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________________ हिवै बीजी ओल ने गिण्यां जेतला हुवै तेतला विकल्प जाणवा, ते इम गिणवा-एक ने तीन-४, च्यार नै छ–१०, दश नै दश–२०, बीस ने पनरै--३५, पैतीस ने इकबीस-५६, छप्पन नै अठावीस-८४ । इम दश जीव नां चउक्कसंयोगिया चउरासी विकल्प थया। इम सौ ताई गिण लीजै । धड़ो जिताइज विकल्प जाणवा। तथा बलि अन्य प्रकार करिकै चउकसंजोगिया नां विकल्प नी आमना हि छ जीवां रा चउकसंजोगिया विकल्प कितरा? उत्तर-छ मांहि थी एक जीव घटायां पांच जीवां रा चउकसंजोगिया ४ विकल्प अने पांच जीवां रा त्रिकसंजोगिया ६ विकल्प । दो भेला गिण्या विकल्प हुवै इतरा विकल्प छ जीवां रा चउक्कसंजोगिक ह। सात जीवां रा चउक्कसंजोगिया विकल्प किता? उत्तर —छ जीवां रा चउक्कसंजोगिया अन छ जीवां रा त्रिकसंयोगिया दोन भेला गिण्यां जितरा विकल्प हुवै तितरा सात जीवां रा चउकसंजोगिक ह।। १५. पंच संयोगिक नां हिवै, विकल्प तणो विचार ॥ ऊपर वारी तेहनी, कहियै छै अधिकार ।। १६. सप्त जीव पंचयोगिका, कितरा विकल्प तास? विकल्प तेहनां पनर है, सुणिय आण हुलास ।। १७. चउयोगिक षट जीव नां, पंचयोगिक षट जीव । ए बिहं नां दश पंच इता, सत्त जीव ना पीव ।। १८. इम आगल जंतु जिता, तेहथी एक घटाय । विकल्प चउ पंच योगिका, मेल्या जिता कहाय ॥ वा०-नव जीवां रा पांचसंजोगिया रा विकल्प किता ? उत्तर-सित्तर विकल्प हवै। ते किम ? आठ जीव चउकसंयोगिक नां ३५ विकल्प हवै, अने आठ जीव पंच संजोगिक नां पिण ३५ विकल्प हुदै, ए दोनूं मिलायां मित्तर हुवे। एतलाज सित्तर विकल्प नव जीव नां पंचसंजोगिया नां हुवै। इम आगल पिण जाणवा। १६. षट-संजोगिक नां हिवै, विकल्प तणो विचार । ऊपर वारी तेहनी, कहिय छै अधिकार ॥ २०. अष्ट जीव षट-योगिका, कितरा विकल्प तास? विकल्प तस इकवीस है, सुणिये आण हुलास ॥ २१. सप्त जीव पंचयोगिका, सप्त जीव षट योग । षट पनरै विकल्प तस, इम इकवीस प्रयोग। २२. इम आगल जंतू जिता, तेहथी एक घटाय । विकल्प पंच षटयोगिका, मेल्या जिता कहाय ।। वा०–नव जीवां रा षटसंजोगिक विकल्प कितरा ? उत्तर-छप्पन विकल्प हुदै ते किम? आठ जीव पंचसंजोगिक नां ३५ विकल्प अन आठ जीव षटसंजोगिक ना २१ विकल्प हुवै, ए दोनूं मिलायां ५६ हुवे। एतलाज छप्पन विकल्प नव जीव नां षट संजोगिक नां हुवे। इम आगल पिण जाणवा । सप्त संयोगिक जेतला विकल्प जेतलाइ भांगा जाणवा। २३. संख्याता प्रभु ! नेरइया, एकादश थी आद । नरक-प्रवेसण नीं पृच्छा, उत्तर जिन अहलाद ।। २३. संखेज्जा भंते ! नेरइया नेरइयप्पवेसणएणं पविसमाणा कि रयणप्पभाए होज्जा ?-पुच्छा। तत्र संख्याता एकादशादयः। (वृ० प० ४४८) १७८ भगवती-जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003619
Book TitleBhagavati Jod 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages490
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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