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३५. गीतरति इंद्रच्यार महिषी, सुघोषा विमला सुस्वरा जाणी।
सरस्वती सहस्र परिवार शेष तिम, गीतजश नै पिण इम माणी ॥
३६. ए सर्व ने काल तणी पर कहिवो, णवरं आप आपणो छ नाम।
ते सरीखे नामे रजधानी सिंहासण, कहिवो शेष तिमहिज तमाम ।।
३५. गीयरइस्स णं-पुच्छा
अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-सुघोसा, विमला, सुस्सरा, सरस्सई । तत्थ णं एगमेगाए देवीए एगमेगं देवीसहस्सं परिवारे सेसं
तं चेव । एवं गीयजसस्स वि । ३६. सव्वेसि एएसि जहा कालस्स नवरं-सरिसनामियाओ रायहाणीओ सीहासणाणि य, सेसं तं. चेव ।
(श० १०८६) ३७. चंदस्स णं भंते ! जोइसिदस्स जोइसरण्णो - पुच्छा।
अज्जो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा -
चंदप्पभा, दोसिणाभा, अच्चिमाली, पभंकरा। ३८. एवं जहा जीवाभिगमे जोइसियउद्देसए तहेव ।
३७. ज्योतिषी इंद्र चंद्र नों पूछा, जिन कहै अग्रमहेषी च्यार।
चंद्रप्रभा नैं जोत्स्नाभा, अचिमाली में प्रभंकरा सार ।।
३६. सूरस्स वि सूरप्पभा, आयवा, अच्चिमाली पभंकरा
३८. इम जिम जीवाभिगम सूत्र में, कह्यो ज्योतिषी उदेशा मझार।
सर्व इहां पिण तिमहिज कहिवो, इक-इक चिहं-चिहं सहस्र परिवार ।। ३६. सूर्य नै पिण इमहिज कहिy, अग्रमहेवी च्यार उदार ।
सुरप्रभा नै दुजी आदित्या', अचिमाली नै प्रभंकरा सार । ४०. शेष थाकतो तिमहिज कहिवो, जाव सुधर्मा सभा रै मांय।
मिथन-प्रत्यय भोग भोगविवा, निश्चय करिने समर्थ नांय ॥ ४१. महाग्रह अंगार ने भगवंत, केतली अग्रमहेषी कहाय ?
जिन कहै च्यार विजया वेजयंती, जयंती में अपराजिता ताय ।।
४२. इक-इक देवी रूप विकू, शेवं तं चेव चंद्र जिम आख्यो।
णवर विमान अंगार अवतंसक, अंगार नाम सिंहासण भाख्यो।।
४३. इम व्याल नामे महाग्रह पिण कहिवो,
एवं अठ्यासी महाग्रह भणवा । जावत भावकेतू पिण णवर, विमान सिंहासण स्व नाम थणवा ॥ ४४. प्रभ ! शक नै अग्रमहेषी नीं पूछा, जिन कहै अष्ट महिषी जाणी। पद्मा शिवा सूची' अंजू नैं अमला,
अप्सरा नामिका रोहिणी माणी ।।
४०. रोसं तं चेव जाव नो चेव णं मेहुणवत्तियं ।
(श० १०६०) ४१. इंगालस्स णं भंते ! महागहस्स कति अग्गमहिसीओ
पुच्छा । अज्जो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा -
विजया, वेजयंती, जयंती, अपराजिया। ४२. तत्थ णं एगमेगाए देवीए एगमेगं देवीसहस्सं परिवारे
सेसं जहा चंदस्त नवरं-इंगालवडेंसए विभाणे इंगल
गंसि सीहासणं सि, सेसं तं चेव। ४३. एवं वियालगस्स वि । एवं अट्ठासीतिए वि महग्गहाणं
भाणियव्वं जाव भावके उस्स नवरं-वडेंसगा सीहास
णाणि य सरिसनामगाणि सेसं तं चेव। (श०१०६१) ४४. सक्कस्स णं भते ! देविंदस्स देवरणो—पूच्छा ।
अज्जो ! अट्ठ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहापउमा, सिवा, सची, अंजू, अमला, अच्छरा, नवमिया,
रोहिणी ४५. तत्य ण एपमेगाए देवीए सोलस-सोलस देवोतहस्सा परिवारो पण्णत्तो।
(श० १०६२) पभू णं ताओ एगमेगा देवी अण्णाई सोलस सोलस
देवीसहस्साई परिवारं विउवित्तए ? ४६. एवामेव सपुव्वावरेणं अट्ठावीसुत्तरं देवीसयसहस्सं । सेत्तं तुडिए।
(श० १०६३)
४५. इक-इक देवो मैं प्रभ भाख्यो, सोले-सोले सहस्र नों परिवार।
समर्थ इक-इक सुरी अनेरा, वैक्रिय करण सोल-सोल हजार ।।
४६. एहीज पूर्व अपर कही सगली, इक लक्ष सहस्र अठावीस रूप ।
परिचारणा - अर्थे विकुर्व, तेह तुटित वर्ग कहियै अनूप ॥ १. जी० प० ३६६८-१०३६ २. अंगसुत्ताणि (१०।६०) 'आयवा' पाठ है । आयच्चा को वहां पाठान्तर में रखा
गया है। ३. अंगसुत्ताणि १०६२ में सची पाठ है। वहां सेया और सुयी को पाठान्तर में
रखा गया है। ४. एणी पर सपूर्वापर संघाते एक लाख अठावीस सहस्र नै सोल सहस्र गुणा करिय तिवार २०० दोय सौ कोड़ि ४८० लाख एतला रूप थावै तेहन तुटित वर्ग कहिये ।
श०१०, उ०५, ढाल २२३ ३४५
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