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६६. जइ रसपरिणए कि तित्तिरसपरिणए ? पुच्छा।
६७. गोयमा ! तित्तिरसपरिणए बा, जाव महुररसपरिणए वा।
(श० ८७०) ६८. जइ फासपरिणए कि कक्खडफासपरिणए जाव
लुक्खफासपरिणए ? ६६. गोयमा ! कक्खडफासपरिणए जाव लुक्खफासपरिणए।
(श० ८७१) १००. जइ संठाणपरिणए-पुच्छा।
१६. जो रस-परिणत रेख, स्य तीखै रस परिणते ?
पूछा तास संपेख, पांचूइ रस नी करी ॥ ६७. भाखै श्री जगभाण, तिक्त रसे परिणत हई ।
अथवा यावत जाण, परिणत मधुर रसे करी॥ १८. जो परिणत है फास, स्यू कक्खड़ परिणत हुई ?
यावत लक्ख विमास, पूछा ए एक द्रव्य नीं॥ ६६. भाखै श्री जिन भेव, कक्खड़ फर्श परिणते ।
अथवा जाव कहेव, लक्ख फर्श करि परिणते ॥ १००. जो परिणत संठाण, तो परिमंडल वट वलि ।
परिणत तंस पिछाण, चउरंस आयत परिणते ? १०१. उत्तर दे जिनदेव, परिमंडल परिणत हुई।
अथवा जाव कहेब, आयत परिणत द्रव्य इक ।। १०२. *इक द्रव्य आश्री एह त्रिविध करि आखिया,
प्रथम जीव प्रयोग परिणते भाखिया । मीसा दूजो भेद के वीससा तीसरो,
झीणी चरचा एह चतुर दिल में धरो॥ १०३. अष्टम शतके प्रथम उदेशक देश ही,
सौ इकतीसमी ढाल विशाल विशेष ही । भिक्ष भारीमाल ऋषराय पसाय सोभावियो,
'जय-जश' संपति हरष परम सुख पावियो।
१०१. गोयमा ! परिमंडलसंठाणपरिणए वा जाव आयतसंठाणपरिणए वा।
(श० ८।७२)
ढाल : १३२
१. अथ द्रव्यद्वयं चिन्तयन्नाह-
(वृ० प० ३३६)
१. पूछा हिव बे द्रव्य नी, श्री गोतम गणखान ।
देव जिनेंद्र प्रतै कर, उत्तर दे भगवान । २. हे भदंत ! बे द्रव्य, स्यू प्रयोग-परिणता होय?
मीस-परिणता छ प्रभु ! वलि बीससा जोय? ३. जिन कहै बे द्रव्य प्रयोग करि, तथा मीस बे चंग ।
तथा वीससा द्रव्य बे, एक संयोग त्रि भंग ।। ४. इक प्रयोग करि परिणते, मीस-परिणते एक ।
अथवा एक प्रयोग करि, एक वीससा देख ॥ *लय : नदी जमुना रै तीर उड़े दोय पंखिया १. यहां जोड़ में पाठ पूरा है, पर अंगसुत्ताणि में संक्षिप्त पाठ है । इसलिए सामने
वही पाठ उद्धृत किया गया है । ३२४ भगवती-जोड़
२. दो भंते ! दव्वा किं पयोगपरिणया ? मीसा
परिणया ? वीससापरिणया ? ३. गोयमा ! पयोगपरिणया वा, मीसापरिणया वा,
वीससापरिणया वा। ४. अहवेगे पयोगपरिणए, एगे मीसापरिणए, अहवेगे पयोगपरिणए, एगे वीससापरिणए,
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