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________________ एहिज आदर्श मुखादिक ने ईशाण, अग्नि, नैरुत वायव्य कूण नां चरिमांत थकी छ सौ जोजन लवणसमुद्र अवगाही ने छ सौ योजन लांबा चोड़ा अनुक्रम करिकै अश्वमुख द्वीप, हस्तिमुख द्वीप सिंहमुख द्वीप, व्याघ्रमुख द्वीप हवं ते प्रतिपादक अनेरा च्या उद्देशा हुव इति । 3 नवमशते पंचदशोद्देशकादारभ्याष्टादशो देशकार्यः ॥ २।१५ - १८ ।। एहिजा ने मिहिअनुकमे ईशाणादिक प्यार विदिशि ना चरिमांत थकी सात सौ योजन लवणसमुद्र अवगाही ने सातसौ जोजन लांबा चोड़ा अश्वकर्ण द्वीप द्वीप द्वीप, कारण ते प्रतिपादक बल अनेरा च्यारहीज उद्देशा इति । 1 नवमशते एकोनत्रिशतितमोद्देश कादारभ्याद्वाविंशतितमोनुदेश कार्यः एहि ।।६।१६-२२॥ कर्णादिक में निमहिज अनुक्रमे ईशाणादिक प्यार विदिशिन चरिमांत थकी आठ सौ योजन लवणसमुद्रे अवगाही ने आठ सौ योजन लांबा चोड़ा उल्कामुख द्वीप, मेघमुख द्वीप, विद्युन्मुख द्वीप, विद्युत द्वीप हुवं, ते प्रतिपादक वलि अनेरा च्यार हिज उद्देशा इति ॥ नमवशते त्रयोविंशतितमो देशका दारभ्याषड् विंशतितमोद्देश कार्थः ।।६।२३-२६॥ एहिज उल्कामुख दीपादिक में तिमहिय अनुक्रमे ईसापादिक प्यार विविधि नां चरिमांत थकी नो सौ योजन लवणसमुद्र अवगाही ने नो सौ योजन लांबा - चोड़ा घनदंत द्वीप, लष्टदंत द्वीप, गुडदंत द्वीप, शुद्धदंत द्वीप हुवै ते प्रतिपादक वली अनेरा व्यारहीन उद्देगा। इहां सीमों शुद्धदंत उद्देश इति ।। तथा पन्नवणारा अर्थ में एहवं का छप्पन अट्ठावीस कहा से किम ? जे हिमवंत व दिशि जेहवा जे प्रमाणे जेतले अंतर जे नामै अठावीस अंतरद्वीप छँ, तेहवा ते प्रमाणे अंबरपर्यंत ने पूर्व परिचय fपण अट्ठावीस अंतरीप मिली छप्पन थावे । ते भणी सदृशपणां मार्ट इहां अठावीसज कह्या । हिवं ए द्वीप नुं विवरण कांइक लिखियं छँ पर्वत बे दहां जंबूद्वीप में विषे भरतक्षेत्र नं सीमाकारी एक सत योजन ऊंची पंचबीस योजन, एक हजार ने वादन योजन ने बार कला एली पहली पूर्वापर लवणसमुद्र पर्यंत लांबो सुवर्णमय चुल्लहिमवंत नामा वर्षधर पर्वत छ । तिण पर्वत बे छेड़े पूर्व पश्चिमे लवणसमुद्र मांहे गजदंताकारे वे दाढा नीकली छ । बे पूर्व वे पश्चिमे एवं व्यार दाढा छ । तिहां पूर्व दिशि ईशाणकूणे नीकली जे दाढा तेहने विषे चुल्लहिमवंत नां छेहडा थी त्रिण सौ जोजने एकोरुक नामा द्वीप छै त्रिण सौ योजन लांबु-पहुलो, वृत्ताकारे नवसौ गुणपचास योजन कांयक ऊंणी परिधि । अंतरद्वीप हुवै अनं इहां विधे पूर्व पश्चिम ने हिमवंतना भी पूर्व दिशे अग्निकुने दहा ते त्रिग सी योजने आभासिक नामा द्वीप छे एकोरुक प्रमाण । वली पश्चिम दिशि नेते विवे हिमवंत नां देहहा थी त्रिण सो योजने वैषाणिक नामा द्वीप छँ एकोरुक प्रमाण । वलि पश्चिम दिशि वायव्य कूणे जे दाढा छ, तेहने विषे हिमवंत नां छेहड़ा Jain Education International थी त्रिण सौ योजने नंगोलिक नामा द्वीप छ एकोरुक प्रमाण । एतेषामेवादर्श मुखादीनां पूर्वोत्तरादिभ्यश्चरमान्तेभ्यः षड् योजनशतानि लवणसमुद्रमवगाह्य षड्योजनशतायामविष्कम्भाः क्रमेणाश्वमुखद्वीप स्तिमुखद्वीपसिंहमुखद्वीपप्रमुखद्वीपा भवन्ति तस्प्रतिपादकावचान्ये चत्वार उद्देशका भवन्तीति । ( वृ० प० ४२९ ) For Private & Personal Use Only एतेषामेवाश्वमुखादीनां तथैव सप्त योजनशतानि लवणसमुद्रमवगाह्य सप्तयोजनशतायामविष्कम्भा अश्वकर्णद्वीपहस्तिकर्णद्वीप कर्णप्रावरणडीपा: प्रावरणद्वीपा भवन्ति तत्प्रतिपादकाश्चापरे चत्वार एवोद्देशका इति' । ( वृ० प० ४२१) 1 एतेषामेवाश्वकर्णादीनां तथैवाष्टयोजनशतानि लवणसमुद्रमवगाह्यष्टयोजनशतायामविष्कम्भा उल्कामुखद्वीपमेषमुखीपखपन्तिद्वीपा भवन्ति, तत्प्रतिपादकाश्चान्ये चत्वार एवोद्देशका इति । [ ( वृ० प० ४२६, ४३० ) एतेषामेवापादीनां तवैव नव योजनातान लवण समुद्रमवगाह्य नयोजनशतायामविष्कम्भाः घनदीपलष्टन्तद्वीपगुरुदन्तीषशुद्धदन्तद्वीपा भवन्ति तस्प्रतिपादकान्यान्ये परवार एवोद्देशका इति, एवमादितो त्रिशत्तमः द्धदरतोद्देशः ॥ ( वृ० प० ४३० ) १. यह समग्र वर्णन जीवाभिगम की तीसरी प्रतिपत्ति में प्राप्त होता है। वहां अन्तर द्वीपों के वर्णन में १७वां द्वीप कर्ण है और द्वीप सिहकर्ण है। पत्र वणा (१।८६ ) में भी यही क्रम है। भगवती की वृत्ति में सिंहकर्ण द्वीप के स्थान पर हस्तिकर्ण द्वीप है । यह क्रम ठाणं (४।३२५ ) से मिलता है। इससे आगे वृत्ति में कर्णप्रावरण द्वीप और प्रावरण द्वीप का उल्लेख है । इसका मेल न तो जीवाभिगम, पन्नवणा और ठाणं के साथ है और न ही जयाचार्य द्वारा लिखित वार्तिक के साथ है । सम्भव है भगवती की वृत्ति के मुद्रणकाल में यह प्रमाद हुआ हो। जयाचार्य ने किसी हस्तलिखित प्रति के आधार पर अथवा ठाणं के आधार पर यह वार्तिक लिखा हो, ऐसा भी हो सकता है । श० ६ उ० १५-२६, ढाल १७० ૨ www.jainelibrary.org
SR No.003619
Book TitleBhagavati Jod 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages490
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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