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________________ क्षयोपशम तो १८. माह उदय बहुलो १६. मोह कर्म नां उदय थी, दिय कुपात्र दान । मोह नां क्षयोपशम थकी, दान सुपात्र जान ।। १७. दान अंतराय कर्म नों, क्षयोपशम तो होय । पिण मोह उदय बहुलो हुवै, जद दियै कुपात्र सोय ।। १८. दान अंतराय कर्म नों, क्षयोपशम पिण होय । वलि क्षयोपशम मोह नों, दियै सुपात्र सोय'। (ज० स०) १६. एक बार जे भोगवै, असणादिक ते भोग? १६. इह च सकृद्भोजनमशनादीनां भोगः, पौनःपुन्येन वस्त्रादिक बहु वार ते, जे उपभोग प्रयोग ।। चोपभोजनमुपभोगः, स च वस्त्रभवनादेः । *सो ही सयाणा जिन वच साधे, जिन वच साधे आण आराधै ॥ (ध्र पदं) (वृ० प० ३५०) २०. ज्ञान-लद्धी प्रभ ! कितै प्रकार? जिन कहै पंच प्रकार उदार । २०. नाणलद्धी णं भंते ! कतिविहा पण्णत्ता ? आभिनिबोधिक ज्ञान-सुलद्धी, जावत केवलज्ञान प्रसिद्धी ।। गोयमा ! पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा-आभिणिबोहियनाणलद्धी जाव केवलनाणलद्धी। (श० ८।१४०) २१. अज्ञान-लद्धि प्रभ! कितै प्रकार ? ताम स्वाम कहै त्रिविध विचार। २१. अण्णाणलद्धी णं भंते ! कतिबिहा पण्णता? मति अज्ञान श्र अनाण लद्धी, विभंग अनाण नी लद्धी प्रसिद्धी॥ गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-मइअण्णाणसोरठा लद्धी सुयअण्णाणलद्धी विभंगणाणलद्धी। २२. 'ज्ञानावरणी जाण, क्षयोपशम सेती लहै। (श० ८।१४१) २२. से किं तं खओवसमनिप्फण्णे ? ज्ञान अज्ञान पिछाण, अनयोगद्वारे आखियो ।। खओवसमनिप्फण्णे अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा२३. अज्ञानी रै ताम, सम जाणपणो जेतलो। खओवसमिया आभिणिबोहियनाणलद्धी......."खओवअज्ञान तिण रो नाम, भाजन लारै वाजियो ।। समिया विभंगनाणलद्धी (अणुओग० सू० २८५) २४. जाणे गाय नैं गाय, दिवस भणी जाण दिवस। इत्यादी कहिवाय, जाणपणो सम छै तिको॥ २५. तिण सू क्षयोपशम भाव, निरवद्य उज्जल लेख ए। देख विचारो न्याव, इण कारण लद्धी कही। २६. ज्ञानावरणी कर्म, पंच प्रकृति है तेहनीं। जोवो एहनो मर्म, मति ज्ञानावरणी प्रमख ।। २७. मति ज्ञानावरणी जेह, क्षयोपशम तेहनों थयां। वर मति ज्ञान लहेह, मति अज्ञान पामै बलि ॥ २८. श्रुत ज्ञानावरणी जाण, क्षयोपशम तेहनों थयां । वर श्रुत ज्ञान प्रधान, श्रुत अज्ञान लहै वली। २६. अवधि ज्ञानावरणीह, क्षयोपशम तिण रो थयां । अवधि ज्ञान लद्धीह, विभंग अनाण लहै वली ।। ३०. तदावरणी कर्म सोय, क्षय उपशम थी विभंग ह। ३०. तस्स णं छठंछठेणं......."से विभंगे अण्णाणे सम्मत्तसूत्र भगवती जोय, इकतीसम नवमै अख्यं ॥ परिग्गहिए खिप्पामेव ओही परावत्तइ । ३१. अवधि विभंग न जान, आवरणी तो एक है। (श०६, उ० ३१, सू० ३३) तेहनं नाम पिछाण, अवधि ज्ञानावरणी अछ। *लय : सो ही सयाणा अवसर साधे श० ८, उ०२, ढा० १३६ ३५१ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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