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इम ए प्यार द्वीप हिमवंत ने च्यार कोणे ब्यार दाढा नै विषे सरीखे प्रमाणे छँ । ए च्यार द्वीप केड़े व्यार सौ योजने अने जंबूद्वीप नीं जगती थकी पिण च्यार सौ-प्यार सौ योजन कर्ण, गपकर्ष, गोकर्ण कुलिक ए प्यार द्वीप है। प्यार सौ योजन लांबा - पहला, वृत्ताकारे बार सौ पैंसठ योजन परिधिः, यथा एकोरुक के हयकरण, आभासिक केर्ड गजकर्ण, वैषाणिक केडे गोकर्ण, नांगोलिक के शष्कुलिकर्ण - इणी पर सर्वत्र जाणवूं ।
ए हयकर्णादि व्यार द्वीप के पांच सौ योजन अनं जगती थकी पिण पांच सो-यांचसौ योजन आदर्श मुखदीप, विमुख द्वीप, अपोमुख द्वीप, गोमुख द्वीप ए च्यार द्वीप छे । पांचसौ-पांचसौ योजन लांबा -पहुला वृत्ताकारे, पनरें सौ एक्यासी योजन परिधि । वलि ए आदर्श मुखादि प्यार द्वीप के छह सौ छह सौ योजने अने जनती थी पिग छह सौ छह सौ योजने अश्वमुख, हस्तिमुख, सिंहमुख, व्याप्रमुख ए प्यार द्वीप है। छह-छहमी योजन लांबा पहला वृत्ताकारे, अठार सौ सता योजन परिधि ।
वलि ए अश्वमुखादि च्यार द्वीप केर्ड सातसो - सातसी योजने, जगती थकी पिण सात सौ सातौ योजने अश्वकर्ण सिंहकर्ण, अरुण, कर्णप्रावरण ए प्यार द्वीप छं। सातसो सातसी योजन लांबायला वृत्ताकारे, बावीस सौ तेरं योजन परिधि । वलि ए अश्वकर्णादि च्यार द्वीप के आठसौ-आठसौ योजने जगती थकी पिण आठसौ आसी योजने उतकामुख, मेघमुख, विद्युत् विद्युत ए प्यार द्वीप छ । आठसौ योजन लांबा पहला वृत्ताकारे, पंचवीससौ गुणत्रीस योजन परिधि ।
वलि ए उल्कामुख मेघमुखादि च्यार द्वीप के नवसौ-नवसौ योजने जंबूद्वीप नी जगती थकी पिण नवसी नवसी योजने धनदंत, लट्ठदंत, गूढदंत शुद्धदंत-ए च्यार द्वीप छँ । नवसौ योजन लांबा पहुला वृत्ताकारे, अट्ठावीससौ पैंतालीस योजन परिधि । एतलं चूलहेमवंत पर्वत नीं च्यार दाढा एह अट्ठावीस द्वीप छँ इम शिखरी पर्वत ने विषे पिण अठावीस द्वीप छँ । एवं छप्पन अंतरद्वीप जाणवा ।
एह सर्व द्वीप प्रत्येके प्रत्येके पद्मवरवेदिकाए अने वनखंडे परिवेष्टित महारमणीक छँ । एहनों वर्णन जीवाभिगम' सूत्र थी विशेष जाणवो । ते द्वीप नैं विषे युगलिया मनुष्य छ । मन अत्यंत महासुंदर रूप छ । पिण द्वीप नां नाम जेहवा आकारे नथी । जे भणी श्री जीवाभिगम सूत्र ने विषे एहनां रूप सबल देवता थी अधिक खाण्यो छँ अने अत्यंत सुखी छँ । ते मनुष्य नैं आठसौ धनुष्य ऊंचपण शरीर अनें पल्योपम नों असंख्यातनों भाग आउखो हुवं । यत:
अंतरदीवेसु नरा धणुसय अद्धसिया सया मुइया । पालिति मिहुणधम्मं पल्लस्स असंखभागाओ ॥ १ ॥ चट्ठ पिट्ठकरंड गाणि मणुआण वच्चपालणया । अगासी तु दिणा भत्ते आहारोति ॥२॥
सोरठा १८. वृत्ति विषे ए बात, गिरि पर अंतरद्वीप छे । धर्मसीह आख्यात, लवणोदधि अंतर १६. * इम अठवीसज आखिया, अंतरद्वीप नां लांबपर्णे ने विक्खंभपणे, पोता-पोता नां
अछै ॥ ताय । कहिवाय ||
: वीर बखाणी राणी चेलना जी
१. जी० ३।२१६-२२७
२. अभिधान राजेन्द्र कोश भाग० १ पृ ६७
१४ भगवती-जोड
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१६. एवं अट्ठावीसं वि अंतरदीवा सएणं सएणं आयामविक्खभेणं भाणियव्वा ।
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