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________________ नां दोय अंश ते माटे । अने त्रिप्रदेशिकादिक नैं विषे ए भांगो हुवे इम सप्तभंगी । द्विदेशी खंध नां ६ भांगा नीं स्थापना आत्मा १ आत्मा नोआत्मा १ अवक्तव्य १ नोआत्मा अवक्तव्य १ ए छह भांगा हुवै, पिण सातमों भांगो आत्मा च नोआत्मा च अवक्तव्य च इम न हुवै, द्विप्रदेशिक नां दोय अंश ते भणी । त्रिप्रदेशिकादिक नैं विषे तो हुवे इम सप्तभंगी । नोआत्मा १ १५. तीन प्रदेशिया खंध नीं जाण, हिव पूछा उत्तर पहिछाण | तीन प्रदेशिक वध भगवान ! आत्म तथा तेहथी अन्य जान || आत्मा अवक्तव्य १ तीन प्रदेशी खंध आश्री १३ भांगा । तिणमें सकल बंध आश्री ३ भांगा तथा बाकी रा द्विकसंजोगिक रा ९ भांगा में देश आश्री ३ भांगा आत्म नोआत्म संघाते जाणवा १६. उत्तर देव श्री जिन हेर, तेहना भांगा कहिये तेर । तोन प्रदेशिक आत्म किवार, कदाचित नोआत्म विचार || १७. कदाचित अवक्तव्य एह, आत्म नोआत्म बिहुं कहि न सकेह । कदाचित आत्मा नोआत्म काय, तुर्य भंग इक वच विहं पाय॥ १८. कदा आत्म इक वच कहिवाय, बहु वचने नोआत्मज पाय । कदाचित आत्म बहु वचनेह, इक वचने नोआत्म कहेह || सातम आठमों नवमों ए तीन भांगा आत्म अवक्तव्य संघाते जाणवा १६. सप्तम भंग कदाचित तेह, इक वचने करि आत्म कह । अवक्तव्य पिण इक वचनेह, आरम नोआत्म कहि न सकेह || २० अष्टम भंग कदाचित ताय, इक वचने करि आत्म कहाय । अवक्तव्य वह वचने तेह, आरम नोआरम कहि न सकेह || २१. नवमे भंग कदाचित धार बहु वचने करि आत्म विचार । अवक्तव्य इक वचने एह आत्म नोआत्म कहि न सकेह || दशमी इग्यारमों बारमों ए तीन भांगा नोआत्म अवक्तव्य संघाते जाणवा२२. दशमों भंग कदाचित तास, इक वचने नोआत्म विमास । अवक्तव्य पिण इक वच एह, आत्म नोआत्म कहि न सकेह ॥ २३. एकादश भंग किवार, इक वचने नोआत्म विचार। अवक्तव्य यह वचने जेह, आत्म नोआत्म कहि न सके। बहु २४. वारम भंग कदाचित सोय, यह वचने नोआत्मज होय । अवक्तव्य इक वचन कहाय, आत्म नोआत्म विहुं कहि सकै नाय ॥ ११४ भगवती जोड़ त्रिसंयोगिक एक तेरमों भांगो आत्म नोआत्म अवक्तव्य संघाते जाणवो२५. तेरमें भंग कदाचित कहाय, एक वचन करि त्रिपद थाय । आरम जने नोजारग कहेह, अवक्तव्य बिहुं कहि न सकेह ॥ Jain Education International १५. आवा से पिएसिए बंचे ? अगे तिपए लिए बंधे ? १६. गोयमा ! तिपए सिए खंधे, सिय आया सिय नोआया त्रिप्रदेशिक स्कन्धे तु त्रयोदश भंगाः । ( वृ० प० ५९५ ) १७. सिय अवत्तव्वं - आयाति य नोआयाति य, सिय आया य नोआया य । १८. सिय आया य नोआयाओ य, सिय आयाओ य नोआया य । १९. सिय आयो य अवत्तव्यं - आयाति य नोआयाति य । २०. सिय आया य अवत्तव्वाई- आयाओ य नोआयाओ य । २१. सिय आयाओ य अवत्तव्वं - आयाति य नोआयाति य । २२. सिय नोआया य अवत्तव्वं - आयाति य नोआयाति य । २३. सिय नोआया य अवत्तव्वाइं आयाओ य नोआयाओ य । २४. सिय नोआयाओ य अवत्तव्वं आयाति य नोआयाति य । २५. सिय आया य नोआया य अवत्तव्वं - आयाति य नोआयाति य । ( श० १२/२२० ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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