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________________ ४२. सप्तम अष्टम नवमों भंग, कह्या आत्म अवक्तव्य साथ सुचंग | वि नोआत्म अवक्तव्य साथ, भांगा तीन तभी कहूं वात ।। ४३. इक देश भणी पर पर्यव पेक्षाय, इक वचने नोआरम कहाय । दुजा देश भणी बिहुँ पर्यव पेक्षाय अवक्तव्य इक वचने थाय ॥ ४४. इक वचने नोआत्म पिछाण, अवक्तव्य पिण इक वच जाण । तीन प्रदेशिक बंध रे मांय, दशम भंग नों आस्यो न्याय ॥ ४५. इक देश भणी पर पर्यव पेक्षाय, तास नोआत्म कही न्याय । बहु देश भणो बिहुं पर्यव पेक्षाय, अवक्तव्य बहु वचने पाय || ४६. इक वचने नोआत्म अवेख, अवक्तव्य बहु वचने पेख । तीन प्रदेशिया खंध ₹ मांय, एकादशम भंग नों न्याय ॥ ४७. वह देश भणी पर पर्यव पेक्षाय बहु वचने नोआरम कहाय । बहु इक देश भणी विपर्यय पेक्षाय अवक्तव्य इक बच कहिवाय ॥ ४८. बहु वचने नोआत्म विचार, अवक्तव्य इक वचने उचार | भंग द्वादशम तणुं ए न्याय || त्रिक संयोगिक १ तेरम भांगा 3 तीन प्रदेशिक बंध रे मांय आत्म- नोआत्म- अवक्तव्य संघाते नों न्याय ४९. इक देण भणी निज पर्यव पेक्षाय तास आत्म कहीजे इण न्याय । दुजा देश भणी पर पर्यव पेक्षाय, तास नोआरम कहीजे न्याय | ५०. तोजा देश भणी अवक्तव्य काय, निज पर पर्यव तणी अपेक्षाय । आत्म नोआत्म अवक्तव्य एह ५१. ति अर्थ आख्यो इम हेर, बारम शतक दशम नुं देश, त्रिदेशिया खंध नां १३ भांगा नीं स्थापना - आ० १ आ० १ १ २ आ० १ १ २ नो० १ ११६ भगवती जोड़ अव ० १ Jain Education International नो० १ २ १ हिं इक वच भंग तेरसमेह ॥ तीन प्रदेशिक खंध भंग तेर । आगल बात सुणो वलि शेष ॥ अव० १ २ नो० १ १ २ भा० १ अव० १ २ १ ५२. दोसौ नं मितरमी ढाल भिक्षु भारीमाल ऋषिराय विशाल । संवत उगणीस बावीस, 'जय जय' संपति हरष जगीस || नो अव १ १ ४३,४४. देसे आदिट्ठे असम्भावपज्जवे देसे आदिठे तदुभयपज्जवे तिपएसिए बंधे नोखापा व बबआयाति य नोआयाति य । ४५,४६. देसे आदिट्ठे असम्भावपज्जवे देसा आदिट्ठा तदुभयपज्जवा तिपएसिए बंधे नोआया य अवत्तव्वाई - आयाओ य नोआयाओ य । ४७,४८. देसा आदिट्ठा असम्भावपज्जवा देसे आदिट्ठे तदुभयपज्जवे तिपएसिए बंधे नोआयाओ य अवत्तव्वं - आयाति य नोआयाति य । ४९, ५०. देसे आदिट्ठे सम्भावपज्जवे देसे आदिट्ठे अस भावपज्जवे देसे आदिट्ठे तदुभयपज्जवे तिपएसिए खंधे आया य नोआया व अवत्तव्वं - आयाति य नोआयाति य । ५१. से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं बच्चइतिपएसिए बंधे सिय आया तं चैव जाव नो नोआयाति य । ( श० १२/२२१) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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