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________________ परिग्रहा में छै । वली कोडांगमे धन तेहनां परिग्रहा में ईज छ । नफा तोटा रो मालक तेहीज छै । हजारां रूपइया नो व्याज आवै तेहनीं अभितरपणां में अनुमोदना छे । जिम न्यातीला रो पेज्जबंधण तिम अभितरपण परिग्रह नीं मूर्च्छा जाणवी । किणही ₹ लाख रूपइया नो धन हूंतो ते मित्री ने भलाय इग्यारवीं पडिमा वहै तो ते धन किण रा परिग्रहा में ? मित्री रैं तो हजार रूपइया उपरांत राखवा रा त्याग छे अने ते लाख रुपइया नी सार-संभाल मित्री करें, पिण मन में जाणै ए धन म्हारो नथी, ते भणी लाख रुपइया पाडिमाधारी रा बलिदाने को इग्वामी पहिमा में सर्वधर्मी रचि जाव उद्दिष्ट भक्त नां त्याग । इहां पहिली पडिमा में तो सर्व धर्म नीं रुचि अनैं दशमी पडिमा में उद्दिष्ट-भक्त ते तिण र अर्थे कीधो ते भोगविवा रा त्याग अन जाव शब्द में व्रत सामायक, देशावगासी, पोसह आदि विचली पडिमा में त्याग हूंता ते सर्व इग्यारमी पडिमा में कह्या, ते मार्ट इग्यारमी पडिमा में सामायिक-पोसह पिन करें ते सामायक-पोसहा में सावज्ज जोग रा त्याग छ । ते सामायक-पोसहा में खाणो-पीणो ए सावज्ज, तेहनां त्याग करें ते माटै ए खाणो-पीणो सावज्ज छे। अने ते अविरत में छै । - वलि इग्यारमी पडिमा में तपसा री केवली आज्ञा देव अन पारणा री केवली आज्ञा न देवं । गोतम ने पारणं गोचरी री आज्ञा दीधी। तिम एहन गोचरी नीं आज्ञा न देव । ते माटै ए गोचरी सावज्ज छै । पडिमा विच तो संथारो बड़ो, ते संथारे में आणंदे गोतम नैं कह्यो – हूं गृहस्थ गृहस्थावास वसतां नैं एतलो अवधि ऊपनों, ते माटै इग्यारमी पडिमाधारी नैं पिण गृहस्थ कहिये । अने नशीत उदेश पन्द्रह में गृहस्थ नै असणादिक देवे देतां प्रतै अनुमोदे तो साधु नैं चोमासी प्रायश्चित कह्यो । त्रीकरण अनुमोद्यां प्रायश्चित, तो पहिले करण देणवाला नै धर्म किहां थकी ? अन जो देवाला नै धर्म हुवै तो धर्म नी अनुमोदनां कियां प्रायश्चित किम आवे ? दशवैकालिक अध्ययन तीन में गृहस्थ नी वेयावच्च करें, करावे, करता नैं अनुमोदै तो साधु नैं अठाईसमों अणाचार कह्यो । अनैं गृहस्थ नी साता पूछे तो सोलमों अणाचार कह्यो । तथा भगवती शतक सात उदेश एक में सामायक में श्रावक री आत्मा अधिकरण कही। अधिकरण छै ते छ काय रो शस्त्र छ । तिमहीज इग्यारमी पडिमा में आत्मा अधिकरण जाणवी । ते माटै अभितरपणां में पेज्जबंधण - ममत्वभाव छूटो नथी । अ द्वारिका नगरी प्रत्यक्ष देवलोकभुत कही । तथा चक्रवर्ती नां घोड़ा नैं ऋषि नीं पर क्षमावंत कह्यो, तिम इग्यारमी पडिमा में समणभुए कह्यो, ए ओपमावाची शब्द छ । उत्तराध्ययन अध्येन पांच में एकेक भिक्षु थकी गृहस्थ संजम करिकै प्रधान अन सर्व गृहस्थ थकी साधु संजम करी प्रधान । गृहस्थ में श्रावक पिण सगला आया, ते पडिमाधारी सरीखो किम हुवै । पि ओपम दीधां दोष नथी' । साधु (ज० स० ) १०२. 'अम्मड' नां शिष्य सातसय पाप अठार ताहि । सर्व थकी त्याग न किया, को उनवाई मांहि ॥ १०३. देशविरति गुणठाण ए तिण सूं त्यागज बाह्य ए, २९६ भगवती-जोड़ सर्व थकी विमल किम होय ? न्याय अवलोय ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only (दशाभूतस्कन्ध ६।१८ ) तए णं से आणंदे...... मम वि गिहिणो गिहमज्भावसंतस्स ओहिणाणे समुप्पण्णे । १७६) जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा असणं वा (४) देति देतं वा सातिज्जति । ( निसीहझयणं १५/७६ ) गिहिणो वेयावडियं............. (दसवे० ३।६) (दगवे० २२६) समणोवासयस्स णं ..संपुच्छणा.. से केणट्ठेणं..........गोयमा ! सामाइय कडस्स अहिगरणी एवं खलु जंबूं........वारवती नामं नयरी होत्या.... पच्चक्खं देवलोगभूया । ............ समणोवस्सए अच्छमाणस्स आया (TO UIX) (नाया० ११५५२) ( जम्बू० ३।१०६ ) इसिमिव खंतिखमाए । संति एहि हि गारा संजमुत्तरा गाराहि सह साहबो संजमुरा ॥ (उत्तरा० ५।२० ) १०२, १०३. तेणं कालेणं तेणं समएणं अम्मडस्स परिवायगस्स सत्त अंतेवासिसया..... (जोबा सू० ११५) तए णं ते परिव्वाया.....पुव्वि णं अम्हेहि अम्मडस्स www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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