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________________ ढाल : १७६ १. चतुष्कसंयोगे तु सप्तानां पञ्चत्रिशद्विकल्पाः, पञ्चानां चतुराशितया स्थापने चत्वारो विकल्पास्तद्यथातदेवं पञ्चत्रिंशतश्चतुभिर्गुणने चत्वारिंशदधिकं शतं भवतीति । (वृ०प० ४४४) २. अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए एगे वालु यप्पभाए दो पंकप्पभाए होज्जा ३-५. एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए दो अहेसत्तमाए होज्जा । दूहा १. पंच जीव नां हिव कहं, चौक संयोगिक चंग। चिहु विकल्प करि तेहनां, इकसौ चालीस भंग॥ वाल-हिवं पांच जीव नां चउकसंजोगिक, तेहना विकल्प ४, भांगा १४७ । एक-एक विकल्प ना पंतीस-पैतीस भांगा हवं, ते माट च्यार विकल्प ना १४० हुवं । एक विकल्प ना रत्न थी २०, सक्कर थी १०, वालुक थी ४, पंक थी १एवं पैतीस भांगा हुवै । रत्न थी २० ते किसा? रत्न सक्कर थी १०, रत्न वालुक थी ६, रत्न पंक थी ३, रत्न धूम थी १-एवं रत्न थी एक-एक विकल्प ना २० भांगा हवै। रत्न सक्कर थी १० ते किसा? रत्न सक्कर वालुक थी ४, रत्न सक्कर पंक ३, रत्न सक्कर धूम थकी २, रत्न सक्कर तम थकी १ -एवं एक-एक विकल्प ना १० भांगा हुवै । तिहां रत्न सक्कर वालु थकी ४ भांगा प्रथम विकल्प कर कहै छ __ *श्री जिन भाखै सुण गंगेया ! [ध्रुपदं] २. अथवा एक रत्न इक सक्कर, एक वाल अवलोय जी। पंक विषे बे जीव ऊपजै, ए धुर भांगो होय जी। ३. अथवा एक रत्न इक सक्कर, एक वालुक उपजंत । धूमप्रभा में दोय ऊपजै, दूजो भांगो हुँत ॥ ४. अथवा एक रत्न इक सक्कर, एक वालुका मांय । छद्री नरक बे जीव ऊपजै, तृतीय भंग कहाय ।। ५. अथवा एक रत्न इक सक्कर, एक वालुक पहिछाण । नरक सातमी दोय ऊपजै, चोथो भांगो जाण ।। हिवै रत्न सक्कर वालु थकी दूज विकल्प करि ४ भांगा कहै छ६. अथवा एक रत्न इक सक्कर, तीजी नरके दोय । पंक विषे इक जीव ऊपज, पंचम भंगो होय ।। ७. अथवा एक रत्न इक सक्कर, तीजी नरके दोय। धूमप्रभा में एक ऊपजै, छट्ठो भांगो सोय ।। ८. अथवा एक रत्न इक सक्कर, वालुप्रभा में दोय । छट्ठी नरके एक उपजतां, सप्तम भांगो सोय । ६. अथवा एक रत्न इक सक्कर, वालुप्रभा में दोय । नरक सप्तमी इक उपजता, अष्टम भंग अवलोय ॥ हिवं रत्न सक्कर वालुक थकी तीजै विकल्प करि ४ भांगा कहै छ१०. अथवा एक रत्न बे सक्कर, वालुक माहे एक । एक पंक नै विषे ऊपज, नवमो भंगो देख । ११. अथवा एक रत्न बे सक्कर, वालुक मांहे एक। धूमप्रभा में एक ऊपजै, दशमों भंग विशेख ॥ ६. अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए दो वालु यप्पभाए एगे पंकप्पभाए होज्जा ७-६. एवं जाव अहेसत्तमाए। १०. अहवा एगे रयणप्पभाए दो सक्करप्पभाए एगे वालु यप्पभाए एगे पंकप्पभाए होज्जा ११-१३. एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए दो सक्करप्प भाए एगे वालुयप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा। *लय : साधु म जाणो इण चलगत सूं श०६उ० ३२, ढाल १७६ ८६ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003619
Book TitleBhagavati Jod 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages490
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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