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________________ सकल खंध आश्री ३ भांगा नों न्याय-- २६. किण अर्थ प्रभ! इम आख्यात, त्रिप्रदेशिक खंध कदा आत्म थात। इमज उच्चरिवू जावत जाण, तेरम भंग लग पहिछाण? २६. से केणटुंणं भंते ! एवं वुच्चइ-तिपएसिए खंधे सिय आया-एवं चेव उच्चारेयव्वं जाव सिय आया य नोआया य अवत्तव्बं - आयाति य नोआयाति य? २७. गोयमा ! अप्पणो आदिठे आया।' २८. परस्स आदि→ नो आया, तदुभयस्स आदिठे अवतव्वं-आयाति य नोआयाति य २७. श्री जिन भाखै गोतम ! जेह, तीन प्रदेशिक खंध छ तेह । सकल खंध निज पर्यव पेक्षाय, आत्म तास कहिये इण न्याय ।। २८. पर वस्तु नां पर्यव पेक्षाय, तास नोआत्म कहीजै ताय। निज पर पर्यव तणी अपेक्षाय, अवक्तव्य बिहं कहि सकै नांय ।। बाकी रा भांगा तेहना देश आश्री छ। तिणमें चोथो, पांचमों, छठो ए तीन भांगा आत्म नोआत्म संघाते, तेहनों न्याय२६. इक वच आत्म नोआत्म कहाय, तुर्य भांगा नो निसुणो न्याय। इक देश भणी निज पर्यव पेक्षाय, इक वचने आत्म कहीजै ताय ।। ३०. दूजा देश भणी पर पर्यव पेक्षाय, इक वचने नोआत्म कहाय । तीन प्रदेशिक खंध इण न्याय, इक वच आत्म नोआत्म कहाय ।। सोरठा ३१. एक आकाश प्रदेश, दोय प्रदेश रह्या छता। तसु इक वचन कहेस, जुदा रह्या बहु वचन है। २९,३०. देसे आदिठे सम्भावपज्जवे, देसे आदिठे असब्भावपज्जवे तिपएसिए खंधे आया य नोआया य । ३१. यच्चेह प्रदेशद्वयेऽप्येकवचनं क्वचित्तत्तस्य प्रदेशद्वय स्यैकप्रदेशावगाढत्वादिहेतुनकत्वविवक्षणात्, भेदविव क्षायां च बहुवचनमिति। (व०प० ५९५) ३२,३३. देसे आदिठे सब्भावपज्जवे देसा आदिट्ठा असब्भावपज्जवा तिपएसिए खंधे आया य नोआयाओ य। ३४,३५. देसा आदिट्ठा सब्भावपज्जवा देसे आदिठे असम्भावपज्जवे तिपएसिए खंधे आयाओ य नोआया य। ३२. *इक देश भणी निज पर्यव पेक्षाय, इक वच आत्म कहीजै ताय । बहु देश भणी पर पर्यव पेक्षाय, बहु वचने नोआत्म कहाय ।। ३३. आत्म शब्द इक वचने जाण, बहु वचने नोआत्म पिछाण । तीन प्रदेशिया खंध रै मांय, पंचम भंग कह्यो इण न्याय ।। ३४. बहु देश भणी निज पर्यव पेक्षाय, बहु वचने करि आत्म कहाय। इक देश भणी पर पर्यव पेक्षाय, इक वचने नोआत्म कहाय ।। ३५. आत्म शब्द बहु वचने जाण, इक वचने नोआत्म पिछाण । तीन प्रदेशिया खंध रैमांय, षष्टम भंग कह्यो इण न्याय ।। आत्म अवक्तव्य संघाते तीन भांगा नों न्याय३६. एक देश भणी निज पर्यव पेक्षाय, इक वचने तसु आत्म कहाय । दूज। देश भणी बिहुं पर्यव पेक्षाय, अवक्तव्य बिहं कहि सकै नाय ।। ३७. आत्म एक वचने करि एह, अवक्तव्य पिण इक वचनेह । तीन प्रदेशिया खंध रे मांय, सप्तम भंग कह्यो इण न्याय ।। ३८. एक देश भणी निज पर्यव पेक्षाय, इक वचने करि आत्म कहाय । बहु देश भणी बिहुं पर्यव पेक्षाय, अवक्तव्य बिहं कहि सकै नांय ।। ३६. आत्म इक वचने करि जोय, अवक्तव्य बहु वचने होय । तीन प्रदेशिया खंध रै माय, अष्टम भंग कह्यो इण न्याय ।। ४०. बह देश भणी निज पर्यव पेक्षाय, बहु वचने करि आत्म कहाय । इक देश भणी बिहं पर्यव पेक्षाय, अवक्तव्य इक वचने पाय ।। ४१. आत्म बहु वचने करि जेह, अवक्तव्य इक वचने एह । तीन प्रदेशिया खंध रै मांय, नवमो भंग कह्यो इण न्याय ।। लय : इण पुर कंबल कोय न लेसी ३६,३७. देसे आदिठे सब्भावपज्जवे देसे आदिठे तदुभय पज्जवे तिपएसिए खंधे आया य अवत्तव्य-आयाति य नोआयाति य। ३८,३९. देसे आदिलै सम्भावपज्जवे देसा आदिट्ठा तदुभयपज्जवा तिपएसिए खंधे आया य अवत्तब्वाई---- आयाओ य नोआयाओ य । ४०,४१. देसा आदिट्ठा सब्भावपज्जवा देसे आदिठे तदुभयपज्जवे तिपएसिए खंधे आयाओ य अवत्तव्वं--- आयाति य नोआयाति य । ण०१२, उ०१०, ढा० २७० ११५ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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