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________________ इह च सविसयंमि' त्ति स्वविषये यथानुमति रस्ति 'सामन्ने व' त्ति सामान्ये वाऽविशेषे प्रत्याख्याने सति 'अण्णत्य उ' त्ति विशेषे स्वयं भूरमणजलधिमत्स्यादौ । पुत्ताइसंतइनिमित्तमेत्तमेगारसिं पवण्णस्स । जपंति केइ गिहिणो दिक्खाभिमुहस्स तिविहंपि।। यथा च त्रिविधं त्रिविधेनेत्यत्राक्षेपपरिहारौ कृतौ तथाऽन्यत्रापि कायौं । (वृ० प० ३७१) केइक कहै.-दीक्षाभिमुख कोई गृहस्थ पुत्रादिक सन्तति मात्र निमित्त थी एकादसवीं प्रतिमा प्रतिपन्न छ, ते गृहस्थ नै त्रिविध-त्रिविध त्याग थइ सके । ___जिम विविध-त्रिविध इहां प्रश्न उत्तर कह्यो, तिम और ठिकाणे पिण करवो। ए वृद्ध उक्त वार्ता वृत्ति में कही, तिम इहां लिखी छ। बुद्धिवंत न्याय { विचारी लेईज्यो तथा वली त्रिविध-त्रिविध पचखाण नों हीज न्याय कहै छै-- १००. त्रिविध-त्रिविध श्रावक तणे, त्याग बाह्य थी जोय । देशव्रती रे सर्व थी, भितरपणे न होय ॥ १०१. इग्यारमी पडिमा मझ, समण सरीखो जेह । पेज्जबंधण जे ज्ञाति नं, छूटो नहीं कहेह ।। वा०-'कोइ कहै-इग्यारमी पडिमा में 'समणभूए' कह्यो छै ते माटै ए त्रिविधे-त्रिविधे त्याग छ, इणरै अविरत किसी रही ? सावज्ज-जोग किसो रह्यो ? तेहनो उत्तर---प्रथम तो ए देशविरती छ ते माटै देश अविरती बाकी रही। बलि इग्यारमी पडिमा वहै जिता काल तांईज त्याग छै, आगमिया काल में पंच आश्रव सेवा रो आगार तथा आसा यूं की यूं छै । कोइ कहै-जाबजीव कुशील का त्याग करो। जद पडिमाधारी कहै-जावजीव त्याग करवा रा भाव नहीं। इण लेख आगमिया काल नी आसा मिटी नहीं । इग्यारमी पडिमा में कोइ पूछ-थार पांच आश्रव का त्याग जायजीव छ के नथी ? जद कहै....इग्यारै मास तांइ छ, तठा पछै पंच आश्रव द्वार नों आगार छै । इण लेख आगमिया काल नी अविरती यूं की यूं छ, मिटी नथी। हिवं वर्तमान काल नो लेखो कहै छै—दशाश्रुतखंध सूत्र कह्यो-न्यातीला नो पेज्जबंधण तूटो नथी, ते भणी न्यातीलां नी गोचरी करै। इग्यारमी पडिमा में 'नायपेज्जबंधणे अव्वोच्छिन्ने भवइ एवं से कप्पइ नायविहं एत्तए'। इहां कह्योन्यातीलां रो पेज्जबंधण विच्छेद हुवो नथी, इम तेहनै कल्पै न्यात विधे गोचरी करै आहार नै जाये। इहां न्यातीलां रा पेज्जबंधण के खाते तेहनी गोचरी कही ते माटै पेज्जबंधण पिण जिन आज्ञा बाहिर सावज्ज छै अनै गोचरी पिण आज्ञा बाहिर सावज्ज छ । ___जद कोइ कहै-ए सावज्ज छै तो कल्पै न्यातीलां रै घरे जायवू, इम क्यूं का ? तेहनों उत्तर सूत्रे करी कहै छै । उववाइ सूत्रे कह्यो ___ अम्मड परिव्राजक नै कल्पै मगध देश संबंधी अर्द्ध आढो मान विशेष पाणी नों ग्रहिवं । ते पिण वहितो नहीं अवहितो, इम थिमिए ते पाणी नीचे कादो नथी, पसण्णे ते अतिहि निर्मल परिपूर ते छाण्यो पिण अछाण्यो नथी, ते पिण ए सावज्जपापसहित इम कहीन लेवो, पिण निरवद्य कही न लेवो। ते पिण जीव कहीन लेवो पिण अजीव कही न लेवो । ते पिण दीधो लेवो कल्पै पिण अणदीधो न लेवो । ते पिण हाथ, पग, चरू, हांडली, चरम, चाटुड़ा -- प्रमुख उपगरण नै पखालवा-धोवा भणी अनै पीवा निमित्त पिण कल्प, स्नान निमित्त नहीं कल्प। इहा अम्मड नै कल्पै काचो पाणी लेवो इम का, तेहनो जे कल्प-आचार हतो ते बतायो पिण ते सावज्ज कल्प में केवली की आज्ञा नथी। तिम पडिमाधारी नै पिण कल्प---आचार जे हूंतो ते का, पिण ते सावज्ज कल्प जिन-आज्ञा बारै छ । तिण सूं न्यातीला नीं गोचरी सावज्ज छै । अम्मडस्स कप्पइ मागहए अद्धाढए जलस्स पडिग्गाहित्तए से वि य वहमाणे णो चेव णं अवहमाणए, से वि य थिमिओदए णो चेव णं कद्दमोदए, से वि य बहुप्पसण्णे णो चेव णं अबहुप्पसण्णे, से वि य परिपूए णो चेव णं अपरिपूए, से वि य सावज्जे त्ति काउं णो चेव णं अणवज्जे, से वि य जीवा त्ति काउं णो चेव णं अजीवा, से वि य दिण्णे णो चेव णं अदिण्णे, से वि य हत्थ-पाय-चरू-चमस-पक्खालणट्ठयाए पिबित्तए वा णो चेव णं सिणाइत्तए (ओवाइयं सू० १३७) श०८, उ०५, ढा० १४२ ३९५ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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