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शुद्ध साधु तो जाणे ने असुध न बेहरं,
अफासु ने अणेस णिज्जे
तिन पाठ से अर्थ सूधो कहणी नावे जथातथ तिण से अर्थ करे तो,
अल्प पाप ने बोहत निर्जरा किम धावे ।। १६ ।। पाठ सूतर में,
तिण रा झूठा झूठा अर्थ अनेक बतावे,
वले विविध प्रकारे
घणां लोकां में सेखी उड़ जावे ॥२०॥
ओ तो पाठ भगोती सूतर में पिण,
कदे कारण पड़ियां रो नाम बतावै । चलाइ घाले ने,
भारीकर्मा भोलां लोकां नै भरमावै ॥२१॥
आंधार अंतरंग नहीं है पिछाणो । आहार सचित नैं असूझता दीघां में,
बोहत निरजरा किहां थी होसी रे अयाणो ॥ २२ ॥ ने देवे धावक,
साधु
फासु एषणीक
ठाम ठाम
ते सचित असुध जाणे किम देवे धावक,
बहु सूतरां रं मांहि ।
बले बहुत निरजरा जाने किम त्यांहि ॥ २३॥
इण पाठ ने मूंहढे आण वारूंवार,
त्यारा सचित ने असुध खावा रा परिणाम |
जो अमुख बेहरण रा परिणाम नहीं थे,
तो यूँ ही क्योंने बकसी बेकाम ||२४|| आहार सचित ने असुध बेहरावे,
तिम रे तो अल्प आउलो बंधाय
भगोती पांच में शतक छठे उदेशे,
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वलै तीजे ठाणे ठाणाअंग मांय ॥ २५ ॥
साधु ने आहार सचित नें असुध वेहराव,
अल्प पाप ने बोहत निरजरा बा |
जब तो ठाणाअंग नें भगोती सूतर रो,
पाठ नै अर्थ दोनू ई ऊथप जाय ॥ २६ ॥
साधु ने जाण ने आधाकर्मी बेहराव,
ते तो चारित्र धर्म रो लूटणहार ।
ते पिण नरक निगोद में भींषां खावे,
उत्कष्टो से तो अनंतो कान ||२७||
आधाकर्मी हरायां छे एकंत पाप,
सचित ने अध बेहराया जो पिण पाप ।
च्या आहार सचित नें असुध वेहरायां,
तिण में मूड करे बोहत निरजरा से बाप ॥ २८ ॥
२५. कहण्णं भंते ! अप्पाउयत्ताए कम्मं पकरेंति ?
गोमाहावं समणं वा पडिलानेता-(म० श० ५।१२४) तिहि यहि जीवा अण्णा उपत्ताए कम्मं परति तंजहा --
....... तहारूवं समणं वा माहणं वा अफासुएणं अणेसणिज्जेणं असण-पान-खाइम साइमेणं पडिला भेत्ता भवति......... ( ठाणं ३ | १७ )
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श० ८, उ० ६, डा० १४४ ४०५
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