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६०. रत्नप्रभा थी भंग पैंताली, सक्करप्रभा थी तीसो।
वालु अठार पंक थकी त्रिण, धम थकी इक दीसो।। ६१. च्यार जीव नां त्रिकसंजोगिक, त्रिहं विकल्प करि तेहो।
हवै एक सौ नैं पंच भंगा, विधि सेती गिण लेहो।
६०,६१. चतुष्प्रवेशे त्रिकयोगे
४५ रत्नप्रभा ३० शर्कराप्रभा १८ वालुकाप्रभा ६ पंकप्रभा' ३ धूमप्रभा (वृ० प० ४४२)
च्यार जीव रा त्रिक संजोगिया नां विकल्प तीन, भांगा १०५ । रत्न थी ४५ । ते रत्न सक्कर थी १५ भांगा ते प्रथम विकल्प करि रत्न सक्कर थी ५ भांगा कहै छ ...
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स
वा
पं
तम
हिवं दूजे विकल्पे रत्न सक्कर थी ५ भांगा कहै छै
हिवं तीजे विकल्प करि रत्न सक्कर थी ५ भांगा कहै छ
| १२ | २ | २ | १| • | १ | • • | |
१,२. जोड़ की गाथा ६० में पंकप्रभा से तीन भंगों का
उल्लेख है और धूमप्रभा से एक भंग का। इस गणना से चार जीवों के त्रिक संयोगिक १०५ भंगों की संगति नहीं बैठती। पर इससे आगे ६१वीं गाथा में 'त्रिहुं विकल्प करि तेहो' लिखा गया है। यह संकेत उक्त दोनों-पंकप्रभा और धूमप्रभा के लिए दिया गया है। इसके अनुसार पंकप्रभा से एक-एक विकल्प के तीन-तीन भंग करने से तीन विकल्प से नौ भंग हो जाते हैं। इसी प्रकार धूमप्रभा से एक विकल्प का एक भंग करने से तीन विकल्प के तीन भंग हो जाते हैं।
५६ भगवती-जोड़
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