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________________ १००. देश अठ्यासी नों ए कह्य, इक सौ बावनमी ए ढाल । भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी, 'जय-जश' हरष विशाल ॥ ढाल : १५३ १. अनन्तरं परीषहा उक्तास्तेषु चोष्णपरीषहस्तद्हेतवश्च सूर्या इत्यतः सूर्यवक्तःव्यतायां निरूपयन्नाह (वृ० प० ३६२) दूहा १ कह्या परिसहा तेह विषे, उष्ण परीसह जाण । तसु हेतू रवि तास हिव, वक्तव्यता पहिछाण ॥ __ *प्रभु ! अरज करूं छू वीनती । (ध्रुपदं) २. हो प्रभ! जंबूद्वीप नामा द्वीप में, ए तो सूरज दोय सुजाण हो। हो प्रभु ! ऊगवाना जे काल नां, महूर्त विषे पहिछाण हो। ३. देखणहार जे मनुष्य छ, तेहनां स्थान तणी अपेक्षाय । दूर ते अलग रह्यो रवि, मूल ते निकट देखाय । २. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरिया उग्गमणमुहत्तंसि : ४. मध्यांत मध्य विभाग में, ओ तो गगन तणो मध्य धार । ___ अथवा दिवस नां मध्य नां, तिण महत विषे विचार ॥ ३. दूरे य मूले य दीसंति ? 'दूरे च', द्रष्ट्रस्थानापेक्षया व्यवहिते देशे 'मूले च' आसन्ने (वृ० प० ३६३) ४. मझतियमुहुत्तंसि मध्यो---मध्यमोऽन्तो विभागो गगनस्य दिवसस्य वा मध्यान्तः (वृ० प० ३६३) ५. मूले य दूरे य दीसंति ? 'मूले च' आसन्ने देशे द्रष्ट्रस्थानापेक्षया 'दूरे च' व्यवहिते देशे द्रष्टुप्रतीत्यपेक्षया (वृ० प० ३६३) ६. अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति ? ५. देखणहार नां स्थान अपेक्षया, मल कहितां नजीक छै एह । द्रष्टा-प्रतीति अपेक्षया, दूर कहितां ते अलग दीसेह॥ ८. द्रष्टा हि मध्याह्न उदयास्तमनदर्शनापेक्षयाऽऽसन्नं रवि पश्यति योजनशताष्टकेनैव तदा तस्य व्यवहितत्त्वात्। (वृ० ५० ३६३) ६. आथमता महत ने विषे, रवि दूर रह्यो पिण जेह । ___अनेक सहस्र जोजन रह्यो, मूल कहितां ते निकट दीसेह ।। ७. जे ऊगतो आथमत भान, इहां थी अति दूर ही। ___ अनेक सहस्र जोजन पिण, भू थकी दीसै निकट ही। ८. मध्यान ही शत अष्ट जोजन, भू थकी तो निकट ही। रवि उदय अस्तम पेक्षया, ते दूर दीसै छ सही। के उत्तर प्रवचन सारोद्धार गाथा ६६० एवं ६९१ में उपलब्ध हैं। वे गाथाएं अविकल रूप से उद्धृत की जा रही हैं बावीसं बायरसंपराय चउदस य सुहम (संप) रायम्मि । छउमत्थ वीयरागे चउदस इक्कारस जिणम्मि ॥१॥ बीसं उक्कोसपए वट्टति जहन्नओ य एक्को य । सीओसिणचरिय निसीहिया य जुगवं न वट्ट ति ॥२॥ *लय : अहो प्रम चन्द जिनेश्वर लिय : पूज मोटा मांज तोटा ४६६ भगवती-जोड़ . . Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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