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________________ ३०. निरयावलिया (३।३।२७) ..."तत्थ णं जे ते अणेसणिज्जा ते समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। (भ० श० १८।२१४) नायाधम्मकहाओ (५१७३) ३१,३२. वसित्ता बंभचेरंसि आणं 'तं णो' ति मण्णमाणा। (आयारो प्रथम श्रुत० ६७८) ३३. इहमेगेसि आयार-गोयरे णो सुणिसंते भवति,....... अदुवा अदिन्नमाइयंति । (आयारो ८।३,४) साधां ने असुध आहार तो अभष कह्यो जिण, ते अभष आहार देव दातारो। तिण रै अल्प दोष बोहत निरजरा कहै ते, भूल गया मूढ बिना विचारो॥२६॥ साधां नै असुध आहार तो अभष कह्यो जिण, निरावलिका भगोती गिनाता माय । तो अभष आहार साधां ने श्रावक वेहरायां, अल्प पाप नै बोहत निरजरा किम थाय ?३०॥ कुसीलिया ते हीण-आचारी, विना विचारियां बोलसी वेणो। रोगीयादिक गिलाण ने अर्थे, आधामियादिक जाणे ने लेणो ॥३१।। ए तो आचारंग रै छठे अधेने, ते जोयलो चोथा उद्देशा मांय । तो सचित नै असूझतो साधां ने दीधा, अल्प पाप नै बोहत निरजरा किम थाय ?३२॥ नहीं कल्पै ते वस्तु साधु वेहरै तो, तिण ने तो चोर कह्यो जिनराय । कह्यो छै आचारंग पहिले सतखंधे, __ आठमाधेन पहिला उद्देशा मांय ॥३३॥ ठाम-ठाम सूतर में नषेध्यो, साधां नैं असुध लेणो नहिं काई । श्रावक नै पिण असुध न देणो, असुध दियां में धर्म छै नांहो ॥३४॥ च्यार आहार सचित में असूझता छ, त्यां नै श्रावक तो निसंक सूजाणै सुध मान । आपरी तरफ सूसुध व्यवहार करने, साधां नै हरष सू दियो छै दान ॥३५॥ तिण री पाग में सचित पंखीयादिक न्हाख्यो, अथवा सचित रजादिक लागी छै आय । तिण री श्रावक नै कांई खबर नहीं छ, पिण व्यवहार सूसुध जाण दियो वेहराय ॥३६॥ इण रीते आहार सचित ने असूझतो छ, पिण श्रावक तो सुध जाणे ने वेहरावै। अल्प पाप ते पाप तणो छै नकारो, चोखा परिणाम सं बोहत निरजरा थावै ॥३७॥ कै तो अजाणपण साधु नैं वेहरावै, तिणरी तरफ सू फासू नैं सूझतो जाण । इण रीते ए पाठ नों अर्थ हुवै तो, ते पिण केवलज्ञानी वदै ते प्रमाण ॥३८॥ ऊनो पाणी निसंक स श्रावक जाण छ, तिण पाणी नै घर रा बावर दियो ताय । ४०६ भगवती-जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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