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४२. तथा रत्न सक्कर पंक ने तम, सप्तमी में आखिय।
रत्न सक्कर पंक थी ए तीन भांगा दाखियै । ४३. तथा रत्न सक्कर धूम नैं तम, सप्तमी नारकि मझे।
रत्न सक्कर थकी ए दश भंग एम विचारजै ।।
बाल-हिव रत्न वालु थी ४ भांगा ते किसा? रत्न वालु पंक थी ३, रत्न वालु धूम थी १-एवं ४ । तिहां रत्न बालु पंक थी ३, ते किसा? रत्न धालु पंक धूम थी २, रत्न वालु पंक तम थी १ एवं ३। ४४. तथा रत्न वालु पंक धूमा, तमा पृथ्वी में हुवै ।
तथा रत्न वालु पंक धमा, सप्तमी में अनुभवै ।। ४५. तथा रत्न वालु पंक में तम, सप्तमी में जाणिय। ___रत्न वालु पंक थी इम, तीन भांगा आणियै ।। ४६. तथा रत्न वालु धूम मैं तम, सप्तमी पृथ्वी मही।
रत्न वालु थकी भांगा, च्यार ए आख्या सही ।। ४७. तथा रत्न पंके धूम तमा, सप्तमी दुख अनुभवै ।
रत्न सू इज भंग पनर ए, पंच संयोगिक हवै।
हिवै उत्कृष्ट पदे नरक में ऊपज तेहनां पट संयोगिक ६ भांगा कहै छ४८. तथा रत्न सक्कर वालुका पंक, धम ने तमा मझे। __तथा रत्न सक्कर वालुका पंक, धूम ने सप्तमी सझै ॥
४६. तथा रत्न सक्कर वालुका पंक, तम सप्तमी अनुभवै'।
तथा रत्न सक्कर वालुका नैं, धूम तम सप्तमी हुवै ।।
षड्योगे षट
(वृ० प० ४५१) ४८. अहवा रयणप्पभाए सक्करप्पभाए जाद धूमप्पभाए
तगाए य होज्जा, अहवा रयणप्पभाए जाव धूमप्प
भाए अहेसत्तमाए य होज्जा। ४६. अहवा रयणप्पभाए सक्करप्पभाए जाव पंकप्पभाए
तमाए य अहेसत्तमाए य होज्जा, अहवा रयणप्पभाए सक्करप्पभाए बालुयप्पभाएधूमप्पभाए तमाए अहेसत्त
माए य होज्जा, ५०. अहवा रयणप्पभाए सक्करप्पभाए पंकप्पभाए जाव
अहेसत्तमाए य होज्जा, अहवा रयणप्पभाए वालुयप्पभाए जाव अहेसत्तमाए य होज्जा,
५०. तथा रत्न सक्कर पंक धूम तम, सप्तभी में ऊपजै ।
तथा रत्न वालु पंक धूम तम, सप्तमी माहै लजै॥
५१. भंग षट ए रत्न सूं इज, षट-संयोगिक जाणियै ।
उत्कृष्ट पद ते भणी सप्तम भंग रत्न विण नाणियै ।। हिवै उत्कृष्ट पदे नरक नै विषे ऊपज तेहनों सप्त संयोगिक १ भांगो कहै
- सप्तकयोगे त्वेक इति।
(वृ० प० ४५१)
५२. तथा रत्न सक्कर वालुका पंक, धूम तम सप्तमी लहै।
सप्तयोगिक भंग इक ए, वीर जिनवर इम कहै ।। ५३. हिव रत्नप्रभादिक विषेइज, नारकी नों जाणिये ।
अल्पबहुत्वादिक निरूपण अर्थ प्रश्न वखाणियै ॥ ५४. *ए प्रभु ! रत्नप्रभा पृथ्वी, नरक प्रवेशन नो कहेश के।
सक्कर जाव इम सप्तमी, कुण-कुण अल्प बहु तुल्य विशेष के॥
५२. अहवा रयणप्पभाए य सक्करभाए य जाव अहेसत्तमाए य होज्जा।
(श० ६।१००) ५३. अथ रत्नप्रभादिष्वेव नारकप्रवेशन कस्याल्पत्वादिनिरूपणायाह
(वृ० ५० ४५१) ५४. एयस्स णं भंते ! रयणप्पभापुढविनेरइयपवेसणगस्स
सक्करप्पभापुढविनेरइयपवेसणगस्स जाब अहेसत्तभापुढविनेर इयपवेसणगस्स कयरे कयरेहितो अप्पा वा ?
बहुया वा ? तुल्ला वा ? विसेसाहिया वा? ५५. गंगेया ! सव्वत्थोवे अहेसत्तमापुढविनेर इयपवेसणए,
तद्गामिनां शेषापेक्षया स्तोकत्वात्, (वृ० प० ४५१)
५५. जिन कहै गंगेया ! सुणे, सर्व ते थोड़ा प्रवेश करंत कै।
नरक सप्तमी नेर इया, शेष अपेक्षा तिहां अल्प जंत के ।। *हूं बलिहारी हो जादवां !
श०६०३२, ढाल १६० २०६
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