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ढाल : १८१
दूहा १. हे भदंत ! षट नेरइया, नरक-प्रवेशण काल ।
रत्नप्रभा में स्यूं हुवै, प्रश्न पूर्ववत न्हाल ।। २. जिन कहै गंगेया! सुणे, छह रत्न उपजंत ।
अथवा षट सक्कर मझे, तथा वालुक षट हुंत ।। ३. अथवा पंक विषेज षट, अथवा षट ह धूम ।
अथवा षट तम वलि तया, षट तमतमाज ब्रूम ।। ४. इकसंयोगिक आखिया, भांगा ए इम सात ।
इक विकल्प करि ओलखो, वारू विध अवदात ।।
१. छम्भंते | नेरइया नेरइयप्पवेसणएणं पविसमाणा कि
रयणप्पभाए होज्जा?-पुच्छा। २,३. गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए
वा होज्जा।
४. इहैकत्वे सप्त
(वृ०प०४४५)
हिवै ६ जीव नां द्विकसंयोगिक तेहनां विकल्प ५ भांगा १०५ कहै छै५. द्विकयोगिक षट जीव नां, विकल्प पंच विशेष । भांगा एक सौ पंच है, कहिये तेह अशेष ।।
_ *वीर कहै गंगेया! सुणे । (ध्रुपदं) ६. अथवा इक ह रत्न में, पंच सक्कर में पेखो रे ।
अथवा इक ह रत्न में, पंच वालुका देखो रे ।। ७. अथवा इक ह रत्न में, पंच पंक रै माही।
अथवा इक ह रत्न में, पंच धम कहिवाई ।। ८. अथवा इक व रत्न में, पच तमा पहिछाणी।
अथवा इक ह रत्न में, पंच तमतमा जाणी ।। ए रत्ल थी प्रथम विकल्प करि ६ भांगा कह्या। दूजै विकल्प करि ६ भांगा कहै छ - ६. तथा दोय हरत्न में, चिउ सक्कर अवलोयो।
जाव तथा दोय रत्न में, च्यार सप्तमी होयो । *लय : बात म काढो वरत नी
५. द्विकयोगे तु षण्णां द्वित्वे पञ्च विकल्पाः स्तद्यथा
१५।२४।३३।४२०५१ । तैश्च सप्तपद-द्विकसंयोगएकविशतेर्गणनात् पञ्चोत्तरं भङ्गकशतं भवति ।
(वृ०प० ४४५) ६. अहवा एगे रयणप्पभाए पंच सक्करप्पभाए होज्जा,
अहवा एगे रयणप्पभाए पंच वालुयप्पभाए होज्जा ७,८. जाव अहवा एगे रयणप्पभाए पंच अहेसत्तनाए
होज्जा।
है. अहवा दो रयणप्पभाए चत्तारि सक्करप्पभाए होज्जा
जाव अहवा दो रयणप्पभाए चत्तारि अहेसत्तमाए होज्जा।
श० ६, उ० ३२, ढाल १८१ १०७
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