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________________ १३. निज परिवार कहिये पट सह सामानिक, तावतीस तेतीस लोकपाल च्यार । अग्रमहिषी छः अणिय कटक सप्त, सात अणिय कटक नां अधिपति धार ॥ १४. चउवीस सहस्र आत्मरक्षक सुर छै, अन्य वलि बहु नागकुमार । देव देवी संपाते परवरियो नृत्य गीत रव भोग उदार ॥ १५. नागकुमारिद धरण नों हे प्रभु ! कालवाल लोकपाल महाराय । केतली मी तेहने ? जिन कहै प्यार सुभग सुखदाय ॥ १६. अशोगा विमला सुप्रभा सुदर्शना, इक इक नो वैक्रिय परिवार । अवशेष चमर नो लोकपाल जिम वलि त्रिण लोकपाल इम धार ॥ १७. भूतानंद नीं पूछा जिन उत्तर छः अग्रमहिषी रूया नैं रूयंसा । सुरूवा रूयगावती रूयकता, रूयप्रभा परिवार धरण जिम वंशा || १८. नागकुमारिद भूतानन्द नों लोकपाल चित्र प्रश्न सुजना | जिन कहे अग्रमहिषी चार है, सुनंदा सुभद्रा सुजाता सुमना ॥ १९. इक इक देवो रूप विकुर्वे, चमर लोकपाल नीं पर जाणी । शेष तीन लोकपाल तणो पिण, इमहिज कहिवो सर्व पिछाणी ॥ २०. दक्षिण दिश नां इंद्र अद्वैतसु, धरण तगी पर कहिं उदंत तेह तगांजे लोकपाल ने भूतानंद लोकल' क्यूं हेत । २१. नवरं सर्व राजवानो सिंहासण, इंद्र नां नाम सरीखे नाम । परिवार मोया उद्देश विषेतिम, तो शतक र उद्देशे' ताम || २२. पानी राजधानों ने सिहासन, लोकपाल रे सरोबा नाम परिवार मनोज सर्व विचारो कहियूँ ताम ।। २३. काल पिसाच नां इंद्र नैं भगवन ! अग्रमहिषी केतली आखी । जिन कहे प्यार कमला कमलप्रभा उत्पला चउबी सुदर्शना दाखी ॥ १. अंगसुत्ताणि भाग २ श० १०।८१ में 'जहा धरणस्स लोगपालाणं' के बाद उत्तरिल्लाणं इंदाणं जहां भूयानंदस्स .....पाठ है। अन्य आदर्शों में यह पाठ नहीं है। इसकी सूचना उक्त ग्रन्थ के पृ० ४५० टिपण संख्या में दी गई है। जयाचार्य ने उपर्युक्त पाठ की जोड़ नहीं की। जवाचार्य को प्राप्त प्रतियों में यह पाठ नहीं रहा होगा । यही सम्भावना पुष्ट होती है । २. अंगसुताणि भाग २, श० ३/४ Jain Education International १३.सीतापत्तीमाए तापत्तीसह पहिलो पाहिं हि अम्ममहिसीहि सतहि आणि एहि सतह अणियाहिवईहि (० ० ५०६) १४. चवीसाए आय रक्खदेवसाहस्सीहि अन्नेहि य बहूहि नागकुमारेहि देवेहिय सद्धि संपरिबुद्धे ति (० प० ५०६) १५. धरणास में भते नागकुमारिदस्स नागकुमारखो कालवालस्स महारण्णो कति अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ ? अज्जो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, १६. असोगा, विमला, सुप्पभा सुदंसणा । तत्थ णं एगमेगाए देवीए एममे देवीसह परिवारो, अपसे जहा चमरलोगपालाणं । एवं सेसाणं तिण्ह वि । ( श० १०१७९) १७. भूपाणंद भंते! पुच्छा अज्जो ! छ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - ख्या, ख्यंसा सुरूया रूयगावती रूयकंता रूयप्पभा । तत्थ एगमे गाए देवीए एगमेगं देवीसहस्स परिवारे अ सेसं जहा धरणस्स । (T० १०1८०) १८. भूपानंदसमं भते नागकुमारिदस्स नामकुमाररणो नागचित्तस्स पुच्छा। अज्जो ! चत्तारि अग्गमहिमीको पण्णत्ताओ, जहागुणंदा, सुभद्दा, सुजाया, सुमणा । - १६. तत्य णं एगमेगाए देवीए एगमेगं देवी सहस्सं परिवारे अयसेसं अहा चमरलोगपालाणं एवं सेवागं तिष्ट वि लोगपालाणं । २०. जे दाहिणिल्ला इंदा तेसि जहा धरणिदस्स लोगपालाण वि तेसि जहा धरणस्स लोगपालाणं २१. नवरं -- इंदाणं सव्वेसि रायहाणीओ सीहासणाणि य सरियामाथि परियारो जहा मोटसए २२. लाल ससि राहाणीओ सीहामणाणि य सरिसणामगाणि परियारो जहा चमरस्स लोगपालाणं । (श० १०००१) २३. कालस्स णं भंते! पिसायिदस्त पिसायरणो कति अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ ? अज्जो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - कमला, कमलप्पभा, उप्पला, सुदंसणा । For Private & Personal Use Only २०१० उ० ५ ढाल २२३ ३४३ www.jainelibrary.org
SR No.003619
Book TitleBhagavati Jod 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages490
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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