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पांचां मांहिली किती कहिवाय ज ? जिन भाखै गोयम सुण वाय जी । गोयमा ! गाहांवइस्स ताओ भंडाओ आरंभिया: गाथापति जे वस्तु बेचाय जी, तिण रै भंड थी चिहु अधिकाय जी । किरिया कज्जइ जाव अपच्चक्खाणकिरिया कज्जइ । भजना मिथ्यादर्शन मांय जी, गाहक नैं सह पतली थाय जी। मिच्छादसणकिरिया सिय कज्जइ, सिय नो कज्जा। अजे वस्तु न लीधी ए न्याय जी, ए प्रथम आलावो कहाय जी ।। कइयस्स णं ताओ सब्बाओ पयणुईभवंति । श्री वीर कहै सुण गोयमा ।।
(श० ५/१२६) ऋयिको-ग्राहको भाण्डं 'स्वादयेत्' सत्यङ्कारदानतः स्वीकुर्यात् ।
(वृ० प० २२६) १८. तथा गाथापति – हे प्रभु ! क्रियाणो बेचता नै ताय । १८. गाहावइस्स णं भंते ! भंडं विक्किणमाणस्म कइए
गाहक भंड प्रतै लिय, संचकार ते साई देवाय जी । भंडं साइज्जेज्जा, भंडे से उवणीए सिया । भंड वस्तु पोता री ठहराय जी, भंड वस्तु ल्यायो घर माय जी । कइयस्स णं भंते ! ताओ भंडाओ कि आरंभियाबेचणहार पास रही नांय जी, प्रभ ! गाहक कइया' ने कहाय जा ।
किरिया कज्जइ ? जाव मिच्छादसणकिरिया तसं भंड थी के क्रिया थाय जी, तथा गाथापति ने ताय जी ।
कज्जइ ? गाहावइस्स वा ताओ भंडाओ कि आरंभंड थी पांचां में किती पाय जी? जिन भाखै गोयम! सूण वाय जी ।
भियाकिरिया कज्जइ जाव मिच्छादसणकिरिया गाहक-कइयो जे वस्तु लिवाय जी, तिण रै भंड थी चिहु अधिकाय जी।
कज्जइ ? गोयमा ! कइयस्स ताओ भंडाओ भजना मिथ्यादर्शन मांय जो, गाथापति ने सह पतली पाय जी।
हेट्ठिल्लाओ चत्तारि किरियाओ कज्जति । मिच्छा
दसणकिरिया भयणाए। वस्तु संपे दीधी ए न्याय जी, ए द्वितीय आलावो कहाय जो।
गाहावइस्स णं ताओ सब्बाओ पयणुईभवंति । श्री वीर कहै सुण गोयमा ।।
(श० ५/१३०) सोरठा भंड आश्री बे आलाव, पहिले भंड संप्यो नथी ।
१६. इदं भाण्डस्यानुपनीतोपनीतभेदात्सूत्रद्वयमुक्तम् । द्वितीय आलावे भाव, भंड संप्यो गाहक भणी ।।
(वृ० प० २२६) २०. गाथापति नैं हे प्रभ! क्रियाणो बचता ने ताय । २०. गाहावइस्स णं भंते ! भंडं विक्किणमाणस्स कइए
गाहक भंड प्रतै लिय, संचकार ते साई देवाय जो। भंडं साइज्जेज्जा, घणे य से अणुवणीए सिया ? भंड वस्तु पोतारी ठहराय जी, पिण धन हजो संप्यो नांय जी। कइयस्स णं भंते ! ताओ धणाओ कि आरंभियाधन छै गाहक-कइया पाय जी, प्रभु ! गाहक कइया ने कहाय जी। किरिया कज्जइ ? जाब मिच्छादसणकिरिया धन थी कितली क्रिया थाय जी, तथा गाथापति ने ताय जी । कज्जइ ? गाहावइस्स वा ताओ धणाओ कि आरंधन थी पांचां में किती पाय जी? तब भाखै श्री जिनराय जी । भियाकिरिया कज्जइ? जाब मिच्छादसणकिरिया गाहक कइया तणे कहिवाय जो, धन थी धुर चिहु अधिकाय जी । कज्जइ ? गोयमा ! कइयस्स ताओ धणाओ हेट्ठिभजना मिथ्यादर्शन मांय जी, गाथापति नैं पतली थाय जी । ल्लाओ चत्तारि किरियाओ कज्जति । मिच्छादसणहजी न लियो धन ए न्याय जी, ए तृतीय आलावो कहाय जी ।। किरिया भयणाए। श्री वीर कहै सुण गोयमा ।। गाहावइस्स णं ताओ सवाओ पयणुईभवति ।
(श. ५/१३१) २१. गाथापति मैं हे प्रभ ! कियाणो बचता नै ताय ।
२१. गाहावइस्स णं भंते ! भंडं विक्किण माणस्स कइए गाहक भंड प्रतै लिय, संचकार ते साई देवाय जी।
भंडं साइज्जेज्जा, धणे से उवणीए सिया । गाहाभंड-वस्तु ल्यायो घर मांय जो, धन सूंप दियो तसुं ताय जी ।
वइस्स णं भंते ! ताओ धणाओ कि आरंभिपागाहक-- कइया पासै रह्यो नांय जी, प्रभु! गाथापति नै कहिवाय जी।
किरिया कज्जइ ? जाव मिच्छादंसकरिया
कज्जइ? कइयस्स वा ताओ धणाओ कि आरंभिया*लय : तीन बोला करी जीत
किरिया कज्जइ ? जाव मिच्छादसण किरिया १. खरीदने वाला
कज्जइ?
श० ५, उ०६, ढाल ८६ ५५
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