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५. कदा आत्म नोआत्म किवार, ए चोथो भांगो अवधार।
कदा आत्म अवक्तव्य जेह, आत्म नोआत्म बिहं कहि न सकेह ॥ ६. कदा नोआत्म अवक्तव्य जेह, आत्म नोआत्म बिहुँ कहि न सकेह। किण अर्थे प्रभु ! ए षट भंग, हिव जिन न्याय कहै तसु चंग ॥
सकल खंध आश्री प्रथम तीन भांगा ७. आत्म पोता नी पर्याय पेक्षाय, पर अपेक्षाय नोआत्म कहाय । निज पर बिहुं नों पर्याय पेक्षाय, अवक्तव्य बिहं कहि सके नांय ॥
५. सिय आया य नोआया य, सिय आया य अवत्तव्वं
आयाति य नोआयाति य । ६. सिय नोआया य अवत्तव्वं-आयाति य नोआयाति य।
(श० १२।२१८) से केणठेणं भंते ! एवं तं चेव जाव नोआया य
अवत्तव्वं-आयाति य नोआयाति य? ७. गोयमा ! अप्पणो आदिठे आया परस्स आदिट्टे नोआया, तदुभपस्स आदिठे अवत्तव्वं दुपएसिए खंधे-आयाति य नोआयाति य ।
९,१०. देसे आदिठे सब्भावपज्जवे देसे आदिळे
असब्भावपज्जवे दुप्पएसिए खंधे आया य नोआया य ।
८. कह्या सकल खंध आश्री भंग तीन, देश आश्री हिवै तीन सुचीन। ___ आत्म नोआत्म बिहं कहिवाय, भंग चोथा नो हिव कहं न्याय ॥ ६. एक देश नां निज पर्यव पेक्षाय, ते देश ने आत्म कहीजै न्याय।
दूजा देश नां पर पर्यव पेक्षाय, ते देश भणी नोआत्म कहाय ।। १०. दोय प्रदेशिक खंध नै उमंग, आत्म नोआत्म ए चोथो भंग।
आत्म अवक्तव्य पंचम भंग, तास न्याय सुणियै चित चंग। ११. एक देश आश्री निज पर्यव पेक्षाय, ते देश ने आत्म कहीजे ताय।
दूजा देश आश्री बिहं पर्यव पेक्षाय, अवक्तव्य बिहुँ कहि सकै नांय॥ १२. दोय प्रदेशिया खंध में चंग, आत्म अवक्तव्य पंचम भंग।
नोआत्म अवक्तव्य षष्ठम भंग, तास न्याय सुणिय चित चंग ॥ १३. एक देश आश्री पर पर्यव पेक्षाय, ते देश नोआत्म कहीजै न्याय।
दूजा देश आश्री बिहुं पर्यव पेक्षाय, अवक्तव्य बिहुँ कहि सकै नाय।। १४. दोय प्रदेशिया खंध रै मांय, ए छट्ठो भांगो इम पाय ।
तिण अर्थ आख्यो म्हैं एम, दोय प्रदेशिक षट भंग तेम ।।
११,१२. देसे आदिठे सम्भावपज्जवे देसे आदिठे तदुभय
पज्जवे दुपएसिए खंधे आया य अवत्तव्वं-आयाति य नोआयाति य।
वा०-द्विप्रदेशिक खंध पोता नी पर्याय करिकै आदिष्ट-अंगीकार कीधे छते आत्मा हुवै १ । इम पर पर्याय करिक अंगीकार कीधे छते नोआत्मा कहियै २ । आत्म-पर बिहुँ पर्याय अंगीकार किये छते ए द्विप्रदेशिक खंध अवक्तव्य वस्तु हुवै, ते किम ? निकेवल-आत्मा निकेवल अनात्मा ए बिहुं कहि न सके ३ । एतो सकल खंध आश्री तीन भांगा कह्या ।
हिवै देश आश्री तीन भांगा कहै छ-द्विप्रदेशिक खंध नै प्रथम एक देश ने सद्भाव पर्यव-स्व पर्याय आश्रयी आत्मा कहिये । अनै बीजा देश नै असद्भाव पज्जव ते प्रथम देश नां पर्यव नी अपेक्षाय अथवा अन्य वस्तु नां पर्यव नी अपेक्षाय इम पर पर्याय अपेक्षाये करी नोआत्मा कहियै । इम आत्मा नोआत्मा बिहुं कहिये, ए चोथो भांगो ४।
तथा ते द्विप्रदेशिक ने प्रथम एक देश नै स्व पर्याय नी अपेक्षाय करी आत्मा कहिय अन बीजा एक देश नै स्व पर्याय अने पर पर्याय ए बिहुं पर्याय नी अपेक्षाये करी अवक्तव्य कहिये । इम आत्मा अनै अवक्तव्य ए पांचमो भांगो हुवै ५।
तथा द्विप्रदेशिक नां प्रथम एक देश नैं पर पर्याय नी अपेक्षाय करिके नोआत्मा कहिय अन बीजा एक देश नै स्व-पर ए बिहुं नां पर्यव नी अपेक्षाय करिकै अवक्तव्य कहिये । इम नोआत्मा अनं अवक्तव्य ए छठो भांगो हुवै ६।।
आत्मा अनं नोआत्मा अनं अवक्तव्य एह सातमों भांगो न हुवै, द्विप्रदेशिक *लय : इण पुर कंबल कोय न लेसी
१३,१४. देसे आदिठे असब्भावपज्जवे देसे आदिठे
तदुभयपज्जवे दुपएसिए खंधे नो आया य अवत्तव्वंआयाति य नोआयाति य । से तेणट्टेणं तं चेव जाव नोआया य अवत्तव्यं आयाति य नोआयाति य ।
(श० १२२२१९) वा०—'अप्पणो' त्ति स्वस्य पर्यायः 'आदिद्रुत्ति आदिष्टे ---आदेशे सति आदिष्ट इत्यर्थः द्विप्रदेशिकस्कन्ध आत्मा भवति, एवं परस्य पर्यायैरादिष्टोऽ नात्मा तदुभयस्य-द्विप्रदेशिकस्कन्धतदन्यस्कन्धलक्षणस्य पर्यायरादिष्टोऽसाववक्तव्यं वस्तु स्यात, कथम् ? आत्मेति चानात्मेति चेति । तथा द्विप्रदेशत्वात्तस्य देश एक आदिष्टः, सद्भावप्रधानाः-सत्तानुगताः पर्यवा यस्मिन् स सद्भावपर्यवः .."द्वितीयस्तु देश आदिष्ट: असद्भावपर्यव: परपर्यायरित्यर्थः, परपर्यवाश्च तदीयद्वितीयदेशसम्बन्धिनो वस्त्वन्तरसम्बन्धिनो वेति । ततश्चासौ द्विप्रदेशिक: स्कन्धः क्रमेणात्मा चेति नोआत्मा चेति, तथा तस्य देश आदिष्ट : सद्भावपर्यवी देशश्चोभयपर्यवस्ततोऽसावात्मा चावक्तव्यं चेति । तथा तस्यैव देश आदिष्टोऽसद्भावपर्यवो देशस्तूभयपर्यवस्ततोऽसौ नोआत्मा चावक्तव्यं च स्यादिति । सप्तमः पुनरात्मा च नोआत्मा चावक्तव्यं चे-येवंरूपो न भवति द्विप्रदेशिके द्वय शत्वादस्य त्रिप्रदेशिकादौ तु स्यादिति सप्तभंगी।
(वृ० ५० ५९५)
श० १२, उ० १०, ढा० २७०
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