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________________ १६. ए मन असत्य आरंभ-रहीत, पिण साद्यव पाप-सहीत । इमहिज मिश्र व्यवहार, सावज्ज जिन आज्ञा बार' ॥ ( ज० स० ) २०. *जो वचन प्रयोग करी ने परिणत ओह . स्यू सत्य वचन-प्रयोग करी परिणत अछे ? मन-प्रयोग कह्यो तिम वच पिण जाणवो, असमारंभ - प्रयोग पिछाणवो ॥ २१. जो काय प्रयोग करी परिणत इक द्रव्य, यावत स्यूं ओदारिक शरीर काय प्रयोग छै ? ओदारिक मिश्र शरीर काय प्रयोगे करी ? वेक्रिय तनु काय ते प्रयोग करी फिरी ? ते ? आहारक- तनु जे काय प्रयोग- परिणते ? २२. वेक्रिय - मिश्र - शरीर- काय प्रयोग आहारक- मिश्र वारीर-काय प्रयोग है? Jain Education International कार्मण शरीर काय प्रयोगे जोग है ? २३. जिन कहै औदारिक शरीरज काय जे, तास प्रयोग करी परिणत कहिवाय जे। यावत अथवा कार्मण शरीर जाणिये, तेहिज काय प्रयोग थी परिणत ठाणिये ॥ बा०-- वदारिक शरीर हीज पुद्गलखंधरूपपणे करी उपचीयमानपणा थकी काय कहिये, ते औदारिकशरीरकाय । तेह्नों जे प्रयोग ते ओदारिक- शरीरकाय प्रयोग अथवा ओदारिक शरीर नों जे काय प्रयोग ते ओदारिक- शरीर कायप्रयोग । इहां वृत्तिकार का - ए पर्याप्तक नैं हीज हुवै । 'इहां वृत्तिकार जे मत प्रकट कयूँ' ते विरुद्ध । पर्याप्तक अपर्याप्तक बिहुँ नैं विषे पावे ते मार्ट । इहां हीज एक द्रव्य नों सूत्रे पूछा कीधी । तिहां का - जे एक द्रव्य - प्रयोग - परिणत, मीसा-परिणत अथवा वीससा - परिणत । अनैं जे प्रयोगपरिणत ते मन प्रयोग वा वचन प्रयोग वा काय प्रयोग-परिणत पर्छ मन, वचन रा भेद कही का—जे काय प्रयोग- परिणत ते ओदारिक शरीर काय प्रयोगपरिणत जाव कार्मण- शरीर- काय प्रयोग- परिणत । जे ओदारिक- शरीर-काय प्रयोग परिणत ते एकेंद्रिय दारिक- सरीर का प्रयोग-परिणत जाव पंचेन्द्रिय-ओदारिकशरीर का प्रयोग-परिणत जे एकेंद्रिय मदारिक शरीर का प्रयोग-परिणत ते पृथ्वीकार्य एकेंद्रिय ओदारिक शरीर का प्रयोग-परिणत जाव वनस्पतिकायएकद्रय दारिक शरीर काय प्रयोग- परिणत जे पृथ्वी एकेंद्रिय ओदारिक- शरीर काय प्रयोग- परिणत ते सूक्ष्म पृथ्वीकाय जाव परिणत अथवा बादर-पृथ्वीकाय जाव परिणत जे सूक्ष्म पृथ्वीका जाव परिणत ते पर्याप्त पृथ्वीका जाय परिणत अथवा अपर्याप्ता सूक्ष्म पृथ्वीकाय जाव परिणत इम बादर पिण । सूपक अप वियेोदारिक शरीर काय प्रयोग को 'सेमा वृति में पर्याप्त में हीन ए हुने इम का विरुद्ध' (ज० स० ) लय नवी जमुना रे तोर उड़े दो पंखिया २१६ भगवती-जोह २०. जइ वइपयोगपरिणए कि सच्चवइपयोगपरिणए ? मोसesपयोगपरिणम् ? एवं जहा मणययोगपरिणए तहा वइपयोगपरिणए वि जाव असमारंभवइपयोग परिगए वा । (०८४८) २१. जर काययोगपरिषए कि ओरालिपसरी रकायपयोगपरिणए ? ओरानियमोसासरीरकाययोगपरिए ? उव्वयसरी काययोगपरिगए ? २२. यमीसासरीरका पपयोगपरिगए ? आहारसरीरकायपयोगपरिणए ? आहारगमीसासरीरकायपयोगपरिणए ? कम्मासरीरकायपयोगपरिणए ? २३. गोयमा ! ओरालियस री रकायपयोगपरिणए वा जाव कम्मासरीरकायपयोगपरिणए वा । (०४९) For Private & Personal Use Only औदारिकशरीरमेव पुद्गलकरूपत्वेनोपचीमानत्वात् काय औदारिकशरीरकायस्तस्य यः प्रयोगः औदारिकशरीरस्य वा यः कायप्रयोगः स तथा । अयं च पर्याप्तकस्यैव वेदितव्यस्तेन यत् परिणतं तत्तथा । ( वृ० प० ३३५ ) www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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