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तिम ठाम में काचो पाणो घर रा चाल्यो,
तिणरी तो श्रावक नें खबर न काय ॥ ३६ ॥ तिण पाणी में श्रावक उनो जाणे नं निसंक साधां ने दियो बेहराय बोहत निरजरा हुवै तो,
तिण रै अल्प पाप नै
ते पिण केवलज्ञानी नें देणो भलाय ॥ ४० ॥ कोरा चिंणा पड़या छे भंगड़ादिक में,
सचित गोहूं पड़घा घाणी मांय
तिणरी श्रावक नें खबर न कांइ,
सूझता जाणी साधां ने दिया बेहराव ॥४१॥
अचित दाखां में सचित दालों पड़ी घं.
अचित खादम में सचित खादम छै ताय ।
तिणरी श्रावक नैं तो खबर न कांइ,
ते सूझतो जाण नै दियो बेहराय ॥४२॥
इत्यादिक अनेक सचित वस्त छ,
ते धावक निसंक सू अचित जाण ।
ते पिण आपरी तरफ सू चोकस करने,
साधां ने बेहरावं पणो हरष आण ॥४३॥ इण रीते श्रावक र बोहत निरजरा होवे,
तो पिण केवलज्ञानी जाणें ।
म्हैं तो अटकल सू उनमान कर्यो छै,
बले सूतर] रा अनुसारा प्रमाण ||४४|| आधाकर्मी साधु जाणे ने भोगवे तो, नरक निगोद में झींषां खावे असुध देवे ते संजम रो लटणहारो, चिउ गति में घणो दुख पावे ॥४५॥ आधाकर्मी साधु बजाने भोगवे तो,
पाप रो अंस न लागो लिगार ।
तिण दातार ने पूछे निरणो करि लीधो,
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संका सहित पिण नहीं लियो तिगवार ॥४६॥
आधाकर्मी आहार कियो तिज पर
उण रं तो घरे साधु बेहरण गयो नाही ।
ते आहार अनेक घरां रे आंतरे,
निरणो करे वेहर्यो पातरा मांही ॥४७॥ तिण आहार भोगवतां सुध साधु रे, पाप रो लेप न लागो कांइ । सूयगडांग इकवीस में अधेने, जोय करो निरणो घट मांही ॥४८॥ च्यार आहार सचित नैं असूझता है,
तिणरी धावक ने खबर नहीं हूं निगार ते सूकता जाणे साधा ने बेहरावे,
तिणरा छे निरवद जोग व्यापार ॥ ४९ ॥
४७४०. महाकम्याणि भुजति अणमपे सम्मुणा । उवलितेति जाणिवा अवलितेति वा पुणो ॥ एएहि दोहि अपेहि बहारो विज एहि दोहि ठाहि अगादारं विजाणए । (सूयगडो २५६, ६)
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श० ८, उ० ६, ढा० १४४ ४०७
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