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________________ , ६६. अथवा एक रत्न इक सक्कर, इक जीव धूमप्रभा में उपजे ६७. अथवा एक रत्न इक सक्कर, एक तमा रे मांही उपजे ६८. अथवा एक रत्न इक सक्कर, एक तमतमा मांही उपजे एक पंक पहिछानी । पंचम भंग प्रमानी ॥ एक पंक प्राप्तानी । षष्टम भंग वखानी ॥ एक पंक अथवानी । भंग सप्तमो जानी ॥ हि रत्न सक्कर धूम थी दो भांगा कहै छँ ६६. अथवा एक रत्न इक सक्कर, इक जीव धूम प्रभा नी 1 एक तमा रै मांही उपजै, अष्टम भंग आख्यानी ॥ ७०. अथवा एक रत्न इक सक्कर, एक धूम कहिवानी । एक तमतमा मांही उपजै, नवमों भंग विधानी ॥ हिव रत्न सक्कर तम थी १ भांगो कहै छँ ७१. अथवा एक रत्न इक सक्कर, इक जीव तमा मघानी । एक तमतमा मांही उपजे दशम भंग दाख्यानी || ए रत्न सक्कर थी १० भांगा कह्या । हिव रत्न वालु थी छह भांगा, ते रत्न वालु पंक थी तीन भांगा प्रथम कहै छँ - ७२. अथवा एक रत्न इक वालु, इक जीव घूमप्रभा में उपर्ज, ७३. अथवा एक रत्न इक बालू, एकतमा छुट्टी में उपर्ज, ७४. अथवा एक रत्न इक वालु, एक जीव तमतमा उपजै, हिवं रत्न वालु धूम थी दोय भांगा कहे छ७५. अथवा एक रत्न इक वालु, एक तमा छुट्ठी में उपजै, ७६. अथवा एक रत्न इक वालु, एक तमतमा मांही उपजै, हि रत्न वालु तमा थकी एक भांगो कहै छ एक पंक में जानी । ग्यारम भंग पिछानो ॥ एक पंक दुखदानी | द्वादशमों भंग ठानी ॥ एक पंक में जानी । भंग तेरमों ठानी ॥ इक जीव धूमप्रभा नीं । भंग चवदमों जानी ॥ एक धूम में जाती । भंग पनरमों आनी ॥ ७७. अथवा एक रत्न इक वालु, एक तमा दुखखानी । एक तमतमा मांही उपजे भंग सोलमों जानी ॥ 1 Jain Education International हिवे रत्न पंक थी तीन भांगा, ते पहिला रत्न पंक धूम थी दोय भांगा कहै छं - ७८. अथवा एक रत्न इक पंके, एकतमा रै मांही उपजै, ७६. अथवा एक रत्न इक पंके, एक तमतमा मांही उपजै, हि रत्न पंक तम थी एक भांगो कहै छे८०. अथवा एक रत्न इक पंके, एक तमतमा मांही उपजै, एक धूम अघखानी । भंग सतरमों जानी ॥ एक धूम अघखानी । भंग अठारम आनी ॥ एक तमा उपजानी । भंग गुनीसम जानी ॥ ६६. अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करपभाए एगे पंकप्पभाए एगे धूमप्पभाए होज्जा, ६७. अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए एगे पंकभाए एगे तमाए होज्जा, ६८. अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए एंगे पंकष्पभाए एगे असत्तमाए होज्जा, ६६. अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए एगे घूमप्पभाए एगे तमाए होज्जा, ७०. अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए एगे धूमभाए एगे असत्तमाए होज्जा, ७१. अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करपभाए एगे तमाए एगे असत्तमाए होज्जा, ७२. अहवा एगे रयणप्पभाए एगे वालुयप्पभाए एगे पंकप्प भाए एगे धूमप्पभाए होज्जा, ७३. अहवा एगे रयणप्पभाए एगे वालुयप्पभाए एगे पंकप्प भाए एगे तमाए होज्जा, ७४. अहवा एगे रयणप्पभाए एगे वालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए एगे सत्तनाए होज्जा, ७५. अहवा एगे रयणप्पभाए एगे वालुयप्पभाए एगे घूमप्पभाए एगे तमाए होज्जा, ७६. अहवा एगे रयणप्पभाए एगे वालुयप्पभाए एगे धूमभाए एने बताए हो, ७७. अहवा एगे रयणप्पभाए एगे वालुयष्पभाए एगे तमाए एगे असत्तमाए होज्जा, ७८. अहवा एगे रयणप्पभाए एगे पंकष्पभाए एगे धूमप्पभाए एगे तमाए होज्जा, ७२. अवाएगे भाए एगे पंकप्पभाए एने भूमध्यभाए एगे अमतमाए होना, ८०. अहवा एगे रयणप्पभाए एगे पंकप्पभाए एगे तमाए एगे समाए होना, ० ६, उ० ३२, ढाल १७७ ६१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003619
Book TitleBhagavati Jod 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages490
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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