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ग्रहणाकर्ष रै सन्दर्भ में ईरियावहि कर्मबन्ध नों यन्त्र-- बंधी | बंधइ । बंधिस्सइ । ११ में बांध्यो ११ में बांध | ११ में बांधस्य ए उपशांत-मोह तथा १२, ।
१३ में बांध्यो, बांधै, बांधस्य १२ में बांध्यो | १३ में बांध १४ में न बांधस्य ए क्षीण मोह । ११ में बांध्यो । १० में न | ११ में बांधस्य उपशांत-मोह एक भव में बांधै
दीय वार आव। १३ में बांध्यो । १४ में न सिद्ध न बांधस्य ए क्षीण-मोह शैलेशी बांध
अवस्था। न बांध्यो ११ में बांध | ११ में बांधस्य | ए उपशांत-मोह तथा १२,
१३ में बांध, बांधस्य। न बांध्यो बांधे । न बांधस्य | ए शून्य । न बांध्यो । न बांध बांधस्यै ए भव्य उपशम-मोह
होणहार तथा क्षीण-मोह
होणहार । न बांध्यो । न बांध न बांधस्यै | ए अभव्य । १६२. इरियावहि कर्म जाण, बंध आश्री कहिये हिवै।
आदि अंत करि माण, चिउं भंगे करि प्रश्न ते॥ १६३. *हे प्रभु ! ते इरियावहि, कर्म नो बंध वदीतो। स्यू आदि सहित अंत सहित छै?
के आदि सहित अंत रहीतो।। १६४. कै आदि-रहित अंत-सहित ते?
कै आदि-रहित अंत रहीतो? इरियावहि बांधे प्रभु ! जिन कहै सुण धर प्रीतो॥ १६५. आदि-सहित अंत-सहित छ, इरियावहि कर्म बांधै ।
शेष तीन भांगे करी, तास बंध नहिं सांधै ।।
१६२. अथैर्यापथिकबन्धमेव निरूपयन्नाह
(वृ० ५० ३८७) १६३. तं भंते ! किं सादीयं सपज्जवसियं बंधइ ? सादीयं
अपज्जवसियं बंधइ?
१६४. अणादीयं सपज्जवसियं बंधइ ? अणादीयं अपज्जव
सियं बंधइ?
१६५. गोयमा ! सादीयं सपज्जवसियं बंधइ, नो सादीयं
अपज्जवसियं बंधइ, नो अणादीयं सपज्जवसियं बंधइ, नो अणादीयं अपज्जवसियं बंधइ।
(श० ८/३०७) १६६. तं भंते ! कि देसेणं देसं बंधइ ? 'देशेन' जीवदेशेन 'देश' कर्मदेशं ।
(वृ० ५० ३८७) १६७. देसेणं सव्वं बंधइ? सव्वेणं देसं बंधइ?
१६६. ते प्रभ ! स्यू' इरियावहि, जीव देशे करि जोयो?
__ कर्म ना देश प्रतै तदा, बांधै छै अवलोयो ?
१६८. सव्वेणं सव्वं बंधइ ?
१६७. के जीव तणे देशे करी, कर्म सर्व प्रतिबांधे ।
तथा सर्व जीवे करी, कर्म नां देश नैं सांधै ? १६८. तथा सर्व जीवे करी, सर्व कर्म बंध होयो ?
ए चोभंगी पूछियां, हिव जिन उत्तर जोयो ? १६६. जीव तणे देशे करी, कर्म न देश न बांधै ।
जीव तणे देशे करी, सर्व कर्म नहिं सांधे ॥
१६६. गोयमा ! नो देसेणं देसं बंधइ, नो देसेणं सव्वं
बंधइ
*लय : राम सोही लेवै सीता तणी
श०८,उ०८, ढा०१५० ४५३
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