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अल्प आउखो एह, कहिय तेहिज क्षुल्लक भव । अशुभ कहीजै तेह, अपेक्षाय नहि अल्प शुभ ।। जीव हण षट काय, वदै झठ वलि जाणनें । सचित्त असूझतो ताय, बहिरावै मुनिवर भणी।। ए त्रिहु बोलज नीच, तेहथी शुभ अल्प आयु किम । 'नडिया मिथ्या मीच", कहै एहथी अल्प शुभ ।। दूजा दंडक मांहि, ते समचै दीर्घ आयू कह्यो । पिण शुभ आश्री ताहि, तास भेद बे आगल । तोजा दंडक मांहि, अशुभ दीर्घ आयू कह्य । चोथे दंडक ताहि, आख्यो शुभ दीर्घ आउखो ।। दीर्घ आयु पुन्य पाप, तिण सुं बे भेदे करी ।
श्री जिन कोधो थाप, करणो फल चिहु जूजुआ । १३. अल्प आउ बे भेद, शुभ अल्पायू अशुभ फुन ।
इम नहि कह्या सवेद, तिण सुंए अल्प अशुभ छ” ॥ (ज०स०) इहां पाछे पहिछान, कर्मबंध क्रिया कही। १४. अनन्तरं कर्मबन्धक्रियोक्ता, अथ क्रियान्तराणां विषयअन्य क्रिया हिव जान, कहियै छै तेहनों विषय ॥ निरूपणायाह ----
(वृ०प०२२८) १५. *हे प्रभ! गहस्थ गाथापती जी, भंड क्रियाणो बचत । १५. गाहावइस्स णं भंते ! भडं विक्किणमाणस्स केइ
इतरै कोइ भंड चोर लै, प्रभ ! भंड – तेह जोवत जी। भंडं अवहरेज्जा, तस्स णं भंते ! 'भंडं अणुगवेसमातेहने आरंभिया क्रिया हुँत जी, तथा परिग्रहिया लागंत जी ? णस्स' किं आरंभिया किरिया कज्जइ ? पारिग्गहिया मायावत्तिया कषायमंत जो, अपचखाण अव्रत कहंत जो ?
किरिया कज्जइ ? मायावत्तियाकिरिया कज्जइ ? मिथ्यादर्शन तणो होवंत जी ? जिन कहै धूर च्यार थावंत जी ।
अपच्चक्खाणकिरिया कज्जइ ? मिच्छादसणवत्तियामिथ्यादर्शण भजना भवंत जी, गृहस्थ मिथ्यादष्टि ह तोहुत जी।
किरिया कज्जइ ? समदृष्टि रै नांहि कहंत जी, जोवतां भंड तेह लाधंत जो ।
गोयमा ! आरंभियाकिरिया कज्जइ, पारिग्गहियाजब पतली च्यारू उपजत जी, जोवतां बहु उद्यम करंत जी ।
किरिया कज्जइ, मायावत्तियाकिरिया कज्जइ, लाधां पछै अल्प उद्यमवंत जी, श्री बोर कहै सुण गोयमा !॥
अपच्चक्खाणकिरिया कज्जइ, मिच्छादंसणकिरिया सिय कज्जइ, सिय नो कज्जइ। अह से भंडे अभिसमण्णागए भवइ, तओ से पच्छा
सव्वाओ ताओ पयणुई भवंति। (श० ५/१२८) सोरठा १६. हिव अलावा च्यार, धुर बे भंड वस्तू तणा ।
तीजो चोथो धार, धन आश्रो आख्या अछै ।। १७. *गाथापति – हे प्रभ! क्रियाणो बेचता नै ताय । १७. गाहावइस्स णं भंते ! भंड विक्किणमाणस्स कइए
गाहक भंड प्रत लिय, संचकार ते साई देवाय जो । भंड साइज्जेज्जा, भंडे य से अणु वणीए सिया । भड वस्तु पोता री ठहराय जी, मिण भंड हजी ग्रह्यो नांय जो। गाहावइस्स णं भंते ! ताओ भंडाओ कि आरंभियावस्तु बेणहार रै पाय जो, प्रभ गाथापति नैं कहाय जी । किरिया कज्जइ ? जाव मिच्छादसणकिरिया भंड थी कितलो क्रिया थाय जी, तथा ग्राहक ने पिण ताय जी।
कज्जइ? कश्यरस वा ताओ भंडाओ कि आरंभिया
किरिया कज्जइ ? जाव मिच्छादसणकिरिया १. मिथ्यात्व रूपी मित्र के साथ बंधे हुए।
कज्जइ? *लय: तीन बोलां करी जीव
५४ भगवती-जोड़
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