________________
८६. तेह की अवलोय, अवलोय, परिसह इम टीका में जोय, सर्वज्ञ व ८७. सूक्ष्म संपराय सूत, मोह कर्म
परिसह हेतूभूत, एह ८८. सूक्षम मात्र कहाय,
मोह की उपजाय, ८६. ए सगलो विस्तार, बुद्धिवंत न्याय विचार
आठई हुवे । तिकोज सत्य ||
विषे । नथी ॥
भणी ।
नहीं ।
आखियो ।
मानिये ॥
सत्ता
मोह उदय मोह उदय छै ते मोह उदय चैते ते परिसह संभव टीका मांहे मिलतो हवे ते
वा० - इहां कह्यो - मोह आउखो वर्जी छ कर्म बंधे ते सूक्ष्मसंपराय दशमें गुणठाणे सूक्ष्म लोभ तां जे अणु तेनां वेदवा की सरागी कहिये अने केवलज्ञान नथी ऊपनो ते मार्दै छद्मस्थ कहियें, तेहने चवदे परिसह कह्या आठ परिसह मोहणी थकी जे ऊपनां छे ते नथी । तेहनें मोहनी नां बंध तो अभाव छे। अने उदय पिण सूक्ष्म मात्र छै, ते भणी मोहनी थी ऊपनां आठ परिसह है ते दशमें गुणठाणे नथी । ते बावीस मांहि की आठ दूर कीर्ज तिवारे शेष रहे इम क
"
1
वलि ते वचन नां सामर्थपणां थकी नवमैं गुणाठाणै मोहनी नां उदय थकी ऊपना आहूं परिसह नों संभव पामिये, ते किम मिले? जे भणी नवमैं गुणठाणे अनुतानबंधी क्रोध मान माया लोभ अनैं मिथ्यात मोहणी, मिश्र मोहणी, सम्यक्त्व मोहणी ए सातूं प्रकृति नैं दर्शण-सप्तक कहिये । तेहनों उपशम हुई। बादर-संपराय नां धणी ने दर्शन मोहगी तो उदय नमी, तिवारं दर्शण-परिसह पण नथी अर्ने चारित्र मोहणी नां उदय थी सात परिसह छे, ते हुवै पिण आठ किम हुवे ? अनेँ जो नवम गुणठाण दर्शन - मोहणी नीं सत्ता छै ते सत्ता नीं अपेक्षाय एवं छीए तो आठ पिण हुवे । इम जो नववें मोह- सत्ता नीं अपेक्षाय आठ परिसहा कहिईं तो दशमैं गुणठाण पिण मोहणी नीं सत्ता छै तिहां ए आठ किम न हुई । न्याय नां समानपणां थकी । अनैं दशमैं गुणठाणै तो मोहणी नां उदय नां आऊं परिसह वर्ज्या छै । अत्र उत्तरजे भणी दर्शण सप्तक उपशम नां ऊपरला बेहड़ा नां काल नैं विषेहीज नपुंसक वेद उपशमावान आदिनां काल नै विषे अनिवृत्ति बादरसंपराय नवमों गुणठाणो हुवै ते मार्ट गाणं दर्शण परिसह हुवे।
Jain Education International
तथा आवश्यकादिक व्यतिरिक्त ग्रंथांतर नैं मते इम का' छै ते कहै छै - मिथ्यात मोहणी, मिश्र - मोहणी, सम्यक्त्व - मोहणी-ए दर्शण त्रय नां बृहत भाग ते मोटा स्थूल भाग उपशांत कीधे छते अन शेष भाग ते लघु अत्यंत सूक्ष्म भाग उपशांत नहीं थया हुई नपुंसक वेद प्रत ते दर्शण मोह नां अत्यंत सूक्ष्म खंड साथै उपशमायवा में उपक्रम करे ते अणी ते नपुंसक वेद उपशम नां अवसर ने विषे अनिवृत्ति-वादर सूक्ष्मसंपराय नवमों गुणठाणो हुवै ते वेला दण-मोह में प्रदेश की उदय से पिण निकेवल सत्ता में ईज नवी ते प्रत्यय निमित्त कारण दर्शण परिसह नव गुणठाणं से, ते भणी आइ परिसह हुई इति ।
1
अने सूक्ष्मसंपराय ने मोह-सत्ता ने वि पिण ते परिसह हेतुभूत नवी अनं सूक्ष्म मात्र पिण मोहनीय नो उदय छे ते भणी ते सूक्ष्म मात्र मोह नां उदय थी परिसह नों संभव न हुई । जे सूक्ष्म लोभ कीट्टिका नों उदय छे ते परिसह नो हेतुभूत
४६४ भगवती - जोड़
८६. ततश्चाष्टावपि भवन्तीति
(०१० ३९१)
८०. सूक्ष्मसम्परायस्व तु मोहसत्तायामपि न परषहहेतुभूतः ( वृ० प० ३९१ ) ८८. सूक्ष्मोऽपि मोहनीयोदयोऽस्तीति न मोहजन्यपरीषह( वृ० प० ३९१ )
सम्भवः ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org