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________________ २. तिण काले नै तिण समय, वीर तणो शिष्य सार । ३. " वृत्तिकार षट वर्ष में अहमतो नामे कुमार-धमण महासुखकार ।। प्रव्रज्या कहि तास । कहां अधिक अठ वास ॥ दीक्षा कल्पे नांहि । ववहार दसमा मांहि ॥ ठाम ठाम सूत्र चरण, ४. आठ वर्ष उणा मणी, आठ वर्ष जाके चरण, ५. असोच्या केवली तनों, आठ वर्ष जाको भगवती ६. शुक्ल लेश उत्कृष्ट स्थिति, पूर्व कोड उत्तरज्झवण, । आयू जघन्य कहेस । नवम इकतीसमुद्देश ॥ ७. आऊं आठ वरस अधिक, शिव पद पामै ताम | सूत्र उपवाई में कह्यो, इत्यादिक बहु ठाम ॥ ८. ति कारण टीका मझे, अइमुत्त ना षट् वास । आख्या तेह विरुद्ध छे समय वचन थी तास ॥ ६. शुक्ललेश स्थिति भव- स्थिति, अठ वर्ष कणी नांहि । तीन काल नीं बात ए दाखी सूतर मांहि ॥ १०. तिण कारण त्रिहु काल ना जिन नीं पिण ए रीत । आठ वर्ष ऊणा भणी न दियं चरण वदीत ॥ ११. आठ वर्ष जाझा भणी, चारित्र केवल सिद्धि | आख्या छै सूत्रां मझे, पावै ए त्रि ऋद्धि ॥ १२. जिन षट वर्ष दिये दीक्षा, तो केवल शिव पिण थाय । चरण कहै तो केवली अरु शिव नहि कि न्याय ? १३. षट् वर्षे ए त्रिहुं हुवै, तो शुक्ल-लेश स्थिति ताय । षट् वर्षे कणो तसुं पूर्व कोड कहिवाय ॥ १४. चरम-शरीरी आयु पिण, कहिवूं जघन्य छ वास । आठ वर्ष जाझो कह्यं, सूत्र उववाई तास ॥ १५. शुक्ल लेश स्थिति वर्ष नव नव ऊणी पूरव कोड । नवमा नुं ए देश है, तिण सूं नव वर्ष जोड | १६. इत्यादिक बहु न्याय करि, चरण केवल शिव रीत । 1 आठ वर्ष जाते हुवे काल हिं काल त्रिहु सुवदीत ॥" ( ज० स० ) "धमण अदमुत्तो रे, चरण- रयण चित चंगे। प्रकृति-भद्रीक विनीत प्रवर, जिन आणा-रति-रस रंगे ॥ ( ध्रुपदं ) २८ भगवती - जोड़ ऊणी नव वर्षेण । पोतीसम अज्भेण ।। १७. प्रकृति स्वभावे उपशमयंती, पतली प्यार कषाया । कोमल निरहंकार गुणेकर, शोभत ते मुनिराया ॥ * लय : कुन्यु जिनवर रे....... Jain Education International For Private & Personal Use Only २. तेगं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अइमुत्ते नामं कुमार-समणे । ३. षड्वर्ष जातस्य तस्य प्रव्रजितत्वात् ( वृ० प० २१६ ) 'साइरेपासवा ४. नो कप्पइ निग्गंथाणं वा उवावेत्तए वा संभुंजित्तए वा । ( व्यवहार १०।२१, २२) ५. से णं भंते! कयरम्मि आउए होज्जा ? गोमा ! जण सातिरेयासाउए उक्कोयेगं पुण्यकोटिलाउए होना (भ० श० २१४१) ६. मुहुतद्धं तु जहन्ना, उक्कोसा होइ पुव्वकोडी उ । नवहि वरिसेहि भ्रूणा, नायव्वा सुक्कलेसाए || (उत्तरा० ३४।४६ ) ७. जीवा णं भंते ! सिज्झमाणा कयरम्मि आउए सिति ? गोवमा जहणणं साइरेस उनको पुलकोडोयाउए सिति । ( ओवाइयं सू० १८८ ) १७. परभदए मिसंपन्ने। पाइपयणु को हमाणमायालोभे www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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