SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अतिमात्रया प्रमाणमुल्लंघ्य आहारं करोति स प्रमाणदोषः दातृपुरुषस्य व्याख्यानप्रशंसाकरणत्वेन चारित्रस्य अंगारतुल्यं करोति स इंगालदोषः । नीरसाहारनिंदाकरणत्वेन चारित्रस्य धूम्रतुल्यं करोति स धूम्रदोषः । षट्कारणं विना आहारं गृह्णाति स कारणदोषः । षट् कारणान्याह वेयणवेयावच्चे इरियट्ठाए य संजमट्ठाए । तह पाणवत्तियाए छठे पुण धम्मचिन्ताए ॥ (उ० २६।३२) ११ दोषों के नाम स्थानांग में-- (१) आहाकम्मिय (२) उद्देसिय (३) मीसजाय (४) पाओयर (अज्झोयरय) (५) पूतिय (६) कीत (७) पामिच्च (८) अच्छेज्ज (8) अणिसट्ट (१०) अभिहड (६।६२) (११) ठवणा नोट-ठाणं में पाओयर' के स्थान पर 'अज्झोयरय' पाठ मिला है और 'स्थापना' दोष का नाम उस प्रसंग में नहीं है । जयाचार्य को उपलब्ध किसी प्रति में ११ दोषों का नाम रहा होगा।] १५ दोषों के नाम निशीथ में (१) धाइपिंड (२) दूतिपिंड (३) णिमित्तपिंड (४) आजीवियपिंड (५) वणीमगपिंड (६) तिगिच्छापिंड (७) कोहपिंड (८) माणपिंड (६) मायापिंड (१०) लोभपिंड (११) विज्जापिंड (१२) मंतपिंड (१३) जोगपिंड (१४) चुण्णपिंड (१५) पुव्वंपच्छा (१३।६१ से ७५) [नोट-निशीथ में चौदह दोषों के नाम यथावत् हैं । वहां पुव्वंपच्छा के स्थान पर अंतद्धाणपिंड है । संभव है जयाचार्य को उपलब्ध प्रति में यही नाम होगा।] २२४ -भगवती-जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy