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________________ अल्प दोष नें बोहत निरजरा जाणें छे, तिण र निरजरा री कांय देवे अंतराय ॥ ५६ ॥ वले साधां रे अंतराय आहार री पाड़ी, दातार नैं ने अंतराय दीधी विशेष । अल्प दोष थकी बोहत निरजरा हुंती थी, तिणनें सूस करायो किन लेखे ॥ ६०॥ असुध जाण ने वेहराव, तिणने धर्म ने पाप दोनू इ जाणो । रा पचखाणो ॥ ६१॥ मूल सू कहे मिश्र तिणनें असू दान देवण किस लेखे करावी दान तणां म्हें, किणनेंइ सूस करावां रासू स सूस कराया, थांरी श्रद्धा री वरग वूहा नहिं कांई ॥ ६२ ॥ मूला गाजर जमीकंद दान देवै छै, नांही । इण मिश्र दान तिनमें धर्म घोड़ो ने घणो कहे पाप । चुपचाप ॥६३॥ तिण दान तणां पचखाण करावो । श्रावक साधां ने तिण दान रा स करावो नाही, मिश्रदान जाणी रहो अल्प पाप नैं बोहत निरजरा जाणो छो, बोहत पाप ने निरजरा अल्प जाणो थे, तिन दान रा स करावो छो कि न्यावो १६४॥ कोइ कहै या तो सूतर से पाठ उचाप्यो मोह मतवाला च्या आहार सचित ने अनुभता छै पिण पोते उथाप्यो ते खबर न कांय | ज्यू बोले अज्ञानी ते सांभलजो मविवण चित स्याय ।। ६५ ।। त्यांरा श्रावक त्यांने क्यूं न वेहरावै । अल्प अप पाप में बोहत निरजरा कहे थे. त्यांनै वेहरावता संका क्यू ल्यावै ॥ ६६॥ च्यार आहार सचित ने असूझता बेहरे, Jain Education International जब तो यां पाठ साचो करि थाप्यो । च्यार आहार सचित ने असुध न लेवे जब पोतैईज थाप्यो नें पोतै उथाप्यो ॥६७॥ प्यार आहार सचित साधां ने बेहरावे, जब श्रावकांड पाठ साचो करि थाप्यो । च्या आहार सचित नें असुध न देवे, जब त्यांइज थाप्यो नै त्यांहीज उथाप्यो ॥ ६८ ॥ For Private & Personal Use Only श०८, उ० ६, ढा० १४४ ४०६ www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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