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ढाल : १८२
१. त्रिकयोगे तु षण्णां त्रित्वे दश विकल्पाः एतैश्च पञ्चत्रिंशतः सप्तपदत्रिकसंयोगानां गुणनात् त्रीणि शतानि पञ्चाशदधिकानि भवन्ति । (व०प०४४५)
दूहा १. षट नारकि नां हिव कहूं, त्रिकसंजोगिक तास ।
भांगा साढा तीन सौ, दश विकल्प करि जास ॥ २. रत्न थकी पनरै हुवै, सक्कर थी दश होय ।
पट वाल थी पंक त्रिण, धूम थकी इक सोय ।। ३. ए पैंतीसे भंग ते, दश विकल करि देख ।
होवै साढा तीन सौ, कहियै छै सुविशेख ।
हिवै १५ रत्न थी, ते किसा? रत्न मक्कर थकी ५, रत्न वालुक थकी ४, रत्न पंक थकी ३, रत्न धूम थकी २, रत्न तम थकी १ - एवं १५ भांगा रत्न थी, ते दस विकल्प करि हुवै
*श्री जिन भाखै सुण गंगेया ! (ध्रुपदं) ४. एक रत्न नैं एक सक्कर है, च्यार वालुका होय ।
अथवा एक रत्न इक सक्कर, च्यार पंक अवलोय ।।
४. अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए चत्तारि वालुयप्पभाए होज्जा, अहवा एगे रयणप्पभाए एगे
सक्करप्पभाए चत्तारि पंकप्पभाए होज्जा। ५,६. एवं जाव अहवा एगे रमणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए
चत्तारि अहेसत्तमाए होज्जा।
७-१४८. अहवा एगे रयणप्पभाए दो सक्करप्पभाए तिण्णि
वालुयप्पभाए होज्जा । एवं एएणं कमेणं जहा पंचण्हं तियासंजोगो भणिओ तहा छह वि भाणियब्बो, नवरं-एक्को अहिओ उच्च रेयन्वो, सेसं तं चेव ।
५. अथवा एक रत्न इक सक्कर, च्यार धूम रै माय ।
अथवा एक रत्न इक सक्कर, च्यार तमा दुख पाय ।। ६. अथवा एक रत्न इक सक्कर, च्यार सप्तमी होय ।
रत्न सक्कर थी ए पंच भंगा, धुर विकल्प करि सोय ।। ७. अथवा एक रत्न बे सक्कर, तीन वालुका होय ।
अथवा एक रत्न बे सक्कर, तीन पंक अवलोय ।। ८. अथवा एक रत्न बे सक्कर, तीन धूम रै माय ।
अथवा एक रत्न बे सक्कर, तीन तमा कहिवाय ।। है. अथवा एक रत्न बे सक्कर, तीन सप्तमी होय ।
रत्न सक्कर थी ए पंच भंगा, द्वितीय विकल्प जोय ।। १०. अथवा दोय रत्न इक सक्कर, तीन वालुका होय ।
अथवा दोय रत्न इक सक्कर, तीन पंक अवलोय ।। ११. अथवा दोय रत्न इक सक्कर, तीन धूम रै माय ।
अथवा दोय रत्न इक सक्कर, तीन तमा दुख पाय ।। १२. अथवा दोय रत्न इक सक्कर, तीन सप्तमी होय ।
रत्न सक्कर थी ए पंच भंगा, तृतीय विकल्प सोय ।। १३. अथवा एक रत्न त्रिण सक्कर, दोय वालुका होय ।
अथवा एक रत्न त्रिण सक्कर, दोय पंक अवलोय ।। १४. अथवा एक रत्न त्रिण सक्कर, दोय धुम रै माय ।
अथवा एक रत्न त्रिण सक्कर, दोय तमा दुख पाय ।। १५. अथवा एक रत्न त्रिण सक्कर, दोय सप्तमी होय ।
रत्न सक्कर थी ए पंच भंगा, चउथै विकल्प जोय ॥
* लय: सीता आवै रे धर राग
श०६, उ० ३२, ढाल १८२ ११३
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