SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२. निज पर्याय सर्व रे मांय, ते माटै ते आत्म कहाय। पर पर्याय नहीं सहु मांहि, तिणसुं नोआत्म कहीजै ताहि ।। २३. बिहु पर्याय तणी अपेक्षाय, अवक्तव्य कहियै इण न्याय। आत्म पिण तसु कहि सकै नांय, नोआत्म पिण कहिय न जाय।। २४. तिणसू अवक्तव्य कहियै ताय, बिहं पर्याय तणी अपेक्षाय । प्रथम कल्प नीं पूछा कीध, श्री जिन उत्तर दियै प्रसीध ॥ सौधर्म आदि स्वर्ग आत्मा या नोआत्मा ? २५. सौधर्म कदा आत्म कहिवाय, कदा नोआत्म कहीजै ताय। कदा अवक्तव्य कहीजै जेह, आत्म नोआत्म बिहं कहि न सकेह ।। २४. आया भंते ! सोहम्मे कप्पे-पुच्छा । २६. किण अर्थे ? तब जिन कहै वाय, आतम निज पर्याय पेक्षाय। नोआतम पर पर्याय पेक्षाय, उभय अपेक्षा अवक्तव्य थाय ।। तिण अर्थे तीनू अवलोय, जाव अच्युतकल्प इम जोय ।। २५. गोयमा ! सोहम्मे कप्पे सिय आया सिय नोआया सिय अवत्तव्वं-आयाति य नोआयाति य। (श०१२।२१४) २६. से केणट्टेणं भंते ! जाव आयाति य नोआयाति य? गोयमा ! अप्पणो आइठे आया, परस्स आइट्ठे नोआया, तदुभयस्स आइठे अवत्तव्वं-आयाति य नोआयाति य । से तेणठेणं तं चेव जाव आयाति य नोआयाति य । एवं जाव अच्चुए कापे । (श० १२।२१५) २७,२८. माया भंते ! गेवेज्जविमाणे ? अण्णे गेवेज्ज विमाणे? एवं जहा रयणप्पभा तहेव । एवं अणुत्तरविमाणा वि । एवं ईसिपम्भारा वि। (श० १२।२१६) २७. प्रश्न ग्रैवेयक विमाण नों जान, स्वपर्याइं आत्म पिछान । पर पर्याय नहीं तिण मांहि, तिणसूनोआत्म कहीजै ताहि ।। २८. उभय पर्याय तणी पेक्षाय, अवक्तव्य बिहं कहि सके नाय। रत्नप्रभा जिम ए अवधार, एवं अनुत्तर ईसिप्पभार ।। २६. बारम शतक दशम - देश, बेसो गुणंतरमी ढाल विशेष । भिक्षु भारीमाल ऋषिराय पसाय, 'जय-जश'आनंद हरष सवाय ।। ढाल: २७० दूहा १. हिव परमाणू आदि नों, गोयम प्रश्न करंत । उत्तर प्रभुजी वागरे, ते सुणज्यो धर खंत ।। परमाणु स्कन्ध आदि आत्मा या नोआत्मा? २. *आतम प्रभु ! परमाणु कहाय, अथवा अनेरो कहियै ताय? सौधर्मकल्प कह्यो ? जेम, परमाण पिण कहिवो तेम ।। ३. आतम प्रभ ! बे प्रदेशिक खंध, अथवा अन्य प्रदेशिक बंध ? भाखै षट भांगा जिनराय, आत्म कदाचित ए कहिवाय ।। २. आया भंते ! परमाणुपोग्गले ? अण्णे परमाणु - पोग्गले ? एवं जहा सोहम्मे तहा परमाणुपोग्गले वि भाणियब्वे। (श० २।२१७) ३. आया भंते ! दुपएसिए खंधे ? अण्णे दुपएसिए खंधे? गोयमा ! दुपएसिए खंधे सिय आया । द्विप्रदेशिकसूत्रे षड्भंगाः। (वृ० प० ५९५) ४. सिय नोआया सिय अवत्तव्वं-आयाति य नोआयाति य। तत्राद्यास्त्रयः सकलस्कन्धापेक्षाः पूर्वोक्ता एवं तदन्ये तु त्रयो देशापेक्षाः। (वृ० प० ५९५) ४. कदाचित नोआत्म कहाय, अवक्तव्य कदाचित थाय । सकल खंध पेक्षा भंग तीन, देश अपेक्षा हिव त्रिहं चीन ।। *लय : इण पुर कंबल कोय न लेसी ११२ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003620
Book TitleBhagavati Jod 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages460
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy