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च्यार आहार अचित नैं सूझता छै,
पिण श्रावक रै संका पड़ी तिण वार । ते संका सहित साधां नै वेहरावै,
तिण रा सावज्ज जोग व्यापार ॥५०॥ सावज्ज जोग सू एकंत पाप लागै छै,
निरवद जोग सू निरजरा नैं पून थाय । थोड़ो पाप नैं बोहत निरजरा बतावै,
तिण नैं पूछीजे किसा जोगां सू हवै ताय ॥५१॥ संका सहित आहार साधां नै वेहरायो,
तिण घर रो माल खोय नै पाप लगायो। तो सचित – असूझतो जाण नैं देसी,
तिण रै बोहत निरजरा किण विध थायो ॥५२।। सुध साधां भेलो तो अभवी रहै छ,
तिण रो साध देखै छै सुध ववहार । तिण अभवी नैं साध वांदै पूजै छ,
तिणरो साधां नै दोष न लागै लिगार ॥५३।। साधां भलो रहै चोथा व्रत रो भागल,
ते तो छानो छै तिण रो न पड़यो उघाड़ो। तिणनें वांदै पूजे आहार पाणी देवै छै,
तिणरो साधां नै दोष न लागो लिगारो ॥५४॥ अभवी भागल नै जाणे मांहे राखै,
जब सर्व साधां रो साधुपणो भाग। ज्य सचित नै असूझतो जाणे वेहरायां,
तिणरै निश्चैइ एकंत पापज लागै ॥५५।। सचित नैं असूझतो आहार दियां में,
अल्प पाप नै निरजरा सरधै किण लेखे । दोय वाना सरध्यां मिश्र दान थपै छ,
मिश्र उथाप्यो तिण सांहमो क्यू नहिं देखे ॥५६॥ मिश्र वाला री श्रद्धा नै खोटी कहै छ,
पोते पिण मिश्र थापै छै मढ़ मिथ्याती। आपरा बोल्यां री आपने समझ न कांइ,
ते तो हीयाफूट गधा रा साथी॥५७।। मिश्र थापण वाला री तो सरधा खोटी छै,
ते कहै मिश्र में मन राखां छां ताय । मिथ दान रा सूस न करावा म्है किणनै,
त्यांनै पिण त्यांरा झठ री खबर न कांय ॥५८।। साधां नै आहार असुध देवण रो,
ए त्याग करावै छै किण न्याय ? ४०८ भगवती-जोड़
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