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________________ I " खाते से भणी उपाएँ मुझे गुग्यो दिन मुख आयो हरत वस्त्रादिक देव यो इस नयी ते मानमरर्ण उपास गुप्पो संभये अनंए उपा मुख गुण्यो, ते मार्ट ते संसार नां द्रव्य मंगलीक ने अर्थ लोकिक खाते छ, धर्म देते नहीं। पिण जे भगवती शतक १६ वें दूजे उद्देसे ( सूत्र ३६ ) कह्यो - जिवारं शक्र उघाड़े मुख भाषा बोले, तिवारं ते सावज भाषा, अने जिवारं शक्र हस्तादिक तथा वस्त्रादिक मुख बाटो देश बोस तिवारे निखद्य भाषा हुने तिह वृतिकार कहाजीवनां संरक्षण थकी निरवद्य भाषा हुवे । पिण इस नयी कहा. - जे मुख आडो वस्त्रादिक देइ बोलं ते विनय छ । इम विनय थी निरवद्य भाषा नथी कही । अने जे देवलोक नं विषै बेइंद्रियादिक प्रज्याप्तानां स्थान नथी अनं मनुष्य लोक नैं विषे इंद्रादिक, तेहनां मुख ने विषे माखी माछरादिक प्रवेश नों उपद्रव न संभव, ते भणी इंद्र मुख आडो वस्त्रादिक देइ बोलै ते वायुकाय नां जीव नी रक्षा अन उघाड़े मुख 'बोल तिहां वायुकाय नां जीव नीं हिंसा जाणवी ए सूत्रे इंद्रनीं सावद्य निरवद्य भाषा कही, ते वचन देखतां जिवारै शक्र धर्मं रूप वचन कहे तिवार उघाड़े मुख नथी बोलें । अनं जिवारे धर्म वार्ता विण अन्य वारता लोकिक संबंधी कहै, तिवारी उघाड़े मुख बोलें, एहवूं दीर्स छ । अने छंद, नमोत्थुणं गुण्यो तिहां मुखबाही हस्त वस्त्रादिक नोपाठ नभी कही ते भगी उषा मुख गुण्या माटै ए सावज भाषा संसार नां मंगलीक हेते जाणवी पिण धर्मं हेते नथी । करी स्तवना करें। जीमणो गोडो धरती वलिका - जिन प्रतिमा ने लोम हस्त नीं पूंजणी करी पूंजे, जले करी स्नान करावं, पंदने करि मात्र लीये व युगल पहिरावं, पुष्पादिक चढावे, मुख आगल मूकै जाव धूप खेवं एतला बोल कह्या, पिण मुख आडी जयणा नथी कही । बलि नमोत्थुणं गुग्यो त्यां पिण कह्यो एक सौ आठ छंद नां दोष रहित ग्रंथे करी युक्त वली पुनरुक्त दोष रहित मोटा पदे करी युक्त एहवा छंदे वलि सात-आठ पग पाछो ओसरी, डावो गोडो ऊंचो राखी, नां तला विषे स्थापी तीन वार मस्तक धरणी तल ने विषे धरती सूं ऊंचो मस्तक राखी ने हाथ जोड़ी शिर आवर्त करीनें नमोत्थुणं गुण, एतली विधि आखी । पिण इम न कह्यो–मुख आडी जयणा करीनं नमोत्थुणं गुणे, ते मार्ट ए छंद ने नमोत्थुणं उघाड़े मुख गुण्या संभवे । जिम पूंजणी सूं प्रतिमा ने पूंज, स्नानादिक जाव धूप खेवं तिम संसार नां मंगल हेते प्रतिमा ने नमोत्थुणं गुण्यो ते पिण सावज जाणवो । लगाडी ने कांयक इहां प्रथम शक्र इंद्राभिषेक करी अलंकार सभा में आवै, आवी वस्त्र-गहणा पहिरथा, व्यवसाय सभा में आवें, आवी पुस्तक- रत्न वांची 'धम्मिय ववसाइयं गिव्ह (सू० २००) एवो पाठ को पर्छ सिद्धायतन आयें, आवी ने जनप्रतिमापूजी द्वारशाखा, पूतस्यो, सर्प नां रूप, मुख-मंडपादिक, तोरण, बावड़ी, दाढा, हथियार प्रमुख पूज्या । इहाँ कोई कहे प्रतिमा पूजी ते धर्म-व्यवसाय मध्ये कही छ, तेहनो उत्तर - ए धर्म - व्यवसायपद कह्यो, ते निकेवल प्रतिमा पूजवा आश्रयी ने नथी कोए धर्म-सा ब्रह्मोतिया पर्छ जिन प्रतिमा द्वार शाखा, पूतस्यां सर्प नां रूप, मुख मंडपादिक जे-जे वस्तु पूजी, पोता नां जीत आचार नीं विध करी, ते सर्व धर्म व्यवसाय मध्य आवी । ठाणांगे दशमें ठाणें दश धर्म कह्या, तिणमें कुलधर्म कह्यो ते मार्ट ए धर्मग Jain Education International For Private & Personal Use Only श० १०५ ७० ६ डाल २२४ ३६९ www.jainelibrary.org
SR No.003619
Book TitleBhagavati Jod 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages490
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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