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४७. समर्थ छै प्रभु ! शक्र देवेंद्रज, देवराजा सौधर्म देवलोक।
विमान सौधर्म अवतंसक नै विषे, सभा सुधर्मा नैं विषे संयोग । ४८. शक्र सिंहासणे तुटिक वर्ग संग, शेष चमर नीं परै सहु कहिवो।
णवरं परिवार जे तीजा शतक' नों, मोय उद्देशो पहिलं गहिवो ।।
४६. शक देवेंद्र नों सोम महाराजा, अग्रमहिषी किती प्रभु ! तास ।
जिन कहै च्यार रोहिणी, मदना चित्रा नैं सोमा रूप गुणरास ॥
५०. तिहां एक-एक देवी शेष चमर नां, लोकपाल जिम नवरं कहीजै।
सयंप्रभ विमाने सभा-सुधर्मा सोम सिंहासन शेष तिमहीजै ॥
५१. इम जाव वेसमण लोकपाल लग, णवरं जुजुआ विमाण नां नाम।
तीजा शतक' जिम संझप्पभ वरसिट्ठ सयंजल वग्गु ताम ।।
४७. पभू णं भंते ! सक्के देविदे देवराया सोहम्मे कप्पे,
सोहम्मवडेंसए विमाणे, सभाए सुहम्माए, ४८. सक्कंसि सीहासणंसि तुडिएणं सद्धि दिव्वाई भोग
भोगाई भुंजमाणे विहरित्तए। सेसं जहा चमरस्स
नवरं-परियारो जहा मोउद्देसए। (श० १०६४) ४६. सक्कस्स णं देविदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो कति
अग्गमहिसीओ-पुच्छा। अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा
रोहिणी, मदणा, चित्ता, सोमा ५०. तत्थ णं एगमेगाए देवीए एगमेगं देवीसहस्सं परिवारे,
सेसं जहा चमरलोगपालाणं, नवरं-सयंपभे विमाणे, सभाए सुहम्माए, सोमंसि सीहासणंसि सेसं तं चेव । ५१. एवं जाव वेसमणस्स, नवरं-विमाणाई जहा ततियसए।
(श० १०६५) 'विमाणाई जहा तइयसए' त्ति तत्र सोमस्योक्तमेव यमवरुणवैश्रमणानां तु क्रमेण वरुसिठे सयंजले वग्गुत्ति विमाणा।
(वृ०प०५०६) ५२. ईसाणस्स णं भंते !-पुच्छा।
अज्जो! अट्ट अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहाकण्हा, कण्हराई, रामा, रामरक्खिया, वसू, वसुगुत्ता
वसुमित्ता वसुंधरा ५३. तत्थ णं एगमेगाए देवीए एगमेगं देवीसहस्सं परिवारे सेसं जहा सक्कस्स।
(श० १०६६) ईसाणस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारणो कति अग्गमहिसीओ-पुच्छा। अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं
जहा५४. पुहवी, राई, रयणी, विज्जू ।......."सेसं जहा सक्कस्स
लोगपालाणं एवं जाव वरुणस्स, नवरं-विमाणा। ५५. 'जहा चउत्थसए' सेसं तं चेव जाव नो चेव णं मेहुणवत्तियं ।
(श० १०६७) जहा चउत्थसए' त्ति क्रमेण च तानीशानलोकपालानामिमानि–'सुमणे सव्वओभद्दे वग्गू सुवग्गू' इति ।
(वृ० ५० ५०६)
५२. ईशाण पूछा आठ महिषी, कृष्ण कृष्णराई रामा सुनाम।
रामरक्षिता वसु वसुगुप्ता, वसुमित्ता नैं वसुंधरा ताम ।।
५३. इक-इक देवी शक्र जिम सगलं, हिवै ईसाणेंद्र नं लोकपाल। सोम महाराय नैं किती पटराणी?
जिन कहै च्यार कही सुविशाल ।।
५४. पृथिवी रात्री रत्नी विद्यत चौथी, शक्र नां लोकपाल जेम शेष ।
इम जाव वरुण चौथा लग कहिवं, णवरं विमाण नाम ए देख ॥ ५५. चउथा शतक' में कह्या तिम कहिवा, सुमन सर्वतोभद्र वग्गु नाम ।
सुवग्गु शेष तिम जाव सुधर्मा, मिथुन सेवन समर्थ नहिं ताम ।।
५६. सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति
(श० १०६८)
५६. सेवं भंते! सेवं भंते! कही नैं, यावत विचरै स्थविर ध्यान-सुधारस। ए दशमा शतक नों पंचमुद्देशो,
उगणीस इकवीस पोह सुदि ग्यारस ।। ५७. ढाल भली दोय सौ तेवीसमी, शहर बालोतरे जोड़ी विशाल । भिक्षु भारीमाल ऋषिराय प्रतापे, 'जय-जश' सम्पति मंगलमाल ।।
दशमशते पंचमोद्देशकार्थः ॥१०॥५॥
की दोय सौ तेवीसमा
जय-जश' सम्पति
॥१०॥५॥
१. अंगसुत्ताणि भाग २, श०३४ २. अंगसुत्ताणि भाग २ श० ३२४८ ३. अंगसुत्ताणि भाग २ श० ४।२
३४६ भगवती-जोड़
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