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________________ १७७. चउक्कसंजोगो वि तहेव ।' १७७. *ए षट जीव तणां सुविचार, चउक्कसंयोगिक भांगा सार। दश विकल्प करिने पहिछाण, तीनसौ नैं पचास प्रमाण ॥ १७८. नवम शतक नों बतीसम देश, इकसौ तयांसीमी ढाल विशेष । भिक्षु भारीमाल ऋषिराय पसाय, 'जय-जश' संपति हरष सवाय ।। ढाल : १८४ दहा १,२. पञ्चकसंयोगे तु षण्णां पञ्चधाकरणे पञ्च विकल्पा स्तद्यथा......""सप्तानां च पदानां पञ्चकसंयोगे एकविंशतिर्विकल्पाः, तेषां च पञ्चभिर्गुणने पञ्चोत्तरं शतमिति । (वृ० प० ४४५) १. हिवै कहूं षट जीव नां, पंच संयोगिक संच । विकल्प पंच करी भला, भंग एक सय पंच ॥ २. एक एक विकल्प करि, इकवीस-इकवीस जाण । भांगा भणवा इहविधे, वरविध करी पिछाण ॥ वा० - एकेक विकल्प करि रत्न थी १५, सक्कर थी ५, वालुक थी १एवं २१ । रत थी १५ तेहनों विवरो - रत्न सक्कर थी १०, रत्न वालुक थी ४, रत्न पंक थी १-एवं १५ । ते पनरै नै विषे रत्न सक्कर थी १०, ते किसा? रत्न सक्कर वालुक थी ६, रत्न सक्कर पंक थकी ३, रत्न सक्कर धूम थी १-एवं रन सक्कर थी १० । ते दशां माहे रत्न सक्कर वालुक थकी ६, ते किसा? रत्न सक्कर वालुक पंक थी ३, रत्न सक्कर वालुक धूम थी २, रत्न सक्कर वालुक तम थी१–एवं रत्न सक्कर वालुक थी ६ भांगा हुवै । तिहां रत्न सक्कर वालुक पंक थी ३ भांगा प्रथम विकल्प करि कहै छ३. अथवा एक रत्न मझै, एक सक्कर मांय । इक वालुक इक पंक में, दोय धूम कहिवाय ॥ ४. अथवा एक रत्न मझे, इक सक्कर में ताय । एक वालुक इक पंक में, दोय तमा में जाय ।। ५.अथवा एक रत्न मझे, इक सक्कर उपजत । इक वालुक इक पंक में, दोय सप्तमी हंत ॥ हिवै रल सक्कर वालुक पंक थी ३ भांगा द्वितीय विकल करि कहै छै - ६. अथवा एक रत्न मझै, एक सक्कर रै माय । इक वालुक बे पंक में, एक धूम कहिवाय ।। ७. अथवा एक रत्न मझे, इक सक्कर रै माय। इक वालुक बे पंक में, एक तमा में जाय ।। ८. अथवा एक रत्न मझै, इक सक्कर उपजत । इक वालुक बे पंक में, एक सप्तमी हंत ।। हिवं रत्न सक्कर वालुक पंक थी ३ भांगा तृतीय विकल्प करि कहै छै६. अथवा एक रत्न मझै, इक सक्कर रै माय । बे वालुक इक पंक में, एक धूम कहिवाय ।। * लय : इण पुर कंबल कोय न लेसी + लय : प्रभवो मन मांहि चितवं १. ढाल १८३ में सात नरक के चतु: संयोगिक ३५० भंगो का उल्लेख है। उनमें सक्कर-पंक और सक्कर धूम के ४० भंग गाथाओं में छूटे हुए हैं। सक्करवाल से बनने वाले १० विकल्पों के ६० भंग १५१ तक की गाथाओं में आ गए। उसके बाद वातिका में सक्कर के १० भंगों के १० विकल्पों से होने वाले १०० भंगों की सूचना दी गई है पर वे भंग गाथाओं में नहीं दिए । आगे यन्त्र में पूरे भंग (२६१ से ३००) दिए हुए हैं। श०६, उ० ३२, ढाल १८४ १५७ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003619
Book TitleBhagavati Jod 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages490
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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