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ढाल : २२३
१. बलिस्स णं भंते ! वइरोयणिदस्स-पुच्छा ।
अज्जो! पंच अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, २. सुंभा, निसुंभा, रंभा, निरंभा, मदणा ।
दूहा १. प्रभ ! वलि वैरोचन इंद्र ने, प्रश्न महेषी संच ।
जिन कहै हे आर्यो! कही अग्रमहेषी पंच ॥ २. शंभा निशंभा नै रंभा, प्रवर निरंभा पेख । __मदना आखी पंचमी, वर्ण रूप वर रेख ॥ ३. एक-एक देवी तणे, अठ-अठ सहस्र उदार ।
शेष चमर नीं पर सहु, कहि सर्व विचार ॥ ४. णवरं वलिचंचा भली, रजधानी सुविशेष ।
तसु परिकर तीजे शतक, मोया धुर उद्देश' ।।
३. तत्थ णं एगमेगाए देवीए अट्ठट्ठ देवीसहस्सं परिवारो,
सेसं जहा चमरस्स, ४. नवरं-बलिचंचाए रायहाणीए, परियारो जहा
मोउद्देसए। 'मोउद्देसए' ति तृतीयशतस्य प्रथमोद्देशके इत्यर्थः
(व०प० ५०६) ।। ५. सेसं तं चेव जाव नो चेव णं मेहुणवत्तियं।
(श०१०७४) ६. बलिस्स णं भंते ! वइरोयणिदस्स वइरोयणरण्णो सोमस्स महारण्णो कति अग्गमहिमीओ पण्णत्ताओ?
अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ ७. मीणगा, सुभद्दा, विज्जुया, असणी
५. इम परिकर कहिवं इहां, शेष सर्व तं चेव । - जाव सुधर्मा ने विष, मिथुन न सेवै देव ॥ ६. प्रभु ! वलि वैरोचन इंद्र नै, सोम नाम महाराय । अग्रमहिषी तसु किती? जिन कहै च्यार कहिवाय ।।
७. प्रथम मेनका नाम है, द्वितीय सुभद्रा धार ।
तृतीय विद्युता सुभग तनु, चउथी असनी सार ।। ८. एक-एक देवी तिहां, शेष चमर महाराय । आख्यो तिम कहिवो इहां, जाव वेसमण' ताय ॥
___ *स्थविर प्रश्न नों उत्तर जिन आखै । (ध्रुपदं) ६. नाग कुमारिंद्र धरण तणे प्रभु ! केतली अग्रमहेषी उक्त? जिन कहै षट अला सक्का सतेरा,
सोदामनी इद्रा घनविद्युता प्रयुक्त ॥
१०. इक-इक सुरी छः-छः सहस्र परिवारे समर्थ ते अन्य छ:-छः हजार।
सर्व छत्तीस सहस्र रूप विकुई, तुटित वर्ग' तसु कहियै उदार ।।
८. तत्थे णं एगमेगाए देवीए एगमेगं देवीसहस्सं परिवारो, सेसं जहा चमरसोमस्स एवं जाव वरुणस्स ।
(श० १०।७५) ६. धरणस्स णं भंते ! नागकुमारिदस्स नागकुमाररण्णो
कति अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ? अज्जो ! छ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ तं जहा---
अला, सक्का सतेरा सोदामिणी इंदा घणविज्जया । १०. तत्थ णं एगमेगाए देवीए छ-छ देवीसहस्सं परिवारो
पण्णत्तो। पभू णं ताओ एगमेगा देवी अण्णाई छ-छ देवीसहस्साई परियारं विउवित्तए? एवामेव सपुवावरेणं छत्तीसाइं देविसहस्साई। सेत्तं तुडिए।
(श०१०७६,७७) ११. पभू णं भंते ! धरणे ? सेसं तं चेव, नवरं-धरणाए
रायहाणीए, धरणंसि सीहासणंसि, १२. सओ परियारो। सेसं तं चेव। (श० १०७८)
'सओ परिवारों' त्ति धरणस्य स्वकः परिवारो वाच्यः स चैवं
(वृ० ५० ५०६)
११. समर्थ हे भगवंत ! धरण छै, शेष तं चेव पूर्ववत पेख।
णवरं धरणा नामे राजधानी है, धरण सिंहासण विषे विशेख ।। १२. धरण नै पोता नों परिवार कहिवो, सामानिक षट सहस्र है तास।
इत्यादि परिवार छै तिको कहिवो, शेष तिमज पूर्व पाठ अभ्यास ।।
१. अगसुत्ताणि भाग २, श० ३४ २. अंगसूत्ताणि भाग २ श०१०७५ में वेसमण के स्थान पर वरुण पाठ है। वहां
वेसमण को पाठान्तर में रखा गया है। ३. एणी प्रकारे सपूर्वापर संघाते छत्तीस सहस्र नै छ सहस्र गुणा करिय तिवारे
२१ कोडि ६०००००० लाख एतला रूप थावे, तेहन तुटित वर्ग कहिये ।
३४२ भगवती-जोड़ ..
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