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________________ २५०. जाव धूवं दलयइ। (राय० सू० ३५६) वा०–सभाया: सुधर्माया बहुमध्यदेशभागेऽर्चनिका पूर्ववत् करोति, कृत्वा सुधर्माया सभाया दक्षिणद्वारे समागत्य तस्य अर्चनिकां पूर्ववत् कुरुते, ततो दक्षिणद्वारेण विनिर्गच्छति, इत ऊर्ध्व यथैव सिद्धायतनानिष्कामतो दक्षिणद्वारादिका दक्षिणनन्दापुष्करिणीपर्यवसाना पुनरपि प्रविशत: उत्तरनन्दापुष्करिण्यादिका उत्तरद्वारान्ता ततो द्वितीयद्वारान्निष्कामत: पुर्वद्वारादिका पूर्वनन्दापुष्करिणीपर्यवसाना अर्चनिकावक्तव्यता सैव सुधर्मायां सभायामप्यन्यूनातिरिक्ता वक्तव्या। तत: पूर्वनन्दापुष्करिण्या अर्चनिकां कृत्वा उपपातसभा पूर्वद्वारेण प्रविशति प्रविश्य च मणिपीढिकाया देवशयनीयस्य तदनन्तरं बहुमध्येदेशभागे प्राग्वदर्चनिकां विदधाति, ततो दक्षिणद्वारे समागत्य तस्यार्चनिकां कुरुते । (वृ० प० २६५,२६६) २५०. जावत छै धूप सुगंधो, इम धूप उखेवी इंदो। कही सभा सुधर्मा नी बातो, हिवै सुणो आगल अवदातो॥ वा०-- इहां वृत्तिकार कह्य-सुधर्मा सभा नां बहु मध्य देश भाग नी पूर्ववत पूजा करी ने, सुधर्मा सभा नै दक्षिण द्वारे आवी नं, ते द्वार नी पूजा पूर्ववत कर, तिवार पछ दक्षिण द्वार करिक नीकल, एह थकी आगल जिण प्रकार करिकहीज सिद्धायतन थकी नीकलतो छतो दक्षिण द्वारादिक दक्षिण नंदा-पुष्करणी पर्यवसान वली प्रवेश थकी उत्तर नंदा-पुष्करण्यादिक थकी उत्तरद्वारांत पूज्यो। तिवार पछै द्वितीय द्वार प्रत पूजी पूजी नीकलतो पूर्व द्वारादिक पूर्व नंदा-पुष्करणी पर्यवसान अर्चनिका कही, तिकाहीज सुधर्मा सभा ने विषे पिण कहिवी। पिण ऊणी अधिकी नहीं। तिवार पछै पूर्व नंदा-पोवखरणी नी अर्चनिका करीनै उपपात सभा नै पूर्व द्वारे करी पेसे, पेसी ने मणिपीठका नी अने देव-सेज्या नी पूजा करी तदनंतर बह मध्य देश भाग नी पूर्ववत अर्चनिका करी। तिवारै पछै उपपात सभा नै दक्षिण द्वारे आयो। ए अधिकार वृत्ति में कह्यो अने सूत्रे सुधर्मा सभा नै तीन दिशे द्वार मुखमंडपादिक पुष्करणी तांइ पूजै- इम नथी कह्य । अने उपपात सभा में विषे पिण पूर्व द्वारे पेसी मणिपीटिका देवसेज्या बहु मध्य देश भाग पूज-ए पिण नथी कह्यो। पिण ए सर्व पूज्या संभव छ। सिद्धायतन नै तीन द्वारादिक नंदा पुष्करणी तांइ पूजे काज छ, तिम इहां पिण जाणवू । इण सूत्रे हीज प्रथम विस्तार कह्यो, तिहां सिद्धायतन ने तीनूं दिशे मुख मंडपादिक कह्या । अने सुधर्मा सभा ने पिण तीनूं दिशे मुख मंडपादिक नंदा पोक्खरणी लग छ, ते माटै ए पूजा संभव बली आगन उपपात सभा ने तीन दिशे मुख मंडपादिक पूज। तिहां भी भलावण दीधी, ते माटै सुधर्मा सभा ने तीनूं दिशे द्वार अनै मुखमडपादिक पूजा संभव। अत्र चरचा लिखिये छै___ कोई कहै-ए सिद्धायतन में चैत्य थूभे जिन प्रतिमा पूजी नमोत्थुणं गुण्यो, ते धर्म हेते छ । तेहनो उत्तर-ए जिन प्रतिमा नी द्रव्य पूजा आरम्भ सहित छ। ए पूजा नी तीर्थकर आज्ञा देवै नहीं। साधु दीक्षा लीधी तिवारै सावज जोग नां पचखाण किया । तिण में द्रव्य पूजा नां त्रिविधे-त्रिविधे पचखाण आया। ते द्रव्य पूजा कर नहीं, कराव नहीं, करता ने अनुमोदै पिण नहीं । जो ए धर्म नों कार्य छै तो साधु अनुमोदना किम न कर? अन ए द्रव्य पूजा नी अनुमोदना कियां साधु नै पाप लाग, व्रत भाग तो द्रव्य पूजा करण वाला नै धर्म किम हुवै ? जो द्रव्य पूजा में धर्म छ तो धर्म अनुमोदना कियां पाप किम ह? अनै व्रत किम भाग? श्रावक सामायक पोसा कर तिहां 'सावज्जं जोग पच्चक्खामि' पाठ कहैतिण में ए द्रव्य पूजा ने सावज जाणनै त्यागी छ । ते सावज कार्य सामायक पोसा विना खुलो करै, तिणन पिण धर्म नथी । तिण - पिण केवली नी आज्ञा नथी। अने आज्ञा बार धर्म पुन्य रो अंश नहीं। ते भणी ए द्रव्य पूजा सावज जाणवी । इंद्रे कीधी ते लोकिक खाते, संसार नां द्रव्य मंगलीक हेते, पिण धर्म हेते नहीं । ___ तुंगिया नगरी प्रमुख नां श्रावक स्थविर प्रमुख ने बंदवा गया । तिहां दधि अक्षत, द्रोबादिक द्रव्य मंगलीक संसार हेते साचव्या, ते लोकिक खाते छ। तिम ए पिण द्रव्य पूजा लोकिक खाते जाणवी अने नमोत्थुणं गुण्यो ते पिण लोकिक ३६८ भगवती-जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003619
Book TitleBhagavati Jod 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages490
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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