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छप्पय १४६. एक एक नै च्यार, प्रथम विकल्प ए जानो।
एक दोय नैं तीन, द्वितीय विकल्प पहिछानो। दोय एक नैं तीन, तृतीय विकल्प ए कहिये। एक तीन नैं दोय, तुर्य विकल्प ए लहिये । फन दोय-दोय नैं दोय गण, ए पंचम विकल्प कह्य।
वलि तीन एक में दोय इम, ए छठे विकल्प ला ॥ १५०. एक च्यार नैं एक, सखर विकल्प ए सप्तम ।
दोय तीन नै एक, आख्यू ए विकल्प अष्टम । तीन दोय मैं एक, नवम विकल्प निरखीजै । च्यार एक में एक, दशम विकल्प दिल लीज। षट जीव तणां त्रिकयोगिका, विकल्प इहविध दाखिया।
भांगाज तीन सय तसुं भला, अधिक पचासही आखिया। १५१. *ए षट जीव तणां त्रिकथोगिक, सार्द्ध तीन सय शुद्ध ।
दश विकल्प करि भांगा दाख्या, वर्णन तसु अविरुद्ध । १५२. नवम शतक बतीसम देशे, सौ बयांसीमीं ढाल ।
भिक्ष भारीमाल ऋषिराय प्रसादे, 'जय-जश'हरष विशाल ।।
ढाल : १८३
१. चतुष्कसंयोगे तु षण्णां चतूराशितया स्थापने दश विकल्पास्तद्यथा-पञ्चत्रिंशतश्च सप्तपदचतुष्कसंयोगानां दशभिगंणनात्त्रीणि शतानि पञ्चाशदधिकानि भवन्ति ।
(वृ. ५० ४४५)
दूहा १. हिवै कहूं षट जीव नां, चउकसंयोगिक चंग। दश विकल्प करि दाखिया, सार्द्ध तीन सय भंग ।।
वा--छ जीव नां चउकसंयोगिक तेहनां विकल्प तो दश, भांगा साढा तीनसौ। एक-एक विकल्प नां भांगा पैंतीस-पैतीस हुवै, ते माटै दश विकल्प ना ३५० हुदै । एक-एक विकल्प नां-रत्न थी २०, सक्कर थी १०, वालु थी ४, पंक थी १–एवं ३५। रत्न थी २० ते किसा? रत्न सक्कर थी १०, रत्न वालुक थी ६, रत्न पंक थी ३, रत्न धूम थी १-एवं २० । रत्न थी एक-एक विकल्प नां हवै। रत्न सक्कर थी १० ते किसा? रत्न सक्कर बालक थकी ४, रत्न सक्कर पंक थी ३, रत्न सक्कर ध म थी २, रत्न सक्कर तम थकी १- एवं १० एकएक विकल्प नां हुवै । ते कहै छै२. तथा रत्न इक सक्कर एक, इक वालुक त्रिहं पंक विशेख ।
तथा रत्न इक सक्कर एक, इक वालुक त्रिहुं धूम संपेख । ३. तथा रत्न इक सक्कर एक, इक वालुक में त्रिहं तम पेख ।
तथा रत्न इक सक्कर एक, इक वालुक त्रिहं सप्तमी देख ।। *लय : सीता आवे रे घर राग लिय : इण पुर कम्बल कोइ न लेसी
१३४ भगवती-जोड़
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