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७४. अथैर्यापथिककर्मबंधनमेव कालत्रयेण विकल्पयन्नाह
(वृ० प० ३८६) ७५. तं भंते ! किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ ?
७६. बंधी बंधइ न बंधिस्सइ ?
७७. बंधी न बंधइ बंधिस्सइ ?
७८. बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ ?
न बंधी बंधइ बंधिस्सइ ?
८०. न बंधी बंधइ न बंधिस्सइ ?
८१. न बंधी न बंधइ बंधिस्सइ?
७४. इरियावहि बंध ईज, काल तीन करिने हिवै ।
विकल्प तास कहीज, पूछ गोयम गणहरू। ७५. *इरियावहि कर्म हे प्रभ स्य' बांध्यो गये कालो।
वर्तमान बांधे अछ, बांधिस फेर विशालो ।। ७६. गये काले बांधै अछ, वर्तमान बांधंतो।
अनागत नहीं बांधस्य ? दूजो भंग दीपंतो।। ७७. गये काले बांध्यो अछ, बांध्यो नहिं वर्तमानो ।
काल अनागत बांधस्य ? तृतीय भंग सुजानो।। ७८. गये काले बांध्यो अछ, बांधै नहिं वर्तमानो।
अनागत नहीं बांधस्यै ? तुर्य भंग पहिचानो। ७६. गये काले बांध्यो नहीं, वर्तमान बांधतो ।
काल अनागत बांधस्य ? पंचम भंग कहंतो॥ ८०. गये काले बांध्यो नहीं, बांधै छै वर्तमानो।
अनागत नहि बांधसी? छट्टो भंग पिछानो ।। ८१. गये काले बांध्यो नहीं, नहि बांधै वर्तमानो ।
काल अनागत बांधस्यै ? सप्तम भंग सुजानो। ८२. गये काले बांध्यो नहीं, बांध नहि वर्तमानो ।
अनागत नहीं बांधस्यै ? अष्टम भंग पिछानो ।। ८३. जिन कहै बहु भव में विषे, इरियावहि अपेक्षायो ।
बांध्या बांध बांधस्यै, केयक जीव कहायो ।। ५४. केइ अतीतज बांधियो, बांधै छै वर्तमानो।
आगमिक नहिं बांधस्यै, इम तिमहिज सह जानो। ८५. जाव केयक नहिं बांधियो, सांप्रत बांधे नाही । आगमिक नहीं बांधस्यै, ए अष्टम भंग त्यांही ॥
सोरठा ५६. भवाकर्ष कहिवाय, जे अनेक भव नै विषे ।
उपशम आदिज ताय, श्रेणि पामवै करि तिको ।। ८७. इरियावहि जे कर्म, तेहनां अणु नो जे ग्रहण ।
भवाकर्ष ए मर्म, ते आश्री भंग अठ हुवै ।। ८८. भव पूर्व में उपशांतमोहे, बंध जे इरियावही ।
फुन वर्तमान भव मांहि बांध, मोह उपशम में रही।
८२. न बंधी न बंधइन बंधिस्सइ ?
८३. गोयमा ! भवागरिसं पडूच्च अत्थेगतिए बंधी बंधइ
बंधिस्सइ ८४. अत्थेगतिए बंधी बंधइ न बंधिस्सइ, एवं तं चेव सळां
८५. जाव अत्थेगतिए न बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ
८६,८७. अनेकत्रोपशमादिश्रेणिप्राप्त्या आकर्षः-ऐपिथिक___ कर्माणुग्रहणं भवाकर्षस्तं प्रतीत्य । (वृ० प० ३८६)
८८. पूर्वभवे उपशान्तमोहत्वे सत्यर्यापथिकं कर्म बद्धवान् वर्तमानभवे चोपशान्तमोहत्वे बध्नाति ।
(वृ० प० ३८६) ८९. अनागते चोपशांतमोहावस्थायां भन्त्स्यतीति
(वृ० प० ३८६)
८९. वलि अनागत भव बाधस्य जे, क्षपकश्रेण विषे सही ।
बांध्यो रु बांध बांधस्यै, इम प्रथम भंग पिछाणही॥
वा०—इहां वृत्ति में कह्यो-पूर्व भवे ग्यारमें गुणठाणे बांध्यो, वर्तमान भव में पिण ग्यारमें गुणठाणे बांध, वलि अनागत पिण ग्यारमें गुणठाणे बांधसी । *लय : राम सोही लेवे सीता तणी लिय : पूज मोटा भांजे तोटा ४६ भगवती-जोड़
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