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________________ ६०,६१. द्वितीयस्तु यः पूर्वस्मिन् भवे उपशान्तमोहत्वं लब्धवान् वर्तमाने च क्षीणमोहत्वं प्राप्तः स पूर्व बद्धवान् वर्तमाने च बध्नाति शैलेश्यवस्थायां पुन नै भन्स्यतीति । (वृ० प० ३८६) ६३,६४. तृतीयः पूर्वजन्मनि उपशान्तमोहत्वे बद्धवान् तत्प्रतिपतितो न बध्नाति अनागते चोपशान्तमोहत्त्वं प्रतिपत्स्यते तदा भन्त्स्यतीति । (वृ० प० ३८६) इहां अनागत शब्द में अनागत काल लेवै जद तो कोई अटकाव नहीं। जिम तिण भव में उपशमश्रेणी लेई बलि तिणहिजभव में अनागत काले उपशमश्रेणी लहीने इरियावहि बांधे । पर अनागतशब्दे अनागतभव लेवै तो बात मिल नहीं। कारण उपशमश्रेणी तीन भव में आवै नहीं। जिम भगवती शतक २५ उद्देशक ७ में इम कह्यो-सूक्ष्म सम्पराय चारित्र उत्कृष्ट नौ बार आवै, ते पिण उत्कृष्टो तीन भव में आवै । बे भव में तो उपशमश्रेणी थी आठ बार अनै तीजे भव में खपकश्रेणी थी एक बार । इण न्याय उपशमश्रेणी तीन भव में आवै नहीं।। ९०. बलि पूर्व भव गुण ग्यारमै, बांध्यो करम इरियावही । फुन वर्तमान भव मांहि बांधे, क्षीण मोह विषे रही। ६१. अरु अनागत नहिं बांधस्य ते, चवदमां गण में सही । बांध्यो रु बांध बांधस्यै नहि, द्वितीये भंगे वृत्ति ही। सोरठा ६२. बांध्यो ग्यारम मांहि, बांधे तेरम गण विषे । चवदम बांधस्य नांहि, फून सिद्धे इम 'धर्मसी' ।। ६३. *जे पूर्व भव गण ग्यारमें, बांध्यो करम इरियावही । फून वर्तमान भव में न बांधे, हेठले गणठाण ही। ६४. बलि अनागत भव बांधस्यै, गुण ग्यारमें इम वृत्ति हो। बांध्यो न बांध बांधस्यै, इम ततोय भंग विशेष ही ।। सोरठा ६५. बंध्यो ग्यारम ठाण', बांधै नहि दशमें गणे। पूर्व भव पहिछाण, पडतो उपशमश्रेणि जे ॥ ६६. आगल भव बांधेस, ग्यारम बारम तेरमें । त्रिहुं गुणठाण विशेष, तृतीय भंग कृत 'धर्मसी' । ६७. *जे पूर्व भव गुण' ग्यारमें, बांध्यो करम इरियावही । फुन वर्तमान भव नाहिं बांधे, चवदमें गुण ए सही ॥ १८. वलि अनागत नहिं बांधस्य ते, सिद्ध में पहिछाणियै । बांध्या न बांध बांधस्यै नहि, तुर्य भंग ए जाणिय। ६६. जे पूर्वभव नवि बांधियो, गुण ग्यारमों पायो नहीं । फुन वर्तमान भव मांहि बांध, ग्यारमें गण ए सही॥ १००. ते अनागत भव बांधस्यै वलि, ग्यारमा गण में रही। नहिं बंध्यो बांधे बांधस्यै, ए भंग पंचम वृत्ति ही। सोरठा १०१. पूर्व भवे अबंध, बंधै छै गण ग्यारमें । ___बंधस्यै त्रिहुं गुण संध, पंचम भंगे 'धर्मसी' ॥ *लय : पूज मोटा भांज तोटा १, २. गुणस्थान ६७,६८. चतुर्थस्तु शैलेशीपूर्वकाले बद्धवान् शैलेश्यां च न बध्नाति न च पुनर्भन्त्स्यतीति। (वृ० प० ३८६) ६६,१००. पञ्चमस्तु पूर्वजन्मनि नोपशान्तमोहत्वं लब्ध वानिति न बद्धवान् अधुना लब्धमिति बध्नाति पुनरप्येष्यत्काले उपशान्तमोहाद्यवस्थायां भन्त्स्यतीति पञ्चमः (वृ० प० ३८६) थ०८, उ०८, ढा०१५० ४७ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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