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________________ १०. जइ मणपयोगपरिणए कि सच्चमणपयोगपरिणए ? मोसमणपयोगपरिणए? सच्चामोसमणपयोगपरिणए? ११. असच्चामोसमणपयोगपरिणए ? १२. गोयमा ! सच्चमणपयोगपरिणए वा, मोसमणपयोग परिणए वा, सच्चामोसमणपयोगपरिणए वा, असच्चामोसमणपयोगपरिणए वा। (श० ८।४५) १३. जइ सच्चमणपयोगपरिणए कि आरंभसच्चमणपयोग परिणए ? अणारंभसच्चमणपयोगपरिणए ? ६. ओदारिक प्रमख जे काय, तिण करिनै जे परिणत ताय । काय-प्रयोग-परिणत जाण, इम कहिये तास पिछाण ।। १०. *जो मन-प्रयोग-परिणत द्रव्य होवै अछ, स्य सत्य-मन-प्रयोग-परिणत जेह छै । असत्य-मन प्रयोग-परिणत दाखियै, सत्य-मृषा-मिश्र-मन-प्रयोग ते आखियै ॥ ११. असत्यामृषा-मन-प्रयोगज परिणते ? साच झूठ बिहु नां हिज मन व्यवहार ते । प्रश्न चिउं मन जोग तणो गोयम भणे, ___एक द्रव्य जगनाथ ! परिणमै किणपणे ? १२. श्री जिन कहै सत्य-मन-प्रयोगज-परिणते, तथा असत्य-मन-प्रयोग-परिणत द्रव्य ते । तथा मिश्र-मन-प्रयोग-परिणत छ जिको, अथवा मन-व्यवहार-प्रयोगे छै तिको ॥ १३. जो सत्य-मन-प्रयोग परिणत जेह छै, स्यू आरंभ-सत्य-मन-प्रयोगज तेह छ । अणारंभ-सत्य-मन-प्रयोग पिछाणिय ? परिणते सगले ठाम विचारी आणिय ।। १४. सारंभ-सत्य-मन-प्रयोग उवेखिये, असारंभ-सत्य-मन-प्रयोग विशेखियै । समारंभ-सत्य-मन-प्रयोग कहीजिये, असमारंभ-सत्य-मन-प्रयोग लहीजिये ।। यतनी १५. आरंभ जीव-घात अवलोय, सारंभ हणवा नों मन होय । ___ समारंभ कह्यो परिताप, अर्थ तीनूं तणों इम स्थाप । १६. *जिन कहै आरंभ-सत्य-मन-प्रयोग-परिणते, यावत असमारंभ-सत्य-मन द्रव्य ते । इहां आरंभ अणारंभ सत्य मन में कह्यो, सावध निरवद्य एह न्याय गणिजन लह्यो । १७. जो ए असत्य-मन-प्रयोग करी परिणत अछै, __ स्यू आरंभ-मृषा-मन-प्रयोगे जेह छै? जिम सत्य-मन तिम असत्य-मन पिण जाणिय, इम मिश्र-मन व्यवहार-मन इम ठाणिय ।। १४. सारंभसच्चमणपयोगपरिणए ? असारंभसच्चमण पयोगपरिणए ? समारंभसच्चमणपयोगपरिणए ? असमारंभसच्चमणपयोगपरिणए ? १५. आरम्भो-जीवोपघातः..."संरम्भो-वधसंकल्पः समारं भस्तु परिताप इति । (वृ० प० ३३५) १६. गोयमा ! आरंभसच्चमणपयोगपरिणए वा जाव असमारंभसच्चमणपयोगपरिणए वा। (श० ८।४६) १७. जइ मोसमणपयोगपरिणए कि आरंभमोसमणपयोग परिणए ? एवं जहा सच्चेणं तहा मोसेण वि। एवं सच्चामोसमणपयोगेण वि। एवं असच्चामोसमणपयोगेण वि। (श० ८।४७) यतनी १८. 'अणारंभ असत्य मन जेह, तेह थी पिण पाप बंधेह । मन स्यू' जाणै दिन नै रात, इण में जीव तणी नहिं घात ॥ *लय : नदी जमुना रै तीर उड़े दोय पंखिया श. .बाल १२११५ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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