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________________ २ ३ ४ ५ ६ ७ च्यार जीव नां इकसंजोगिया भांगा ७ का । र o o ० o ० स o o Jain Education International o ० o वा o ० x o ० पं o O o ० ५. च्यार जीव नां हिव कहूं, हिं विकल्प करिने त धू त ० o o o ४ o ० o o ४ o तम o ० ० 0 ४ द्विकसंजोगिक न्हाल | भंगा त्रेसठ भाल ।। हिवँ च्यार जीव नां द्विकसंजोगिक नां विकल्प तीन, भांगा ६३ कहै छरत्न थी १८, सक्कर थी १५, वालु थी १२, पंक थी ६, धूम थी ६, तम थी ३ भांगा, त्रिहुं विकल्प करि इम ६३ भांगा हुवै । प्रथम रत्नप्रभा थी एक विकल्प नां षट भांगा हुवं । ते तीन विकल्प करि १८ भांगा कहै छै - *सुगुण सुखदाई रे, में, । सुगुण सुखदाई रे, गंगेय तणां ए प्रश्न प्रवर वरदाई रे ६. तथा जीव इक रत्न प्रभा में त्रिण सक्कर रे मांही रे । अथवा एक रत्न में उपजे तीन वालुका पाई रे। ७. अथवा एकज रत्नप्रभा तीन पंक रै मांही । तथा जीव इक रत्नप्रभा में तीन धूम दुखदाई ॥ ८. अथवा एकज रत्नप्रभा में तीन तमा कहिवाई | तथा जीव इक रत्नप्रभा में तीन तमतमा मांही ॥ १. घर विकल्प करि रत्नप्रभा थी, ए पट भंगा कहिये । धुर दूजा विकल्प करि पट भंगा, हिव आगल इम लहिये ॥ १०. तथा जीव बे रत्नप्रभा में दोय सक्कर ₹ मांही। अथवा दोय रत्न रे मांहे, दोय वालुका पाई ॥ ११. अथवा दोय रत्न रे माहे, दोय पंक दुखदाई। तथा जीव वे रत्नप्रभा में दोय धूम कहिवाई ॥ १२. अथवा दोय रत्न १ मांहे, दोय तमा रे मांही। अथवा दोय रत्न रे मांहे, दोय तमतमा पाई ॥ *लय : गुणी गुण गावो रे ५० भगवती-जोड़ [पदं] For Private & Personal Use Only द्विक्संयोगे तु तासामेकस्य इत्यनेन नारकोत्पादविक ल्पेन रत्नप्रभया सह शेषाभिः क्रमेण चारिताभिर्लब्धाः षट्, द्वौ द्वावित्यनेनापि षट्, त्रय एक इत्यनेनापि षडेव, तदेवमेतेादश शर्कराप्रभवा तु तथैव शिषु पूर्वोक नारकोत्पादविकल्पे पञ्च पञ्चेति पञ्चदश, एवं वालुकाप्रभया चत्वारश्चत्वार इति द्वादश, पंकप्रभया त्रयश्त्रय इति नव, धूमप्रभया द्वौ द्वाविति षट्, तमः प्रभयैकैक इति त्रयः, तदेवमेते द्विकसंयोगे त्रिषष्टिः । (बु०प०४४२) ६. अहवा एगे रयणप्पभाए तिण्णि सक्करप्पभाए होज्जा । अया एगे रमणभाए तिष्णि रानुपप्यभाए होना ७८. एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए तिष्णि असत्तमाए होज्जा | १०-१२. अहवा दो रयणप्पभाए दो सक्करप्पभाए होज्जा एवं जाव अहवा दो रयणप्पभाए दो आहेसत्त माए होज्जा | www.jainelibrary.org
SR No.003619
Book TitleBhagavati Jod 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages490
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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