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________________ १४,१५. गोयमा ! अप्पणो आदिठे आया, परस्स आदिठे नोआया तदुभयस्स आदिठे अवत्तव्वंआयाति य नोआयाति य । १६-२३. देसे आदिठे सब्भावपज्जवे देसे आदिठे असब्भावपज्जवे च उभंगा। १४. सकल खंध भणी आत्म कहीजै, निज पर्यव पेक्षाय । पर पर्यव अपेक्षाय ते खंध नै, नोआत्म कहिये ताय ।। १५. अवक्तव्य कहिये ते खंध नै, निज पर पर्यव पेक्षाय । आत्म नोआत्म बिहुं कहि न सकिय, खंध आश्री भांगा त्रिहं पाय ।। देश आधी द्विकसंयोगिक १२ भांगा छ। तिणमें आत्म-नोआत्म आश्री च्यार भांगा नों न्याय१६. इक वचने करि आत्म नोआत्महि, तूर्य भंग नो न्याय । ___एक देश में आत्म कहीजै, निज पर्यव पेक्षाय ।। १७. दूजा देश नै नोआत्म कहीजै, पर पर्यव पेक्षाय । प्रदेश तथा पर वस्तु अपेक्षा, इक-इक प्रदेश मांय ।। १८. इक वच आत्म नोआत्म बहु वच, पंचम भांगा मांय । च्यार प्रदेशिया खंध विषे ए, कहिये हिव तसू न्याय॥ १६. एक देश में आत्म कहीजै, निज पर्यव ते मांय । घणां देश में नोआत्म कहीजै, पर पर्यव अपेक्षाय ॥ २०. आत्म बह वच नोआत्म इक वच, षष्टम भंग कहाय । च्यार प्रदेशिक खंध विषे ए, आखं तेहनों न्याय ।। २१. घणां देश में आत्म कहीजै, निज पर्यव ते मांय । दूजो देश इक कहियै नोआत्महि, पर पर्यव अपेक्षाय ।। २२. आत्म नोआत्म बिहुँ बहु वचने, रह्या च्यार प्रदेश रै माय । च्यार प्रदेशिक खंध विषे कहूं, सप्तम भंग रो न्याय ॥ २३. घणां देश में आत्म कहीजै, निज पर्यव ते मांय । अन्य देश बह कहिये नोआत्म, पर पर्यव पेक्षाय ॥ आत्म अवक्तव्य संघाते च्यार भांगा नों न्याय२४. आत्म अवक्तव्य बिहुं इक वचने, रह्या इक-इक प्रदेश मांय । च्यार प्रदेशिया खंध विषे कहूं, अष्टम भंग नों न्याय ।। २५. एक देश में आत्म कहीजै, निज पर्यव ते मांय । दूजा देश ने अवक्तव्य कहीजै, निज पर पर्यव पेक्षाय ।। २६. इक वच आत्म अवक्तव्य बहु वच, नवम भंग कहिवाय । च्यार प्रदेशिया खंध विषे हिव, कहीजै तेहनों न्याय ।। २७. एक देश में आत्म कहीजै, निज पर्यव रै न्याय । दूजा देश बहु कह्या अवक्तव्य, निज पर पर्यव पेक्षाय ।। २८. बहु वच आत्म अवक्तव्य इक वच, दशम भंग कहिवाय । ___ च्यार प्रदेशिया खंध विषे हिव, कहिये तेहनों न्याय ॥ २६. घणां देश नैं आत्म कहीजै, निज पर्यव ते मांय । दुजो देश इक कहियै अवक्तव्य, निज पर पर्यव पेक्षाय ।। ३०. आत्म अवक्तव्य बिहुँ बहु वचने, एकादशम कहाय । च्यार आकाश प्रदेश विषे ए, रह्या तास कहं न्याय ।। ३१. घणां देश में आत्म कहीजै, निज पर्यव ते मांय । दूजा देश बहु कहिये अवक्तव्य, निज पर पर्यव पेक्षाय ।। नोआत्म अवक्तव्य संघाते च्यार भांगा नों न्याय३२. कदा नोआत्म अवक्तव्य इक वच, रह्या इक प्रदेश मांय । ए बारमा भंग तणो हिव, कहियै आगल न्याय ।। ११८ भगवती जोड़ २४-३१. सब्भावेणं तदुभयेण य चउभंगो।। ३२-३९. असम्भावेणं तदुभयेण य चउभंगो। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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