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________________ नहीं। लोभ-हेतुक नैं परिसह नां अणकहिवा थकीज तिहां मोह ना उदय ना परिसह नथी। अथवा कोइ पिण कथंचित किणहि प्रकार कर ए जो हुई तो तेहन इहां अत्यंत अल्पपण करी वंछयो नथी, एहq टीका मध्ये कह्य। ते बहुश्रुत विचारी न्याय मिलै ते प्रमाण करिये, वलि केवली वदै ते सत्य । अनै आठमै गुणठाणे उपशमसम्यक्त्व हुई, ए दर्शण मोह नां बडा खंड उपशमाया अनै लघु खंड उपशमावा लागो ते 'कडेमाणे कडे' ए वीतराग री सरधा रै लेखै उपशम सम्यक्त्व कहिये । उपशमावा लागो तेहनै उपशमायो कहिये । इण न्याय आठमै गुणाठाण उपशम-सम्यक्त्व वर्तमान काले आवै। अनै जो चोथा सूं लेइ सातमां गुणठाणां तांइ पिण उपशम-सम्यक्त्व छै, ते जो आगली उपशम-सम्यक्त्व हुई। पछै श्रेणि चढे तो बात न्यारी, एहवू पिण जणाय छै । वलि केवली वदै ते सत्य । ६०. *वीतराग छनस्थ जे, इकविध बंधक जाण । किता परीसह परूपिया, ग्यारम बारम ठाण? ११. जिन भाखै इमहीज छ, षट विध-बंधक जेम । चउद परीसह परूपिया, द्वादश वेदै तेम। ६०. एक्कविहबन्धगस्स णं भंते ! वीयरायछउमत्थस्स कति परीसहा पण्णत्ता? ६१. गोयमा ! एवं चेव जहेव छव्विहबन्धगस्स । (श० ८।३२६) 'एवं चेवे' त्यादि चतुर्दश प्रज्ञप्ता द्वादश पुनर्वेदयतीत्यर्थः (वृ० ५० ३६२) ६२,६३. शीतोष्णयोश्चर्याशय्ययोश्च पर्यायेण वेदनादिति (वृ० ५० ३६२) ६२. सीत वेदै जे समय में, उष्ण न वेदै वदीत । उष्ण वेदै जे समय में, वेदै नहिं ते सीत ।। ६३. चरिया वेदै जे समय में, वेदै नहिं ते सेज । सेज्या वेदै जे समय में, चरिया अवेद कहेज ॥ ६४. एक कर्म बंधै तेहन, सजोगी केवली जाण । किता परीसह तेहनें, तेरसमें गणठाण || ६५. जिन कहै ग्यार परीसहा, नव पुण वेदै तेम । शेष सहु विस्तार ते, षटविध-बंधक जेम । ६६. कर्म न बंधै तेहन, अजोगी केवली एह । किता परीसह परूपिया, चोदशमै गण जेह॥ ६७. जिन भाखै सुण गोयमा ! तास परिसहा ग्यार । नव पुण ते वेदै अछ, ए जिन वयण उदार ॥ १८. सीत वेदै जे समय में, उष्ण न वेद वदीत । उष्ण वेदै जे समय में, वेदै नहि ते सीत ।। १४. एगविहबन्धगस्स णं भंते ! सजोगीभवत्थकेवलिस्स ___ कति परीसहा पण्णत्ता? ६५. गोयमा ! एक्कारस परीसहा पण्णत्ता। नव पुण वेदेह । सेसं जहा छविहबन्धगस्स । (श० ८।३२७) १६. अबन्धगस्स णं भंते ! अयोगिभवत्थकेवलिस्स कति परीसहा पण्णत्ता? ६७. गोयमा ! एक्कारस परीसहा पण्णत्ता। नव पुण वेदेइ१८. जं समयं सीयपरीसहं वेदेइ नो तं समयं उसिणपरी सहं वेदेइ, जं समयं उसिणपरीसहं वेदेइ नो तं समयं सीयपरीसहं वेदेइ, ६६. जं समयं चरियापरीसहं वेदेइ नो तं समयं सेज्जापरी सहं वेदेइ, जं समयं सेज्जापरीसहं वेदेइ नो तं समयं चरियापरीसहं वेदेइ। (श० ८।३२८) ९९ चरिया वेदै जे समय में, वेदै नहिं ते सेज । सेज्ज वेदै ते समय में, चरिया अवेद कहेज'। *लय : शिवपुर नगर सुहामणो १. कहां कितने परीषह होते हैं और जघन्यतः तथा उत्कर्षतः एक साथ कितने परीषह हो सकते हैं? कौन-कौन से परीषह एक साथ नहीं होते ? इन प्रश्नों १०६, ३.८,०१५२ ४६५ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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