोआयाति य ।
५२,५३. से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-चउप्पएसिए
खंधे सिय आया सिय नोआया सिय अवत्तव्वं
श० १२, उ० १०, ढा० २७१ ११९
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