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________________ ४१. इम वालुक भी भंग प्यार ए, ऊपरली पृथ्वी संगधार ए । ग्यारा विकल्प करि सुजगीस ए. भंग भगवा चउमालीस ए ॥ ४२. इम पंक थकी भंग तीन ए, संग चीन ए । ग्यारा विकल्प करिने कहीस तेतीस ए ॥ ४३. इम धूम पकी भंग दोष संग सोय ए ग्यारा विकल्प करीनें दीस ए, भणिवा भंगा बावीस ए ॥ ४४. इम तम थकी इक भंग ए, सप्तमीं पृथ्वी संग ए । ग्यारा विकल्प करि सुविचार ए, ए तो भणिवा भंग इग्यार ए ॥ ४५. संख्यान जीवां रा एह ए. द्विकसंजोगिक इम लेह ए। ए, ग्यास विकल्प करीने उमंग ए दो सौ इकतीस सुभंग ए ॥ ४६. यावत अथवा एह ए, संख्याता समा कहेह ए। संख्याता सप्तमी जाण ए. ए चरम भंग पहिचान ए ॥ हिवे त्रिकसंजोगिक नां २१ विकल्प एकेक विकल्प नां पैंतीस पंतीस भांगा तिवारे २१ विकल्प नां ७३५ भांगा हुवे । तिहां रत्न थी १५, सक्कर थी १०, वालुक थी ६, पंक थी ३, धूम थी १ - ए ३५ भागां २१ विकल्प करि हुवै । तिहां रत थी १५ ते किसा ? रत्न सक्कर थी ५, रत्न वालु थी ४, रत्न पंक थी ३, रत्न धूम थी २, रत्न तम थी १ एवं १५, इकवीस विकल्प करि हुवै। इमज सक्कर थी १०, वालु थी ६, पंक थी ३, धूम थी १-ए इकवीस इकबीस विकल्प करिव । ऊपरली पृथ्वी ए, तंत भांगा ऊपरली पृथ्वी ४७. अथवा रत्न में एक ए, संखेज वालुका मंग ए, ४८. अथवा रत्नप्रभा में एक पंकप्रभा में संख्यात ए, ४६. तथा एक रत्न सक्कर तथा एक रत्न सक्कर एक ए. ५०. तथा एक रत्न सक्कर एक ए, रत्न सक्कर थी भंग पंच ए, धुर ५१. तथा एक रत्न सक्कर दोय ए, इक सक्कर में संपेख ए । धुर विकल्प ए भंग ए । ए इक सक्कर मांहि उवेख ए । भंग दूजो ए आख्यात ए ॥ एक ए, संखेज धूम संपे ए । संसेज तमा सुविशेल ए ॥ संखेज सप्तमीं लेख ए । विकल्प करिए संच ए ॥ संवेज्ज वालुका सोय ए तथा एक रत्न सक्कर दो ए संसेज पंक अवलोय ए ।। ५२. तथा एक रत्न सक्कर दोय ए, संखेज्ज धूम में होय ए । तथा एक रत्न सक्कर दोय ए, संखेज तमा में जोय ए ।। ५३. तथा एक रत्न सक्कर दोय ए, संखेज्ज सप्तमीं होय ए । रत्न सक्कर थी मंग पंच ए, दूजे विकल्प करीने विरंच ए ।। ५४. तथा एक रत्न सक्कर तीन ए, संखेज तथा एक रत्न सक्कर तीन ए, संखेज्ज ५५. तथा एक रत्न सक्कर तीन ए तथा एक रत्न सक्कर तीन ए, ५६. तथा एक रत्न सक्कर तीन ए, संवेज संखेज संखेज्ज सप्तमीं दीन ए । रत्न सक्कर थी भंग पंच ए, तीजे विकल्प करीनं संच ए ॥ Jain Education International वालुका लीन ए । पंक में चीन ए ।। धूम में लीन ए तमा आधीन ए ॥ ५७. तथा एक रत्न सक्कर च्यार ए, संखेज वालुका धार ए । जाव तथा रत्न इक अंक ए, चिडं सक्कर सप्तमीं संख ए ॥ १८० भगवती जोड़ ४१, ४४. एवं एक्केक्का पुढवी उवरिमपुढवीहिं समं चारेयब्वा । ४६. जाव अहवा संखेज्जा तमाए संसेज्जा असत्तमाए होज्जा | ४७. अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए संखेज्जा वालुयपभाए होज्जा । ४८. अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए संखेज्जा पंकप्पभाए होज्जा । ४६, ५०. जाव अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए सेना महत्तमाए होना । ५१-५३. अहवा एगे रयणप्पभाए दो सक्करप्पभाए संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा जाव अहवा एंगे रयणप्पभाए दो सक्करप्पभाए संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा । ५४६४. अहवा एगे रयणप्पभाए तिष्णि सक्करप्पभाए संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा, एवं एएणं कमेणं एक्केको संचारेयब्वो सक्करप्पभाए जाव अहवा एगे रयणप्पभाए संखेज्जा सक्करप्पभाए संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा जाव अहवा एगे रयणप्पभाए संसेज्जावसंबेना महत्तमाए होया । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003619
Book TitleBhagavati Jod 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages490
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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